दिवाली की नई रोशनी
कितना खुश था शमीम! और आकाश भी उसके साथ बहुत खुश था। आज उन दोनों के कदम एक साथ स्पोर्ट्स एकेडमी की तरफ मुड़ रहे थे।
कितना खुश था शमीम! और आकाश भी उसके साथ बहुत खुश था। आज उन दोनों के कदम एक साथ स्पोर्ट्स एकेडमी की तरफ मुड़ रहे थे। वाह, कितना प्यारा होता है, स्केट्स का सफर। शमीम को तो लग रहा था कि वह स्केट्स पहनकर आसमान पर सफर कर रहा है और उसके साथ डोरेमोन की तरह चल रहा है उसका दोस्त आकाश, जो उसके लिए हर असंभव काम को संभव कर रहा था।
‘तुम डोरेमोन और मैं नोबिता हूं।’ शमीम उससे कहता था। आकाश को भी डोरेमोन बहुत पसंद था, और शमीम की तो जान था डोरेमोन। वे दोनों स्कूल के बचे हुए समय में डोरेमोन बनकर एक्टिंग करते। शमीम खुद को नोबिता कहता था और आकाश से कहता कि उसे उसका डोरेमोन चाहिए। आकाश को बहुत हंसी आती थी। नन्हा-सा आकाश। उसके टूटे हुए दांतों में से हंसी फिसल जाती और वह शमीम की बातों पर और हंसता। शमीम के भी तीन दांत टूटे हुए थे। वो भी जब डोरेमोन कहता तो उसके दांतों के बीच से जीभ फिसलती रहती। अभी जब ईद के समय उसने आकाश को सिवईयां खिलाई थीं तो दोनों में जैसे प्रतिस्पर्धा हुई थी कि किसकी सिवई पहले खत्म होती है। शमीम की मम्मी इतनी अच्छी सिवई बनाती थीं कि शमीम तुरंत खत्म कर देता था। उस दिन उन दोनों ने अपने-अपने डोरेमोन के खिलौने को भी ईद की टोपी पहना दी थी और दोनों को लगा जैसे वह भी ईद मुबारक बोल रहा है। ‘उस नीले बिल्ले में क्या है ऐसा जो तुम उसमें इतना जुटे रहते हो?’ मम्मी अक्सर झुंझला कर कहतीं। आकाश को वह डांट बुरी नहीं लगती थी, क्योंकि शाम को उसकी मम्मी के सीरियल और पापा के डिस्कवरी चैनल के बीच ऐसी ही नोंक-झोंक होती थी। आकाश के लिए तो डोरेमोन एक ऐसा जादू था, जिसमें सब कुछ था। दादी की परियों वाली कहानी, मां की डांट भी और मां का प्यार भी।
‘इस बार तुम्हारे नंबर कम आए तो देखना, मैं भी नोबिता की मॉम बन जाऊंगी!’ मम्मी दांत पीसते हुए धमकी देतीं। पर आकाश को पता था कि उसे कब पढ़ना है और मम्मी पढ़ते समय बहुत स्टिक्ट थीं। तीसरी कक्षा से उसके स्कूल में स्पोर्ट्स के अनिवार्य होने के बाद आकाश तो स्केट्स सीखने लगा था, मगर शमीम का कोई पता नहीं था। आकाश शमीम के बिना नहीं रह सकता था। दोनों दोस्तों का साझा आसमान था, दोनों दोस्तों के साङो चुटकुले थे और साझा था उनका संसार। शमीम की दुनिया में आकाश था और मम्मी-पापा के बाद अगर आकाश को कोई पसंद था, तो वह था शमीम। ऐसे दोस्त के बिना आकाश को स्केट्स के पहिए भी अच्छे नहीं लग रहे थे। वह स्केटिंग सीखने जाता मगर वह सीख नहीं पा रहा था, जबकि उसे स्केट्स बहुत पसंद थे। वह स्केट्स में नाम कमाना चाहता था। स्केट्स पहनते ही उसका मन होता कि वह खूब तेज दौड़ने लगे। मम्मी से कितनी लड़ाई और बहस के बाद उसने स्केटिंग में एडमिशन लिया था। मम्मी और पापा का मन था कि वह बैडमिंटन जैसा कोई स्पोर्ट्स ले, जिससे उसमें कम से कम चोट लगे। स्केटिंग में तो बहुत चोट लग जाती है। मगर उसे स्केटिंग की रफ्तार बहुत पसंद थी। उसका मन होता कि वह भागे, खूब तेज भागे। मगर वह रुक जाता! उसे शमीम याद आ जाता।
शमीम उस एकेडमी के बाहर खड़ा होकर उसका इंतजार करता और बाद में वे दोनों इकट्ठे घर जाते। आकाश ने बहुत कोशिश की थी कि वह शमीम को एकेडमी के अंदर ले आए और शमीम भी उसके साथ ही स्केटिंग करे। शमीम एकेडमी के बाहर उसके स्केटिंग की कक्षा खत्म होने से दस मिनट पहले आ जाता था। आकाश के स्केट्स पहनकर देखता, उनके पहियों की स्पीड देखता और एक ललचाई नजर से देखकर उन्हें रख देता। एक बार उसे एकेडमी के गार्ड ने बहुत तेज डांट दिया था कि वही लोग अंदर जा सकते हैं, जिनके पास अपने स्केट्स हैं। वैसे तो स्कूल की ही एकेडमी थी और फीस नहीं थी! मगर आकाश को बहुत बुरा लगा था। उसके मन से उस गार्ड के लिए आदर कम हो गया था। अगर किसी के पास पैसे नहीं तो क्या उसे कोई भी डांट सकता है? अभाव इतनी बुरी बात होती है।
‘पापा, शमीम स्केटिंग सीखने क्यों नहीं आता है?’ एक दिन आकाश ने अपने पापा से पूछा। पापा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ‘हो सकता है, उसके पास स्केट्स खरीदने के लिए पैसे न हों, तुम्हें तो पता ही है न कि उसके पापा नहीं हैं और उसकी मम्मी कितनी मुश्किल से खर्च चलाती हैं। हम ईद पर उसके घर गए थे, तो तुमने उसका घर देखा था न!’ ‘तो पापा, हम कुछ नहीं कर सकते क्या?’ आकाश ने मायूसी से पूछा।
‘बेटा, आप क्या करना चाहते हो?’ पापा ने उसका सिर थपथपाते हुए पूछा। मायूस आकाश को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह चला गया। कुछ ही दिनों बाद दिवाली आने वाली थी। आकाश दिवाली की खरीदारी में व्यस्त हो गया। उसने इस बार खूब पटाखे खरीदे, नए कपड़े और न जाने क्या-क्या।
वह दिवाली की रात थी। सारे मोहल्ले में रंग-बिरंगी बत्तियां झिलमिल-झिलमिल कर रही थीं। आकाश का घर तेल के दीयों और मोमबत्तियों के प्रकाश से जगमगा रहा था। घर के छज्जे पर खड़े होकर आकाश एक के बाद एक पटाखे छोड़ता जा रहा था। वह शमीम का इंतजार कर रहा था। आकाश ने वही कुर्ता पहना हुआ था, जो शमीम की मम्मी ने ईद पर तोहफे में दिया था। शमीम के आते ही दोनों पटाखे चलाने लगे। ‘आकाश, शमीम को दिवाली पर कुछ तोहफा नहीं दोगे?’पापा ने पटाखे चलाते हुए आकाश से कहा।
‘क्यों नहीं पापा?’आकाश की आंखों में जैसे फुलझड़ी की रोशनी थी। पापा ने आकाश के हाथ में लाल रंग की जगमगाती पन्नी में लिपटा हुआ एक डिब्बा दिया। ‘अरे, ये तो स्केट्स हैं ’- आकाश और शमीम दोनों एक साथ खुशी से चीख पड़े।
‘हां, शमीम अब तुम भी कल से मेरे साथ एकेडमी चलना, कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा!’ आकाश उसके गले लगता हुआ बोला। शमीम की खुशी देखकर आकाश की दिवाली और रोशन हो गई थी। शमीम की आंखों में नई चमक देखकर दूर कहीं हंस रहा था उनका डोरेमोन भी। गीताश्री
अभ्यास प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिख कर संस्कारशाला की परीक्षा का अभ्यास करें...
1. हमें एक-दूसरे का आदर क्यों करना चाहिए?
2. असली आदर किससे आता है?
3. हमें एक-दूसरे के त्योहारों का सम्मान किस तरह करना चाहिए?
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