एसबीआइ विलय की भेंट चढ़ेंगी सैकड़ों बैंक शाखाएं
रोडमैप दो महीने के भीतर वित्त मंत्रालय को पेश किया जाएगा और तैयारी इस बात की है कि चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में उक्त सभी छह बैंकों की विलय प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) में इसके पांच सब्सिडियरी बैंकों के विलय को लेकर इन बैंकों के कर्मचारी यूनियनों में विरोध का स्वर मुखर हो रहा हो लेकिन एसबीआइ में इस विलय की तैयारी पूरी जोरों पर है।
एसबीआई की एक उच्चस्तरीय समिति प्रमुख बैंक में पांच सब्सिडियरी बैंकों स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ बिकानेर व जयपुर और एक अन्य बैंक भारतीय महिला बैंक के विलय का रोडमैप को अंतिम रूप दे रहा है। रोडमैप दो महीने के भीतर वित्त मंत्रालय को पेश किया जाएगा और तैयारी इस बात की है कि चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में उक्त सभी छह बैंकों की विलय प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। एसबीआइ की समिति ने पिछले शुक्रवार को वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक की और विलय प्रक्रिया पर लंबा विचार विमर्श किया।
समिति ने वित्त मंत्रालय को बताया है कि बड़ी संख्या में विलय के बाद बैंक शाखाओं को एडजस्ट करना होगा। विलय के बाद मौजूदा सारे ब्रांच एसबीआइ के तहत आ जाएंगे। ऐसे में एक ही क्षेत्र में एसबीआइ के सब्सिडियरियों के मौजूदा शाखाओं का विलय होगा या फिर उनमें से कुछ ब्रांच बंद किये जाएंगे। इसका सबसे ज्यादा असर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में पड़ेगा। क्योंकि इन राज्यों के कई इलाकों में स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद और स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर व जयपुर की शाखाएं स्थित हैं। दर्जनों ऐसे इलाके हैं जहां इन तीनों बैंकों के साथ ही एसबीआइ की भी शाखाएं हैं। अभी सोच यह है कि जितने भी बड़े कारपोरेट शाखा हैं उन्हें बरकरार रखा जाए और आम ग्राहकों से डील करने वाले शाखाओं को मिला दिया जाए।
लेकिन विलय की तैयारी में जुटी समिति के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती मानव संसाधन प्रबंधन को लेकर आने वाली है। एसबीआइ व इसके पांच सब्सिडियरियों में कर्मचारियों व अधिकारियों की संख्या 3,01,471 के करीब है। इसमें 1.08 लाख अधिकारी हैं जबकि 1.35 लाख कर्मचारी हैं। जबकि शेष इससे नीचे की श्रेणी के स्टाफ हैं। शाखाओं के एकीकरण और एक ही प्रबंधन होने की वजह से बड़ी संख्या में कर्मचारियों व अधिकारियों की संख्या कम करनी होगी। सूत्रों के मुताबिक वैसे भी एसबीआइ व इसके सभी सब्सिडियरी संयुक्त तौर पर कुल खर्चे का लगभग 16.25 फीसद वेतन पर खर्च करते हैं देश में अन्य भी बैंकों के मुकाबले सर्वाधिक है। मसलन, अगर सभी सरकारी बैंक संयुक्त तौर पर कुल खर्चे का 11.80 फीसद वेतन पर खर्च करते हैं।
सूत्रों के मुताबिक श्रमशक्ति को नए माहौल के मुताबिक तेज-तर्रार बनाने के लिए बैंक विलय के बाद मौजूदा कर्मचारियों के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की योजना (वीआरएस) भी लागू करने का विकल्प है। सनद रहे कि पूर्व की राजग सरकार के कार्यकाल में भी सरकारी बैंकों के लिए वीआरएस योजना लागू की गई थी।