प्रतिभा न तो कोई चुरा सकता है और न ही नष्ट कर सकता है
जितने विकट संकटों में है, जिनका जीवन सुमन खिला। गौरव गंध उन्हें उतना ही, यत्र तत्र सर्वत्र मिला।भारत जिन महान सपूतों के कंधों पर आकाश की ऊंचाइयों को छूने की क्षमता रखता है।
जितने विकट संकटों में है, जिनका जीवन सुमन खिला। गौरव गंध उन्हें उतना ही, यत्र तत्र सर्वत्र मिला।।भारत जिन महान सपूतों के कंधों पर आकाश की ऊंचाइयों को छूने की क्षमता रखता है, उन महापुरुषों ने अपने श्रेष्ठ कृत्यों द्वारा सम्पूर्ण समाज एवं विश्व के लिए अनुकरणीय मार्ग स्थापित किया। गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, गुरु गो¨वद सिंह, ईसा मसीह, पैगम्बर मोहम्मद साहब जैसी विभूतियों ने भयंकर परिस्थितियों में भी बिना विचलित हुए मानस को गहन तन्द्रा से जगाकर कर्तव्य और अधिकारों के प्रति सचेत किया। युवा अवस्था में भी सुख-सुविधाओं का मोह त्यागकर ये युग पुरुष अपने ज्ञान, प्रतिभा, साहस, संयम और संकल्प से दिशाहीन जगत को दिशा प्रदान करते हैं। शांति के समय में भी ये मानव मात्र के उत्थान के लिए संघर्षरत रहते हैं तथा अशांति के दौरान जन-मानस का मार्ग प्रशस्त करते हैं। वे नाना प्रकार की मानसिक तथा भौतिक पीड़ा सहकर भी अपने आदर्शो पर अटल रहते हैं और अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं। प्रतिभावान महापुरुषों के प्रति निष्ठा ही हमारे लिए प्रेरणा स्नोत बन जाती है। हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। प्रतिभा चाहे जैसी भी हो, कोई उसे न तो चुरा सकता है और न ही नष्ट कर सकता है। जिस प्रकार से हीरा कोयले की खान में भी अपनी छटा बिखेरता है उसी प्रकार प्रतिभावान व्यक्ति अपनी प्रतिभा से हर किसी को प्रभावित करता है।
इस प्रतिभा के परिणामस्वरूप व्यक्ति अपने नाम के साथ अपने परिवार, समाज और देश का नाम रोशन कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन अनेक सोपानों से होकर गुजरता है। पारंपरिक ब्राचर्य, गृहस्थ, संन्यास तथा वानप्रस्थ आश्रम में विभक्त ये चरण हमें मातृ, पितृ, ऋषि और देव ऋण पूर्ण करने को प्रेरित करते हैं। वर्तमान परिपेक्ष्य में हमें अपने परिवार, समाज, देश तथा ईश्वर के प्रति अपने दायित्वों को विस्मृत नहीं करना चाहिए। इसके बिना विश्व का कल्याण संभव नहीं है। हमारे जीवन का निर्माण लौकिक एवं अलौकिक शक्तियों द्वारा होता है। लौकिक शक्ति का संबंध भाग्य द्वारा होता है। किन्तु, यहां यह तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है कि श्रेष्ठ कर्मो से भाग्य का निर्माण होता है न कि भाग्य से कर्मो का। गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस में ठीक ही कहा है- करम प्रधान विश्व करि राखा। जो जसि करि सो तस फल चाखा।।कोई भी कार्य अस्वस्थ्य और रोगी शरीर से नहीं हो सकता। स्वस्थ्य व्यक्ति अपने मन और वाणी द्वारा कर्मो को पूर्ण कर सकता है। महाकवि कालिदास ने स्वस्थ्य शरीर को धर्म का सर्वप्रथम साधन बताते हुए कहा है कि शरीर माध्यम खुल धर्म साधनम। उल्लेखनीय है कि कालिदास अपने कठोर परिश्रम तथा श्रेष्ठ कर्मो के कारण ही संस्कृत साहित्य के विश्वविख्यात विद्वान बन गए जो पहले वज्रमूर्ख थे। इसी प्रकार डाकू रत्नाकर अपने कर्मो से डाकू था जो कालांतर में अच्छे कर्मो के कारण रामायण ग्रंथ के प्रणोता के रूप में महर्षि बाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
मानव जीवन की सफलता के लिए मानसिक, आत्मिक और शारीरिक शक्ति होने की आवश्यकता होती है। यदि मानसिक शक्ति प्रबल हो तो मनुष्य सूझ-बूझ से कार्य कर सकेगा। यदि मन में आशा, उत्साह, दृढ़ता, लगन, स्फूर्ति आदि के भाव हों तो किसी भी कार्य को सहजता से किया जा सकता है। ऐसा मनुष्य आशावादी होगा। पुस्तक सामने होने पर भी अनियंत्रित मन खेल के मैदान और दूरदर्शन के कार्यक्रमों में विचरता रहेगा। अर्थात मानसिक चंचलता प्रथम स्थान लेने का संकल्प करने के पश्चात भी विद्यार्थी को अन्य विकल्पों की ओर भटकाती है। बिखरी हुई मनोवृतियों को समेटने के लिए समस्त इन्द्रियों को भीतर की ओर ले जाकर एक केन्द्र पर केन्द्रित करना होगा। उचित खान-पान, वार्ता तथा दर्शन से मन संयमित हो सकता है। भगवान श्री कृष्ण के अनुसार चंचल मन को अभ्यास तथा वैराग्य द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। अनेक महापुरुषों ने मन को जीतकर संसार पर विजय प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त परिश्रम से साध्य, आत्मिक शक्ति से हृदय पवित्र होता है तथा संकल्पों में दिव्यता आती है। परिश्रमी व्यक्ति को ऐश्वर्य तथा उन्नति की प्राप्ति होती है। सफलता उस मनस्वी को उज्जवल बना उसके चरणों में लोटने लगती है। स्वामी विवेकानंद जी शारीरिक शक्ति पर जोर देते हुए युवाओं का आहवान करते हैं कि उनकी मांसपेशियां लोहे की बनी हों, नसें फौलाद तथा मस्तिष्क उस पदार्थ का हो जिससे गगन में कौंधने वाली बिजली उत्पन्न होती हो। खेलकूद से घबराहट व सुस्ती दूर होती है। मानव जीवन उत्थान में परिश्रम, पुरुषार्थ और साधना का महत्व है। परिश्रम वह शक्ति है जिसके लेप से पत्थर भी सजीव हो उठता है और मिट्टी सोने में परिवर्तित हो जाती है।
प्रो.डी.डी. चतुर्वेदी , गुरू गोविंद सिंह कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पीतमपुर
देश मे सभी लोग समान हो
हम सब भारतीय हैं और हमें भारतीय होने पर गर्व है। भारत में हम सभी लोगों को एक समान समझा जाता है। देश विकास कर रहा है। बड़ा होकर मैं अच्छे से पढ़ाई कर अपने देश में ही काम करूंगा और ऐसा काम करूंगा कि दूसरे लोग भी उससे प्रेरणा लेकर देश के विकास के लिए मिलकर काम करें।
पारस, कक्षा-4
सबके योगदान से ही बढ़ेगी देश
हमें सुंदर और सुरक्षित माहौल में जीवन जीने का अवसर मिला है। हमारे माता-पिता हमेशा कुछ नया करने के लिए प्रेरित करते हैं। कुछ गलत लोगों की वजह से अव्यवस्था है, ऐसे लोगों को सही राह दिखाकर अच्छे काम करने के लिए प्रयास करना चाहती हूं। किसी को कभी गलत रास्ते पर नहीं जाना चाहिए।
स्नेहा, कक्षा-4
जीवन में कर्तव्य निभाए
हमें अपने माता-पिता और शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए। हमें सबसे अच्छा काम करना चाहिए, खूब पढ़ाई करके अच्छे नंबर लाने होंगे। इससे हमारे माता-पिता के साथ ही स्कूल का नाम रोशन होता है और अच्छे बच्चों को सभी लोग प्यार करते हैं। मैं चाहता हूं सभी को अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य मिले।
सम्राट, कक्षा-2
समाज के प्रति समर्पण की भावना ह
मनुष्य जीवन देने के साथ ही ईश्वर ने सभी को कुछ न कुछ दायित्व भी दिए है। जिसको पूरा करना हम सभी का कर्तव्य है। मेरे जीवन की इच्छा थी कि मैं शिक्षक बनूं और समाज में अपना योगदान दूं। जिससे समाज में फैली बुराइयों को दूर कर एक अच्छी संस्कारित पीढ़ी का निर्माण कर सकूं। मुङो खुशी है कि आज मैं अपनी इच्छा के अनुसार काम कर रही हूं। मैंने अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर देश और समाज के प्रति समर्पण की भावना जागृत की। समर्पण की भावना से ही हम देश और समाज को कुछ दे सकते है।
परवीन शर्मा, अध्यापिका।
समाज की बेहतरी के लिए करें काम
मानव एक बुद्धिशील प्राणी है। जिसे सोचने-समझने की शक्ति भगवान ने प्रदान की है। आज हमारे सामने असंख्य मार्ग खुले हुए है। मेरा एक उद्देश्य है कि मैं समाज में अपना योगदान दूं। मेरा देश गांवों का देश है। मैं एक अध्यापिका होने के नाते एक ऐसी पौध तैयार कर सकूं, जो मेरे इस गांव के देश को हरियाली प्रदान करें। ऐसे सच्चे नागरिक बनाऊं जो किसी भी क्षेत्र में जाए तो पुष्प की भांति भारत को महकाए, सजाए और संवारे। समाज की बेहतरी के लिए सभी को आगे आकर काम करना चाहिए।
मोनी शर्मा, अध्यापिका।
पसंदीदा काम कर निभा सकते है दायित्व
हम जो भी काम करने के लिए चयन करें। उसको आनंद के साथ करें। कई बार हम कठिनाइयां आने पर काम बीच में ही छोड़ देते हैं। अध्यापक होना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। जो कार्य एक अध्यापक कर सकता है वह अन्य कोई दूसरा नहीं कर सकता। एक जिम्मेदार अध्यापक के हाथ में समाज व देश के नागरिकों का निर्माण करने का योगदान होता है। वह व्यक्ति को न केवल पहचान देता है बल्कि उसकी जीवन शैली को भी बदल देता है। अपने पसंदीदा काम के चलते ही मैं अपने दायित्वों को पूरा करने में सफल हो पा रहा हूं।
उमेश कुमार, अध्यापक
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