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    आज देश में सदियों पुरानी परंपरा को बचाए रखने की है चुनौती

    मानवता इस कदर विक्षिप्त हो चुकी है कि जन्म देने वाले माता-पिता बुढ़ापे में धक्के खाने को मजबूर हैं। पति-पत्नी के बीच प्रेम और सम्मान नहीं है, जिससे तलाक के मामले बढ़ रहे हैं।

    By Rahul SharmaEdited By: Updated: Wed, 21 Sep 2016 09:32 AM (IST)

    रिश्तों की गरमाहट में कमी, संबंधों की मजबूत नींव का ढहना, आदर-स्नेह की कड़ी का कमजोर होना, सामाजिक-सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को लेकर निराशा, इसे किसी भी तरह से देश के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता है। आज मान-सम्मान और नैतिकता का सवाल उठना लाजमी है, जिसकी जड़ें नब्बे के दशक में खाद-पानी पाकर विकसित होने लगी थीं। इस आहट को सुनते-सुनते 21वीं सदी ने दस्तक दे दी। सबसे अधिक युवाओं के इस देश में मंडराते संकट मंथन के विषय बन गए। सदियों पुरानी परंपरा को संयोजित-संचित करने और बचाए रखने की चुनौती साफ महसूस की जा सकती है।
    1990 से आर्थिक आजादी की शुरुआत हुई। इसके साथ ही उदारीकरण, भूमंडलीकरण और उपभोक्तावाद का दौर चल पड़ा। कुछ मामलों में यह भारतीय समाज पर विपरीत असर भी डाल रहा है। संचार साधनों के दौर में बहुत सारी अच्छी बातें सामने आई हैं, जो देश को विकास की दिशा में आगे ले जा रही हैं। जैसे ही इसका दुरुपयोग शुरू होता है, इस और अभिभावकों और शिक्षकों को ध्यान देना चाहिए।
    हम बचपन से पढ़ते-सुनते रहे हैं कि सम्मान और नैतिकता का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे देश में कई विभूतियां रही हैं। यहां के कण-कण में ईश्वर का निवास है। बच्चों के हृदय में भगवान के दर्शन होते हैं। भाई-भाई में राम-भरत जैसा स्नेह देखने को मिलता रहा है। माता-पिता में ईश्वर दिखते थे। गरीब, कमजोर व्यक्ति का भी सम्मान किया जाता रहा है। जब से देश में पश्चिमी सभ्यता का आगमन हुआ, हमारी नैतिकता, मूल्य, संस्कार और परंपराओं का लगातार ह्रास हो रहा है।
    सम्मान प्राप्त करने के लिए इंसान हमेशा से ही मजदूर की तरह लगा रहा है। सड़क पर काम करने वाला भी अपने सम्मान को सबसे ऊपर रखता है, लेकिन सर्वाधिक ऊंचाई पर, सबसे आगे निकलने की चाह में हम अपनी नैतिकता को लगभग खो चुके हैं। नीति की उपयोगिता से ही नैतिकता का जन्म होता है, लेकिन आज नीति कहीं नजर नहीं आती है।
    पहले लोग एक छत के नीचे मिल-जुलकर प्रेम-भाव से रह लेते थे, लेकिन जैसे-जैसे घर बड़े होते गए दिल में जगह कम होती गई। प्यार और सम्मान खत्म होता जा रहा है। जैसे-जैसे विकास यात्र आगे बढ़ी, वैसे-वैसे हमारी संस्कृति का ह्रासहोता गया।1परिवार, समाज की कोई ऐसी इकाई बाकी नहीं है, जहां नैतिकता सवालों के घेरे में न हो? न बच्चे माता-पिता का सम्मान करते हैं और न ही माता-पिता अपनी जिम्मेदारी निभा पा रहे हैं। भाई-भाई में प्यार बाकी नहीं रह गया है। भाई-बहन का प्यार कहीं खो गया है। सम्मान को लेकर सबसे अधिक कलह यदि कहीं देखने को मिल रही है तो वह है पुरस्कार। गुटों में बंटे लोग दूसरे समूह के व्यक्ति का आदर करने से परहेज करते हैं। एक दौर था जब तमाम विरोध के बावजूद लोग प्रतिद्वंद्वी की प्रतिभा का भी गुणगान करते थे, अब ऐसा नहीं है। ईमानदारी-नैतिकता को ताक पर रखकर कुछ लोग अंधी दौड़ में शामिल हैं। रिश्तों में नैतिकता बाकी नहीं बची है, तभी तो सड़क पर पड़े आखिरी सांस गिन रहे व्यक्ति को सब देखते रहते हैं, लेकिन मदद के लिए आगे नहीं आते हैं।
    मानवता इस कदर विक्षिप्त हो चुकी है कि जन्म देने वाले माता-पिता बुढ़ापे में धक्के खाने को मजबूर हैं। पति-पत्नी के बीच प्रेम और सम्मान नहीं है, जिससे तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। मानव जीवन की धारा दूषित हो चुकी है और नैतिकता और सम्मान मूलक इसके दो किनारे पूर्णत: क्षत-विक्षत हो चुके हैं। परिणामस्वरूप हमारा भविष्य भटकाव की दिशा में जा रहा है, जहां रोशनी की किरण क्षीण होती जा रही है। हमें फिर से पुरानी संस्कृति की ओर लौटना होगा, जहां सभी के लिए दिल में जगह और भाईचारा था।
    डॉ. सुनीता, सहायक प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय

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    माता-पिता की मानती हूं बात
    हमारे माता-पिता हर समय सही रास्ते पर चलने की शिक्षा देते हैं। जब भी मैं जिद करती हूं तो वे शांत भाव से समझाते हैं और ऐसा नहीं करने के लिए कहते हैं। मैं भी उनकी बात मान लेती हूं। माता-पिता हमारे भले के लिए कोई बात कहते हैं या हमें सलाह देते हैं। इसलिए हमें उनकी बातों को गंभीरता से सुनना चाहिए और उसका पालन करना चाहिए।
    अनन्या देवलाल, कक्षा-तीन, कमल पब्लिक स्कूल विकासपुरी

    बड़ों का हमेशा सम्मान करना चाहिए
    मेरे घर में सभी बड़ों का आदर करते हैं। घर और स्कूल में भी हमें बड़ों का सम्मान करने की बातें सिखाई जाती हैं। अपने से छोटे और बड़ों के साथ हर समय आदर के साथ बात करने को कहा जाता है। ऐसा करने से सभी लोग हमसे खुश रहते हैं। हमें बड़ों का सम्मान जरूर करना चाहिए और उनकी बातों को मानना चाहिए। बड़े हमेशा अच्छी सलाह ही देते हैं।
    कपिल, कक्षा-4, होली कान्वेंट पब्लिक स्कूल

    अच्छे संस्कार होना बहुत जरूरी
    अच्छी पढ़ाई के साथ-साथ हमारे अंदर अच्छे संस्कार भी होने जरूरी हैं। अगर हम बड़ों का आदर नहीं करेंगे तो लोग हमें पसंद ही नहीं करेंगे और ऐसे में हमारे संस्कार भी अच्छे नहीं रहेंगे। यह बात घर के सदस्य और स्कूल में शिक्षक हमें बताते हैं। हम भी उनकी बातों को ध्यान से सुनकर उसपर अमल करने का प्रयास करते हैं।
    सुहानी, कक्षा-4, होली इनोसेंट पब्लिक स्कूल

    बच्चों की हर गतिविधि पर नजर रखनी चाहिए
    संस्कार एक सतत प्रक्रिया है। हम जहां रहते हैं उसके आसपास कामाहौल कैसा है यह देखना बहुत जरूरी है। अगर हमारे आसपास रहने वाले लोग असामाजिक गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं तो वहां रह रहे अन्य लोगों पर भी विपरीत असर पड़ेगा। खासकर बच्चों पर इसका सीधा असर पड़ता है। ऐसे में अभिभावकों को ध्यान देने की जरूरत होती है। हमें बच्चों की हर गतिविधि पर नजर रखनी चाहिए जिससे कि अगर वह कोई गलती करते हैं तो तुरंत उनको रोका जाये और उन्हें सही मार्ग पर लाया जाये।
    उमेश कुमार मिश्र, शिक्षक, गवर्नमेंट सवरेदय को-एड सीनियर सेकेंड्री स्कूल पोसंगीपुर


    छात्र शिक्षक के व्यवहार से ही सीखते हैं

    शिक्षक और छात्र के बीच एक गहरा संबंध होता है। छात्र शिक्षक के व्यवहार से ही सीखते हैं। अगर शिक्षक अपनो से बड़ों का आदर नहीं करते हैं तो छात्र भी आदर नहीं करेंगे। ऐसे में माहौल खराब होगा। जो लोग बड़ों का आदर नहीं करते उनके संस्कार भी दिनोदिन गिरते चले जाते हैं। शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों की हर गतिविधि पर नजर रखें और उन्हें बड़ों का आदर करने के लिए सतत प्रेरित करें। जो बच्चा बड़ों की आदर करेगा उसके संस्कार भी अच्छे होंगे।
    कमलेश मीणा, उप्रधानाचार्य, पोसंगीपुर स्कूल

    लोगों में संयम की कमी हो गई है
    आजकल लोगों में संयम की कमी हो गई है। इस कारण ही आए दिन रोडरेज सहित कई घटनाएं सुनने को मिलती हैं। संयम की कमी होने से लोग कभी-कभी अपने से बड़ों से भी अशोभनीय बातें कह देते हैं जो कि बिल्कुल गलत है। जिंदगी में कई घटनाएं होती हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम सभी मर्यादाएं तोड़ दें। मर्यादा में रहकर ही हम सभी समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं। माता-पिता को भी इसको लेकर ध्यान रखने की जरूरत है।
    अनिल शूर, राजकीय सवरेदय बाल विद्यालय ए ब्लॉक, विकासपुरी

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