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    आडवाणी ने किया साफ, पीएम मोदी के लिए नहीं थी टिप्पणी

    By Sachin BajpaiEdited By:
    Updated: Fri, 19 Jun 2015 07:33 AM (IST)

    भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी के इमरजेंसी को लेकर दिए बयान से देश का सियासी माहौल गर्मा गया है। आडवाणी ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि मैं आश्वस्त नहीं हूं कि देश में दोबारा इमरजेंसी के हालात

    नई दिल्ली । भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी के इमरजेंसी को लेकर दिए बयान से देश का सियासी माहौल गर्मा गया है। आडवाणी ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि मैं आश्वस्त नहीं हूं कि देश में दोबारा इमरजेंसी के हालात न पैदा हो। हालांकि आडवाणी ने साफ किया कि यह किसी व्यक्ति विशेष या सरकार के लिए टिप्पणी नहीं थी। 25 जून को भारत में आपातकाल के 40 साल पूरे होने जा रहे हैं, इस पर आडवाणी ने अपनी भावनाएं व्यक्त की।

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    भाजपा के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य आडवाणी ने कहा कि भारतीय राजनीति में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कुछ ताकतें संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा के बावजूद लोकतंत्र को कुचल सकती हैं। उन्होंने आशंका जताते हुए कहा कि वर्तमान व्यवस्था में आने वाले वक्त में नागरिक स्वतंत्रता के निलंबित किए जाने की परिस्थितियां नजर आती हैं।

    आडवाणी ने कहा कि 1975-77 (आपातकाल के वक्त) के बाद से ऐसा कुछ भी नहीं किया गया जिससे लगे कि भविष्य में नागरिक स्वतंत्रता पर बंदिशें लगें। उन्होंने कहा कि राजनीतिक नेतृत्व ने भी वह क्षमता नहीं दिखाई। जिससे यह लगे कि लोकतंत्र को सक्षम व मजबूत बनाया गया हो। साथ ही उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं कहता कि राजनेताओं व राजनीतिक नेतृत्व में क्षमता नहीं है। लेकिन कमियों की वजह से विश्वास करना कठिन होता है कि दोबारा ऐसा नहीं होगा।

    राजग सरकार में उप प्रधानमंत्री रहे आडवाणी ने कहा कि हम 2015 में हैं, लेकिन अभी भी ऐसे हालात से बचने के लिए पर्याप्त सुरक्षा कवच नहीं हैं। इंदिरा गांधी के वक्त में लगी इमरजेंसी को एक अपराध के रूप में याद करते हुए आडवाणी ने कहा कि उनकी सरकार ने इसे बढ़ावा दिया था। उन्होंने कहा कि ऐसा संवैधानिक कवच होने के बावजूद देश में हुआ था। यह फिर से संभव है कि इमर्जेंसी एक दूसरी इमर्जेंसी से भारत को बचा सकती है।

    उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा ही जर्मनी में हुआ था। वहां हिटलर का शासन हिटलरपरस्त प्रवृत्तियों के खिलाफ विस्तार था। इसकी वजह से आज के जर्मनी शायद ब्रिटिश की तुलना में लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर ज्यादा सचेत है। इमर्जेंसी के बाद चुनाव हुआ और इसमें जिसने इमर्जेंसी थोपी थी उसकी बुरी तरह से हार हुई। यह भविष्य के शासकों के लिए डराने वाला साबित हुआ कि इसे दोहराया गया तो मुंह की खानी पड़ेगी।'

    वर्तमान में मीडिया बेहद ताकतवर हुआ है। लेकिन यह कहना कठिन है कि यह तंत्र नागरिक दायित्व व लोकतंत्र के प्रति कितना प्रतिबद्ध है। इसकी परख कैसी की जाए, यह जांच का विषय है। सिविल सोसायटी ने उम्मीदें जगाई हैं। हालही भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन अहम है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के सहज संचालन की जिम्मेदारी कई संस्थाओं पर है लेकिन भारत में न्यायपालिका के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है।

    आडवाणी के बयान पर प्रतिक्रिया

    भाजपा में आडवाणी के बयान को मोदी सरकार के लिए संदेश के रुप में देखा जा रहा है। इस बीच पार्टी के बड़े नेता एमजे अकबर ने कहा कि मैं आडवाणी जी का सम्मान करता हूं। अकबर ने कहा कि उनका इशारा संस्थाओं की तरफ था। यह व्यक्ति केंद्रित नहीं था।

    कांग्रेस ने आडवाणी के बयान पर कहा कि उनका कहना बिल्कुल साफ है कि मोदी सरकार जिस तरह से काम कर रही है। इस हालात में आपातकाल की आंशका है। कांग्रेस प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने कहा कि इस समय सरकार किसकी है, कौन पीएम है। संदेश साफ है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की तरफ उंगली उठाई गई है।

    'आप' नेता आशुतोष ने कहा कि आडवाणी के बयान से साफ लगता है कि उन्हें मोदी सरकार पर विश्वास नहीं है। हालात जिस तरीके से पैदा किए जा रहे हैं, उस पर यह बयान खरा उतरता है।

    केजरीवाल ने अपने ट्वीट में कटाक्ष करते हुए कहा कि आडवाणी जी बिल्कुल सही कह रहे हैं। इमरजेंसी से इंकार नहीं किया जा सकता। क्या दिल्ली उनका पहला प्रयोग है?

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