Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    विचारों और संस्कारों की शुद्धता से मिलता है सुखमय जीवन

    महात्मा गांधी ने कहा है कि अगर हमारे पास लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उचित स्नोत नहीं हैं, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए हमारे विचारों में सात्विकता नहीं है,

    By Rahul SharmaEdited By: Updated: Wed, 05 Oct 2016 08:37 AM (IST)

    ‘महात्मा गांधी ने कहा है कि अगर हमारे पास लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उचित स्नोत नहीं हैं, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए हमारे विचारों में सात्विकता नहीं है, तो ऐसी लक्ष्यपूर्ति से मन में कुंठा रह जाती है और शाश्वत सुख कभी नहीं मिल सकता।’ ठीक इसी तरह का कथन उन अबोध बच्चों में संस्कार पिरोते वक्त अभिभावकों व शिक्षकों पर लागू होती है, जिन पर बच्चों को सही मार्ग दिखाते हुए हीरे की तरह तराशने की जिम्मेदारी होती है। बच्चा ही आगे जाकर समाज का प्रतिनिधित्व करता है, ऐसे में बच्चे को अच्छी सीख दी जा सकती है। मगर किसी व्यक्ति और समाज में अगर नैतिक मूल्यों की कमी रह गई, तो उसे नहीं संवारा जा सकता।
    प्राचीन शिक्षण प्रणाली का आज भी महत्व : पुराने समय में हमें जो शिक्षा दी जाती थी, उसमें नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी शामिल था, मगर आधुनिक युग में नैतिक मूल्य कहीं खो गए हैं। हम शिक्षण प्रणाली में बदलाव के नाम पर न तो पूरी तरह नई चीजों को अपना सकते हैं और न ही इस परिवर्तन के नाम पर नैतिक शिक्षा को सिरे से नकारा जा सकता है। आज भले ही पुराने समय के मुकाबले नई पीढ़ी की सोच में अंतर आया हो, मगर बदलते दौर में हर पीढ़ी को एक दूसरे से सामंजस्य बैठाना बेहद जरूरी है। यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों को सबसे पहले तो लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए सुखमय जीवन के मार्ग पर चलने की सही दिशा दिखलाएं। मगर उनके इस सफर में भी कुछ अहम पहलुओं का होना बेहद जरूरी है, जिनमें संस्कारों और दायित्वों सहित नैतिक मूल्यों का समावेश होना भी बहुत जरूरी है।
    अभिभावकों व शिक्षकों की भूमिका अहम : हमारी भूमिका एक अच्छे अभिभावक के रूप में शुरू जरूर होती है। मगर बच्चे के जीवन में भी बहुत से पड़ाव आते हैं जिनसे उन्हें नई चीजें सीखने को मिलती हैं। उनके जीवन की एक कड़ी शिक्षक भी हैं, जो उन्हें शैक्षणिक रूप से योग्य बनाने में अपना योगदान देते हैं। ऐसे में अपनी जिम्मेदारियों का वहन करते वक्त सभी का यह ध्यान रखने की जरूरत है, कि अपने बच्चों को हम किस तरह के लक्ष्य और सुख सुविधाएं उपलब्ध कराने जा रहे हैं। विद्यार्थी जीवन हर तरह से सीखने के लिए प्रेरित करता है। जिस दिन नन्हें से कदम स्कूल की ओर बढ़ाता है उसी दिन से नींव की शुरूआत हो जाती है। नींव अच्छी पड़ेगी, तभी उसे सही दिशा और मंजिल की राह दिखाई देगी। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सुख तो दो प्रकार के होते हैं, जिसमें एक होता है क्षणिक और दूसरा निरंतर चलने वाला सुखमय जीवन।
    मेहनत से मिलती है स्थायी उपलब्धि: अगर हमने एक बच्चे को टॉफी देकर कुछ देर के लिए खुशी दे दी और बाद में उसके हाथ खाली रहे तो ऐसी छोटी राह और सीमित सा लक्ष्य कोई मायने नहीं रखता। इसलिए अगर बच्चों को कोई सही राह दिखानी है और किसी ऐसी मंजिल तक पहुंचाना है जो उसके जीवन में स्थायी सुख ला सके, तो उसमें संस्कार, जिज्ञासा, महत्वाकांक्षा और कर्मठता का समावेश करते हुए नैतिक मूल्यों को बरकरार रखना भी बेहद जरूरी है। असल मायने उसी लक्ष्य को साधकर उपलब्धि हासिल करने के होते हैं, जिसके बदले मिलने वाली खुशियां हमारे जीवन में निरंतर बनी रहें। मगर यह सब तभी हासिल हो सकता है जब हम अपने अधिकारों, कर्तव्यों एवं सरोकारों को समझते हुए पूरी लगन और मेहनत से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहें। किसी तरह का बीच का रास्ता अपनाने का प्रयास करेंगे, तो भले ही मंजिल मिल जाएगी, मगर वह उपलब्धि हमारे जीवन में नियमित रूप से खुशियां सुनिश्चित नहीं कर सकती। क्योंकि इस तरह से पाई गई उपलब्धि से हमारे मन को संतोष नहीं मिल सकता।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बीरपाल सिंह, विद्यालय प्रमुख, राजकीय सर्वोदय बाल विद्यालय, पटपड़गंज, पूर्वी दिल्ली

    बड़ों की सीख भूलें नहीं

    हमें नियमित रूप से स्कूल जाना चाहिए और माता पिता सहित शिक्षकों की दी हुई सीख को कभी नहीं भूलना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे बड़े हमें जो कुछ सीख देते हैं वह अच्छे के लिए ही होती है। उन्हें हमसे अधिक अनुभव होता है। माता पिता तो हमें हमेशा समय से हर काम करने के लिए कहते हैं और समय पर ही खाने पीने, खेलने व पढ़ने को कहते हैं। हमें अपने माता पिता और शिक्षकों का कहना मानकर अच्छे से पढ़ाई करनी चाहिए, तभी हम आगे चलकर बेहतर व्यक्ति बन सकते हैं।

    तन्वी, कक्षा-6

    समय का बड़ा महत्व

    मम्मी पापा सुबह जल्दी उठकर सभी काम समय पर करने के लिए कहते हैं और जब हम ऐसा करते हैं तो उन्हें खुशी मिलती है। वे हमारे आदर्श हैं। इसलिए उनकी बात माननी चाहिए और इससे हमें भी हमेशा फायदा होता है, हम समय से स्कूल पहुंचते हैं तो हमारे शिक्षक भी खुश होते हैं। समय से हर काम करने वाले बच्चों की सभी तारीफ करते हैं और जो बच्चे रोज पढ़ाई करते हैं उनके परीक्षा में बहुत अच्छे नंबर आते हैं। इसलिए हमें रोज दो घंटे घर पर भी पढ़ाई करनी चाहिए।

    यशस्वी, कक्षा-3

    हम पढ़ेंगे तभी देश बढ़ेगा

    हमें जल्दी सोना और जल्दी जागना चाहिए और पढ़ाई से लेकर खेलकूद सभी काम करने चाहिए। इससे हम स्वस्थ रहते हैं और शरीर में सुस्ती नहीं रहती । मन लगाकर स्कूल में पढ़ाई करनी चाहिए क्योंकि वहां बहुत सारे बच्चों में शिक्षकों का ध्यान हर बच्चे पर नहीं जा पाता। इसके अलावा हमें घर पर भी निमयित रूप से सभी विषयों की पढ़ाई करनी चाहिए। इससे हर बार परीक्षा परिणाम बेहतर आएंगे और सभी का नाम रोशन होगा। बड़ों का सम्मान करना चाहिए। वह हमें हमेशा अच्छी सीख देते हैं।

    आयुष्मान, कक्षा-5

    संस्कारित होंगे बच्चे तो सुखी होगा उनका जीवन

    वर्तमान समय में अधिकतर बच्चों में पहले जैसे संस्कारों की कमी नजर आती है। उन्हें सही राह दिखाने की जिम्मेदारी शुरू अभिभावकों से होती है, मगर शिक्षकों पर आ जाती है। कई बार यह काम बेहद कठिन लगने लगता है और बच्चों में आक्रामकता अधिक देखी जाती है। इस बात में कोई दोराय नहीं है कि शिक्षकों पर आज दोहरा दबाव है। शिक्षण कार्य उनकी प्राथमिकता होता है, मगर नैतिकता के पतन से वह काफी हद तक प्रभावित होता है। अगर अभिभावक बच्चों को बेहतर संस्कार देने में सफल होते हैं तो शिक्षकों का कार्य आसान होता है और बच्चों का भविष्य भी उज्ज्वल होता है।

    अरुण कुमार, शिक्षक

    सुखमय जीवन के लिए संयमित व्यवहार जरूरी

    सरकारी स्कूलों की व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए अगर कोई नया प्रयास किया जाता है तो उसे खुद शिक्षकों का भी समर्थन मिलता है। मगर वर्तमान समय में शिक्षकों का सम्मान दाव पर लगा दिया जाता है, अगर बच्चों के सामने उनके शिक्षकों का सम्मान नहीं किया जाएगा तो उनमें बड़ों के आदर का भाव कहां से जागृत होगा। ऐसे में बहुत जरूरी है कि बच्चों में आदर्शो की नींव अच्छी हो और स्कूल में वह सिर्फ शिक्षा हासिल करने आएं। वह बात अलग है कि अबोध बच्चों को आगे की राह उनका गुरू ही दिखाता है, मगर बड़े बच्चों का व्यवहार स्कूलों में अच्छा नहीं होता। हम सभी की जिम्मेदारी है कि बच्चों को भटकने से रोकें।

    ज्ञानेंद्र सिंह मावी, शिक्षक

    सबकी सहभागिता से होता है बेहतर भविष्य निर्माण

    अगर हम सभी अपने स्तर पर बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का प्रयास करेंगे, तो निश्चित तौर पर उन्हें बेहतर भविष्य निर्माण में सहायता मिलेगी। मगर इससे पहले वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अभिभावकों, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों सहित विद्यालयों का भी वास्तविक स्वरूप बनाए रखने के लिए काम करना होगा। पुराने समय से चली आ रही शिक्षण पद्धति के मूल्यों के अच्छे हिस्से हमें आज भी अपने स्कूलों में लागू रखने होंगे और आधुनिक युग की शिक्षण प्रणाली के बीच सामंजस्य बैठाकर बच्चों का बेहतर चरित्र निर्माण करना होगा।

    अवधेश पराशर, शिक्षक

    पढ़ें- पाठ्यक्रमों में बदलाव की है जरूरत

    सुरताली के सुरीले सपने