सिंधू के कोच गोपीचंद ने अपने बचपन को लेकर किया ये खुलासा
आज इस पूर्व खिलाड़ी व 'सुपर कोच' ने अपने बचपन व जिंदगी से जुडे कुछ दिलचस्प खुलासे किए।
नई दिल्ली। साइना नेहवाल (ब्रॉन्ज, 2012), पीवी सिंधू (सिल्वर, 2016) और परुपल्ली कश्यप जैसे शानदार खिलाड़ियों ने ओलंपिक बैडमिंटन में भारत को एक नई पहचान दी और देश का सिर गर्व से ऊंचा किया। जाहिर है कि इसकी वजह इन दोनों की कड़ी मेहनत रही लेकिन यहां एक समान बात ये भी है कि जिसने इन तीनों के इस सफर में सबसे अहम योगदान दिया, वो थे कोच पुलेला गोपीचंद। आज इस पूर्व खिलाड़ी व 'सुपर कोच' ने अपने बचपन व जिंदगी से जुडे कुछ दिलचस्प खुलासे किए।
- 'खुशी है कि पढ़ाई में अच्छा नहीं था'
42 वर्षीय गोपीचंद ने बताया कि वो बचपन में पढ़ाई में ज्यादा अच्छे नहीं थे लेकिन आज उन्हें इस बात की खुशी होती है क्योंकि इसकी बड़ी वजह थी बैडमिंटन में ज्यादा दिलचस्पी।
गोपीचंद के मुताबिक वो पढ़ाई में असफल रहे थ लेकिन उसी असफलता ने उन्हें पूरी तरह से बैडमिंटन की ओर ढकेल दिया। गोपीचंद ने कहा, 'मेरा भाई और मैं, दोनों खिलाड़ी थे। वो एक बेहतरीन खिलाड़ी था। वैसे, आज मुझे खुशी है कि मैं पढ़ाई में अच्छा नहीं था।'
- IIT परीक्षा में फेल हुआ, ये मेरे लिए अच्छा हुआ
गोपीचंद ने बयां किया कि कैसे खेल में सफलता के लिए परिजनों के त्याग और कुछ मौकों पर किस्मत का अहम योगदान रहता है। गोपीचंद ने कहा, 'वो (गोपीचंद का भाई) एक राज्य चैंपियन था। उसने अपनी आइआइटी परीक्षा भी पास कर ली थी। वो आइआइटी गया और खेल को छोड़ना पड़ा। मैंने भी यही किया लेकिन मैं परीक्षा में असफल रहा और खेलना जारी रखा, आज मैं यहां खड़ा हूं। मेरा यही मानना है कि आपको अपने लक्ष्य की ओर केंद्रित रहना होता है और कभी-कभी किस्मत का साथ भी जरूरी होता है।'
गोपीचंद आज एक बेहतरीन कोच हैं लेकिन इससे पहले वो एक शानदार खिलाड़ी भी रहे हैं। अपने करियर के दौरान वो भारत के दूसरे खिलाड़ी बने थे जिसने प्रतिष्ठित ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप (2001) का खिताब जीता और उसके तुरंत बाद संन्यास लेकर अपनी बैडमिंटन अकादमी खोली।
- कैसे घर गिरवी रखकर अकादमी खोली
गोपीचंद के मुताबकि कुछ सालों पहले वो एक पीएसयू में स्पॉनसरशिप के लिए लगातार चक्कर लगाते थे। गोपीचंद ने कहा, 'एक बार तो मुझे तीन दिनों तक सुबह 9 बजे से शाम के 5.30 बजे तक कमरे के बाहर इंतजार कराया गया, इस वादे के साथ कि मुझे बैडमिंटन को बढ़ावा देने में सहयोग मिलेगा लेकिन फिर एक अधिकारी आया और उसने कहा कि बैडमिंटन को विश्व खेल जगत में ज्यादा लोकप्रियता नहीं हासिल है। वो अंतिम दिन था जब मैंने किसी से स्पॉनसरशिप या सहारे के लिए मदद मांगी। उसी रात मैं अपने घर लौटा और माता-पिता व पत्नी के सहयोग से हमने अपना घर गिरवी रखा जिसके दम पर अकादमी खड़ी हो सकी।
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