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    जिंदगी लाइव

    नटखट रजत बहुत शैतानी करता था। कभी वह अपने घर के बाहर बैठे कुत्ते की पूंछ खींच देता था, तो कभी पान वाले की दुकान पर खड़े ग्राहकों को परेशान कर देता।

    By Rahul SharmaEdited By: Updated: Wed, 28 Sep 2016 09:13 AM (IST)

    नटखट रजत बहुत शैतानी करता था। कभी वह अपने घर के बाहर बैठे कुत्ते की पूंछ खींच देता था, तो कभी पान वाले की दुकान पर खड़े ग्राहकों को परेशान कर देता। कभी अपनी दादी की साड़ी खींच देता, तो कभी बॉलकनी से दूध गिरा देता। रजत के मम्मी-पापा उसे बहुत समझाते थे, पर वह समझता ही नहीं था। अपने स्कूल का सामान भी फैला देता था। स्कूल से आते ही उसके जूते इधर, मोजे उधर और स्कूल बैग कहीं और होते थे।

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    दादी उसे बहुत समझातीं, मगर रजत नहीं समझता था। उसे बदमाशी करने में बहुत मजा आता था। पापा, मम्मी पर चिल्लाते, ‘तुमने इसे अपने लाड़-प्यार में बिगाड़ रखा है। यह हाथ से निकलता जा रहा है।’ रजत जानता था कि मम्मी और दादी उसे बहुत प्यार करती हैं। वे उसे कभी नहीं डांटेंगी। मम्मी रोते हुए पापा से कहतीं, ‘आपको पता है रजत की जिंदगी बचाने के लिए मैंने कितनी मन्नतें मांगी थीं। पहले दो बच्चे कैसे कुछ ही महीनों में भगवान के पास चले गए थे। इतनी मन्नतों से मांगे बच्चे को मैं कैसे रुला दूं?’ पापा फिर कहते, ‘ओफ्फो, छोड़ो अपना रोना-धोना। तुम्हारी इसी कमजोरी का यह फायदा उठाता है। यह उसकी जिंदगी है, उसे जिम्मेदार होने दो। उसे अहसास कराओ, अभी से ही उसे दायित्वबोध कराओ।’ मम्मी- पापा की बहसों से बेपरवाह रजत बाहर कोई न कोई बदमाशी करने के लिए निकल जाता।

    एक दिन स्कूल में बहुत चहल-पहल थी। पता चला कि पंद्रह अगस्त पर एक बड़ा कार्यक्रम होने वाला है। उसमें कई नाटक होंगे और इनाम भी मिलेंगे। रजत बहुत खुश हुआ। मम्मी को खुश करने का इससे बड़ा मौका नहीं हो सकता था। उसने अपनी मैडम से कहा कि उसे भी इसमें भाग लेना है। उसकी शरारतों की बात,सुनकर वैसे तो उसकी मैडम थोड़ा संकोच कर रही थीं, पर वह ऐसे तो मना नहीं कर सकती थीं। नाटक में जो बच्चे भाग लेना चाहते थे, उन सभी को कुछ डायलॉग पढ़ने के लिए दिए गए और रजत ने गांधी जी के डायलॉग बहुत अच्छी तरह से पढ़े। मैडम और प्रिंसिपल मैडम सभी ने उसके लिए ताली बजाई। रजत को बहुत अच्छा लगा। अभी तक ऐसा अनुभव उसे नहीं हुआ था। लेकिन उसे यह समझ में नहीं आया कि एक इंसान की इतनी इज्जत लोग कैसे कर सकते हैं? ऐसा क्या खास था गांधी जी में?

    उस दिन खुश होते हुए रजत घर गया था। घर पहुंच कर उसने जूते-मोजे नहीं फैलाए, बल्कि उन्हें करीने से रखा। दादी को भी तंग नहीं किया। दादी को बहुत अच्छा लगा। खाना भी आज वह डाइनिंग टेबल पर खाने आया। खाना खाते समय उसने अपनी मम्मी से पूछा, ‘मम्मी गांधी जी कौन थे? हम उन्हें राष्ट्रपिता क्यों कहते हैं?’ मम्मी चौंक गईं। रजत जैसे शरारती बच्चे के मुंह से महात्मा गांधी का नाम! ‘क्या हुआ बेटा? गांधी जी के बारे में क्यों पूछ रहे हो?’ ‘दरअसल, मम्मी मैं स्कूल के एक नाटक में गांधी जी का रोल कर रहा हूं। ’ उसने कहा। ‘वाह रजत! क्या तुम्हें पता है गांधी जी क्या कहा करते थे?’ दादी ने पूछा। उन्हें रजत को समझाने का अच्छा अवसर हाथ लगता दिखाई दे रहा था। रजत ने कहा, ‘नहीं दादी!’ ‘ठीक है, खाना खाने के बाद मैं तुम्हें बताऊंगी’ दादी ने कहा। खाना खाने के बाद दादी ने अपनी आलमारी खोली और उसमें से कुछ एल्बम निकाले और रजत को दिखाने लगीं। उसमें गांधी जी की फोटो थी।

    ‘दादी, गांधी जी के पास पैसे नहीं थे क्या, जो वे कपड़े नहीं पहने हैं?’ रजत ने फोटो देखकर हैरानी से पूछा। ‘नहीं बेटा, ऐसा नहीं है! अगर वह चाहते तो बहुत पैसे कमा सकते थे। मगर वह अपने देश को अंग्रेजों से आजाद कराना चाहते थे, इसलिए उन्होंने इस भेष में रहना मंजूर किया। वह बहुत बड़े वकील थे। उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया। उनकी एक आवाज पर पूरा देश अपनी जान देने के लिए तैयार हो जाता था। मगर उन्होंने सत्य और अहिंसा पर जोर दिया और सबसे कहा कि अपने काम खुद करना सीखें। किसी को परेशान न करें।’ रजत हैरान हो गया। ‘तो क्या उन्होंने अपना सब कुछ छोड़ दिया था?’ दादी इतिहास के पन्ने खोलतीं गईं ‘हां बेटा, उन्होंने अपने सब सुख, आराम केवल देश को निर्दयी अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए छोड़ दिया था। उन्होंने लाठी खाई, जेल गए, मगर सच का साथ नहीं छोड़ा और न ही महंगे कपडे़ पहने। अपने सभी काम खुद करते थे। अंग्रेजों ने उन्हें बहुत परेशान किया। देश की जनता गांधी जी के साथ थी। उन्होंने गांधी जी की आवाज पर भारत छोड़ो आंदोलन पर जिस तरह से अपनी आवाज उठाई, उससे अंग्रेज समझ गए थे कि उन्हें जाना होगा और अंत में 15 अगस्त, 1947 को वे हमारा देश छोड़कर चले गए।

    ’ ‘ओह दादी, फिर तो गांधी जी ने बहुत कष्ट सहे होंगे?’ रजत ने भावुक होकर पूछा। ‘हां बेटा, जो किसी महान लक्ष्य को हासिल करने के लिए कदम उठाता है, कष्ट उठाता है और कष्ट उठाकर उस लक्ष्य को हासिल करता है, सारा संसार उसकी इज्जत करता है। तुमने देखा नहीं कि जब हम राजघाट गए थे, तो वहां दूसरे देशों के भी कितने लोग आए थे!’ दादी ने कहा। ‘हां दादी, आपकी बात समझ गया। अब मैं भी शरारतें नहीं करूंगा। मन लगाकर पढ़ाई करूंगा। मैंने आपको और पापा को बहुत परेशान किया है, मुझे आप माफ कर दीजिएगा।’ रजत को अब अपनी गलतियों का अहसास हो रहा था। दादी ने रजत को गले लगा लिया- ‘नहीं बेटा, माफी की क्या बात है! बच्चे तो शरारत करते ही हैं, मगर शरारत ऐसी हो जिससे किसी को कोई परेशानी न हो। यही हम समझाना चाहते थे।’ ‘अब मैं शरारत भी कम करूंगा और अपने सभी काम अपने आप करूंगा!’ रजत ने अपनी मम्मी के गले लगते हुए कहा। रजत को समझ में आ गया था कि जिंदगी अच्छे कामों के लिए मिलती है और हर इंसान को अपने काम स्वयं करने चाहिए

    गीताश्री

    अभ्यास प्रश्न

    नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिख कर संस्कारशाला की परीक्षा का अभ्यास करें...

    1. रजत कैसा लड़का था?

    2. राष्ट्रपिता के नाम से हम किसे पुकारते हैं?

    3. हमें अपना काम खुद क्यों करना चाहिए? इसके क्या फायदे होते हैं?

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