सपनों के आकाश में लक्ष्य के तार
ऋत्विक को खुला आसमान बहुत पसंद था। उसे लगता था कि उसके पंख होते तो वह उड़ जाता और खूब उड़ान भरता। वह स्कूल से आने के बाद कोचिंग जाता...
ऋत्विक को खुला आसमान बहुत पसंद था। उसे लगता था कि उसके पंख होते तो वह उड़ जाता और खूब उड़ान भरता। वह स्कूल से आने के बाद कोचिंग जाता और वहां से आने के बाद अपने घर के आसपास साइकिल से खूब चक्कर लगाता और अपने कस्बे की छोटी गलियों से इतने बड़े आसमान को देखता। छत पर लेटकर वह तारे गिनता। उसे हर तारे की दिशा पता थी। ऋत्विक को तारे देख-देखकर यह पता चल गया था कि कौन-सा तारा कितने बजे, कहां मिलेगा। उसे पता था कि उसे इन आसमानों की सैर करनी है, मगर वह कैसे सैर करेगा, सवाल यह था?
ऋत्विक के पापा नहीं थे और मां ही किसी तरह से उसकी पढ़ाई करा पा रही थीं। कपड़ों की सिलाई करने वाली उसकी मां उसके आसमान छूने के सपने कैसे पूरे कर सकती हैं? और वह कैसे अपनी मां से कहे? ऋत्विक को लगता था कि पायलट बनने का उसका सपना, सपना ही बनकर रह जाएगा। अपनी मां पर वह बोझ नहीं डालना चाहता था और पायलट भी बनना चाहता था। उसकी मां भी शायद उसके सपनों की उड़ान को समझती थीं, मगर बहुत कुछ न कर पाने के कारण मन मसोस कर रह जाती थीं। धीरे-धीरे ऋत्विक चिड़चिड़ा रहने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि दसवीं की अपनी कक्षा में सबसे ज्यादा अंक लाने वाला बच्चा कक्षा ग्यारह में ग्रेस माक्र्स से पास हुआ। ऋत्विक को खुद भी बहुत बुरा महसूस हो रहा था। उसे लग रहा था जैसे उसने किसी के साथ धोखा कर दिया हो। उसके फिजिक्स के शिक्षक वसीम बहुत ही समझदार थे और वह शायद समझ रहे थे कि ऋत्विक की परेशानी क्या है! वह इतने होनहार बच्चे को टूटते हुए नहीं देखना चाहते थे। ऋत्विक में उन्हें अपना बचपन दिखाई देता था। उन्हें भी अपने सपने मारने पड़े थे, मगर सपनों और लक्ष्य में अंतर होता है, उन्होंने सपने तो देख लिए थे, मगर उसे लक्ष्य में शायद नहीं बदल पाए थे। वह ऋत्विक को सपने और लक्ष्य का
अंतर समझाना चाहते थे। ऋत्विक की मां भी उनसे बात करने आई थीं और वह ऋत्विक को लेकर बहुत चिंतित भी थीं। वह नहीं चाहती थीं कि उनका बेटा कुंठित हो जाए। वह उसका सपना पूरा करने के लिए अपना घर और गहने सब बेचने के लिए तैयार थीं। एक दिन जब ऋत्विक कोचिंग से लौट रहा था, तो वसीम सर उसे नाले की पुलिया पर ही मिल गए। वसीम सर, ऋत्विक के सबसे मनपसंद शिक्षक थे। मगर वह बेवजह ज्यादा बात नहीं करते थे। वसीम सर उससे बात करना चाहते हैं, इसका मतलब कुछ खास ही होगा।
‘लस्सी पियोगे?’ वसीम सर ने पूछा। ‘जी सर।’ उसने सिर झुकाकर जवाब दिया। कस्बे की सबसे बढ़िया लस्सी की दुकान पर दोनों ने लस्सी पी और फिर नदी किनारे जाकर बैठ गए। वहां से आसमान बहुत साफ दिखता था। सर ने आसमान की तरफ इशारा किया, ‘यही है न तुम्हारा सपना!’ ऋत्विक को लगा, जैसे किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो। वह रोने लगा, ‘जी सर, मैं आसमान की ऊंचाइयां छूना चाहता हूं। मैं पायलट बनना चाहता हूं। मैं उड़ना चाहता हूं।’ वसीम सर ने उसे खूब रो लेने दिया और जब वह चुप हो गया तो उन्होंने पूछा, ‘चाहना तो ठीक है, मगर तुम खुद क्या कर सकते हो इसके लिए?’ ‘मैं? मैं क्या कर सकता हूं, मतलब सर? मेरी मां के पास मेरी पढ़ाई के लिए पैसे नहीं हैं और मैं उस पर ज्यादा बोझ नहीं डाल सकता।’ ‘यह मेरे सवाल का जवाब नहीं हुआ। तुम्हारी मां आई थीं मेरे पास, बोल रही थीं कि वह अपने बेटे के सपने के लिए अपना घर और गहने सब बेच देंगी। वह तो कर देंगी सब, मगर तुम क्या कर सकते हो? क्या यह तुम्हारा सपना है या लक्ष्य?’
‘लक्ष्य? सपने और लक्ष्य में क्या अंतर होता है सर?’ ऋत्विक थोड़ा भ्रमित लगा। ‘देखो ऋत्विक, सपने तो हम में से तमाम लोग इस जिंदगी में देखते हैं, मगर लक्ष्य कुछ ही होते हैं। जैसे अब्राहम लिंकन का रहा होगा, अपने मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम का रहा होगा! कल्पना चावला का रहा होगा। इन सबके पास सपने थे और लक्ष्य भी, तो तमाम बाधाओं को दूर करते हुए भी इन्होंने अपना आसमान बनाया। तुम कैसे अपने पायलट बनने के सपने को लक्ष्य बनाकर पूरा कर सकते हो?’ ‘मैंने तो इस तरह से सोचा ही नहीं था सर! कलाम सर तो बहुत ही गरीब थे, शायद मुझसे भी ज्यादा, फिर भी उन्होंने मिसाइल बनाकर भारत की रक्षा करने का लक्ष्य हासिल किया। तो क्या सर, मैं भी अपनी गरीबी से परे जाकर पायलट बन सकता हूं?’ ‘जरूर बन सकते हो, गरीब होना संभावनाओं और सपनों को मारना नहीं होता! क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारे इस तरह ग्रेस माक्र्स लाने से तुम्हारी मां पर क्या गुजरी है? और जब-जब उसे यह अहसास होता है कि तुम उसके कम पैसों के कारण दुखी हो, तो उसे कैसा लगता होगा?’ ‘ओह सर! मुझे माफ कर दीजिए। मुझे तो पता ही नहीं चला था कि कैसे मैं अपनी मां को दुखी कर रहा हूं। मैं भूल गया था कि अगर इंसान चाहे तो सब कुछ कर सकता है। लक्ष्य होना चाहिए। आप बताइए सर, मैं कैसे और क्या कर सकता हूं?’
ऋत्विक का चेहरा पश्चाताप से भरा हुआ था। ‘दुखी मत हो, अपनी मां से माफी मांगो! और देखो कि तुम कैसे उनकी मदद कर सकते हो। लक्ष्य का मतलब होता है उड़ान भरना, मगर उस उड़ान में नीचे जरूर देखते रहना। अपने लोगों के साथ बने रहना।’ ‘समझ गया सर। मैं भटक गया था। मुझे समझ में आ गया कि सपने और लक्ष्य दोनों में क्या अंतर है। अब मेरा लक्ष्य है, न केवल अपनी उड़ान हासिल करना, बल्कि अपनी मां को भी खुशी देना।’ नदी के किनारे से लौटने के बाद अपनी मां के पास जाकर ऋत्विक ने वादा किया कि वह मन लगाकर पढ़ेगा और उसके कारण उन्हें अब और तकलीफ नहीं होगी। मां ने उसे गले लगाते हुए कहा, ‘बेटा, मेरा सपना हमेशातुम्हें खुश देखना है ।’
गीताश्री
अभ्यास प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिख कर संस्कारशाला की परीक्षा का अभ्यास करें...
1. वसीम सर ने ऋत्विक को क्या मंत्र दिए कि उसकी सोच बदल गई?
2. लक्ष्य और सपने में क्या अंतर है?
3. हम अपना लक्ष्य कैसे हासिल कर सकते हैं ?
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