खुशियों की उड़ान
चिया आज स्कूल से आते हुए फिर से लड़ने लगी थी। यह उसका रोज का काम था। स्कूल से लौटते समय वह लगभग सभी से लड़ती थी।
चिया आज स्कूल से आते हुए फिर से लड़ने लगी थी। यह उसका रोज का काम था। स्कूल से लौटते समय वह लगभग सभी से लड़ती थी। स्कूल बस में उसके घुसते ही और बच्चे कानाफूसी करने लगते थे। उसके पास कोई बैठना नहीं चाहता था। जो भी उसके पास बैठता, वह बाद में पछताता कि क्यों वह चिया के पास बैठा। पर चिया ऐसी क्यों थी? ये तो शायद चिया को भी नहीं पता था। चिया कक्षा चार में पढ़ने वाली बहुत प्यारी बच्ची थी, जो सबके लिए अच्छा करना चाहती थी। सबकी दुलारी बनना चाहती थी। अपनी मां की, अपने पापा की, अपनी क्लास टीचर की। वह होमवर्क भी समय से करती थी, घर पर मां का हाथ भी बंटाना चाहती थी, दादी के साथ मंदिर भी जाती थी। वह ये सब करती थी, सब उसे प्यार भी करते थे, मगर न जाने क्यों जब उसके सामने क्लास में नीति की तारीफ होती थी, तो वह चिढ़ जाती थी।
नीति उसके साथ पढ़ती थी और बहुत ही होशियार लड़की थी। उसके हमेशा अच्छे अंक आते थे। वह अन्य गतिविधियों में भी हिस्सा लेती थी। कक्षा में सबसे होशियार होने के साथ वह डांस में भी स्कूल का नाम रोशन करती थी, इसलिए नीति की तारीफ हर कोई करता था, जबकि चिया को यह पसंद नहीं था। जब चिया की मैडम नीति की तारीफ करतीं, तो चिया को लगता कि वह भी नीति की तरह क्यों नहीं है? आखिर नीति में ऐसा क्या खास है? नीति से कुछ सीखने की बजाय वह चिढ़ जाती और बस में जाकर झगड़ा करती। चिया परेशान-सी रहती थी, लेकिन उसकी परेशानी की वजह शायद नीति नहीं, वह खुद ही थी। इतनी प्यारी बच्ची के ऐसे गुमसुम होने और हमेशा लड़ने के कारण मां को भी चिंता होने लगी थी। एक दिन मां चिया को अपने साथ पार्क ले गईं। पार्क में चिया को बहुत अच्छा लगता था और वह चिड़िया की तरह उड़ने लगती थी। मां ने उससे पूछा, ‘चिया, तुम्हें पता है तुम्हारा नाम चिया क्यों है?’ ‘नहीं मां!’ उसने उत्तर दिया। ‘सोचो’, मां ने उकसाया। ‘मैं कैसे सोच सकती हूं, नाम तो आपने रखा है न!’ वह अपनी मां से लिपट गयी। ‘तुमने कभी चिड़िया देखी है?’ मां ने पूछा। ‘हां मां, रोज ही तो देखती हूं। सुबह-सुबह आती है, दाना लेकर चली जाती है।’ चिया बताते हुए चहक रही थी। ‘यहां चिड़िया दिख रही है?’ मां ने फिर पूछा। ‘हां, देखिये न आसमान में, कितनी चिड़िया हैं। सब उड़ रही हैं, एक नीचे बैठी है, वह भी उड़ जाएगी।’
चिया ने उत्तर दिया। मगर चिया को समझ में नहीं आ रहा था कि मां आखिर चिड़िया की बात क्यों कर रही हैं। वह चिड़िया देख रही थी। कैसे एक चिड़िया अपने पंख फैलाकर ऊपर जा रही थी। कुछ समूह कतारों में भी उड़ रहे थे। जैसे उसके स्कूल में विद्यार्थी सुबह- सुबह प्रार्थना करने के लिए कतारों में खड़े होते हैं। चिया को लगा कि वह भी उड़ना चाहती है। ‘मां, कितना अच्छा होता कि मेरे भी पंख होते, फिर मैं भी उड़ जाती, चिड़िया बनकर!’ उसने अपनी बड़ी-बड़ी आंखें फैलाते हुए कहा। ‘बेटा, हम सबके पंख होते हैं, हम सब उड़ सकते हैं!’ मां ने कहा। ‘हैं! झूठी मां! कैसे?’ चिया को भरोसा नहीं हुआ। ‘देखो, हम सब अपने लक्ष्य के साथ उड़ान भरते हैं। हमारे जो पंख होते हैं, वे होते हैं हमारे लक्ष्य। अगर हमारा कोई लक्ष्य नहीं हो, तो हम कभी कुछ नहीं कर पाएंगे और न ही खुश रह पाएंगे?’ मां ने कहा।
‘लक्ष्य के पंख?’ चिया अटक गयी। ये कैसे होते हैं? ये क्या होते हैं? चिया सोच रही थी। क्या वह भी लक्ष्य के पंखों के साथ उड़ सकती है। ये मां भी न कभी-कभी एकदम गजब ही बात करती हैं! ‘हां, लक्ष्य के पंख!’ मां ने कहा। ‘क्या तुमने कभी गौर किया है कि क्यों कुछ लोग हमेशा हंसते रहते हैं, हमेशा उनके चेहरे पर मुस्कान रहती है। जैसे तुम्हारी फेवरेट साइना नेहवाल! तुम्हें उसके जैसा बैडमिंटन खेलना पसंद है न!’ मां ने कहा। ‘हां मां, पसंद तो है! पर मैं अच्छा नहीं कर पाती हूं और फिर मैं चिड़चिड़ाने लगती हूं।’ चिया ने स्वीकार किया। ‘वो इसलिए, क्योंकि तुम्हें अभी वह पसंद है, मगर तुमने अभी लक्ष्य तय नहीं किया है कि तुम्हें बैडमिंटन में आगे जाना है या किसी और क्षेत्र में! बेटा, हम जब अपना एक लक्ष्य चुन लेते हैं, तो हम खुश रहने लगते हैं, सभी के साथ हंसते हुए बात करते हैं, जैसे नीति को ही देख लो!’ मां ने कहा। ‘मां, प्लीज नीति की बात नहीं।’ चिया फिर से चिढ़ गयी। मगर मां की बात उसे ठीक लगी। उसे लगा कि वह नीति से इतना इसीलिए तो चिढ़ती है कि वह हमेशा खुश रहती है, हंसती है। उसका लक्ष्य है डांस करना और वह उसमें इनाम जीतती है।
‘मां, लक्ष्य कैसे तय होता है?’ उसने पूछा। मां हंसी, ‘अरे बुद्धू, लक्ष्य तो तुम्हारे मन के अंदर से तय होता है। जैसे साइना ने तय किया होगा कि उसे बैडमिंटन खेलना है, जैसे सानिया मिर्जा ने तय किया कि उसे टेनिस खेलना है, जैसे नीति ने तय किया कि उसे डांस करना है। इन सबने अपने लक्ष्य के आधार पर ही तो अपना नाम किया है, उड़ान भरी है।’ उसे मां की बात अच्छी लगी। शायद उसकी ये चिड़चिड़ाहट नीति के लिए नहीं थी, यह चिढ़न उसके खुद के लिए थी। जिस दिन उसे पता चल जाएगा कि उसका लक्ष्य क्या है, वह सामान्य हो जाएगी। मगर तब तक क्या वह सबसे लड़ती और चिढ़ती-कुढ़ती रहेगी? चिया ने खुद से पूछा। उसे समझ आ रहा था कि मां उसे अपने साथ इस पार्क में क्यों लाई थीं, जिसमें इतनी सारी चिड़िया थीं। उसे चिड़ियों की उड़ान समझाने के लिए, चिड़ियों की खुशी भरी चहचहाहट समझाने के लिए, उसे यह बताने के लिए कि लक्ष्य की उड़ान के साथ वह सब कुछ पा सकती है। ‘क्या सोच रही है हमारी बिटिया’, मां ने पूछा। ‘कुछ नहीं! मां, मैंने तय किया है कि मेरा लक्ष्य इस समय खुश रहते हुए अपनी हर जिम्मेदारी उठाना होगा। खुश रहूंगी तो सब कुछ हासिल कर पाऊंगी। इन चिड़ियों की तरह उड़ पाऊंगी...’ कहती हुई वह मां से लिपट गयी।
गीताश्री
अभ्यास प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिख कर संस्कारशाला की परीक्षा का अभ्यास करें...
1. लक्ष्य निर्धारण क्यों जरूरी है?
2. साइना नेहवाल कौन-सा खेल खेलती हैं?
3. लक्ष्य से हम खुश कैसे हो सकते
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