शिक्षक दिवस स्पेशल: आज के द्रोणाचार्य हैं पुलेला गोपीचंद
कामयाबी के जिस शिखर पर गोपीचंद खुद नहीं पहुंच पाए, उस स्तर पर अपने शिष्यों को पहुंचाया। सिर्फ एक गुरु नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह भी उनका साथ दिया।
रियो ओलंपिक में भारत को सिल्वर मेडल दिलाने वाली पीवी सिंधू की सफलता के पीछे कोच पुलेला गोपीचंद की कठोर तपस्या का भी हाथ है। गोपीचंद ने द्रोणाचार्य बनकर अपने शिष्यों को 'अर्जुन' की तरह बनाया और पदक जिताया। जब सिंधु रियो ओलिंपिक के फाइनल में पहुंची तब उसके पिता पीवी रम्मना का कहना था कि सिर्फ गोपीचंद की वजह से सिंधु इस मुकाम तक पहुंच पाई हैं। कामयाबी के जिस शिखर पर गोपीचंद खुद नहीं पहुंच पाए, उस स्तर पर अपने शिष्यों को पहुंचाया। सिर्फ एक गुरु नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह भी उनका साथ दिया।
गोपीचंद ने भारत में बैडमिंटन को घर-घर तक पहुंचाया है। रिटायरमेंट लेने के बाद उन्होंने अपनी एकेडमी खोली और सिखाने की जिम्मेदारी संभाल ली। इसके बाद आए साइना नेहवाल, पीवी सिंधू, किदांबी श्रीकांत, परुपल्ली कश्यप जैसे सितारे। आज यह खिलाड़ी दुनिया के बेस्ट बैडमिंटन खिलाड़ियों में से एक हैं। गोपीचंद का परिश्रम उनके शिष्यों की सफलता के पीछे छुप जाता है। जानिए आज के जमाने के इस ‘द्रोणाचार्य’ ने किस तरीके से बैडमिंटन को एक नया मुकाम दिया।
गोपीचंद ने जब अपना अकादमी शुरू की थी, तब कहा जा रहा था कि यह सिस्टम उन्हें सफल होने नहीं देगा, लेकिन गोपीचंद अपने दम पर अच्छे कोच साबित हुए।कड़ी मेहनत और लगन से अपने आपको कोच के रूप में शीर्ष पर पहुंचाया।
अपनी अकादमी के लिए गोपीचंद को काफी संघर्ष करना पड़ा। आंध्रप्रदेश सरकार ने गोपीचंद को अकादमी बनाने के लिए ज़मीन तो दे दी थी लेकिन प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए गोपीचंद के पास पैसे नहीं थे। उन्होंने अपना घर गिरवी रख दिया, फिर एक व्यापारी की मदद से अपना प्रोजेक्ट पूरा किया। जो सरकार और कॉर्पोरेट, मेडल जीतने के बाद खिलाड़ी के साथ-साथ गोपीचंद की तारीफ करते हैं, वे अकादमी खोलने के लिए गोपीचंद को मदद करने के लिए तैयार नहीं थे।
गोपीचंद को एक अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ा था। बैडमिंटन रैकेट खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं हुआ करते थे। उनको अपना पहला बैडमिंटन रैकेट खरीदने के लिए अपने घर के गहने बेचने पड़े थे।
बार-बार घायल होने की वजह से भी गोपीचंद के अच्छा बैडमिंटन खिलाड़ी बनने का सपना कई बार टूटा। लेकिन गोपीचंद ने अपने ज़िंदगी में कभी हार नहीं मानी। मेहनत और निष्ठा से हर समस्या को दरकिनार करते हुए आगे बढ़े। गोपी ने अपने करियर में कई पदक जीते हैं। उनको अर्जुन अवॉर्ड से लेकर द्रोणाचार्य अवॉर्ड से भी नवजा जा चुका है।
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