हर उम्र वर्ग में नवीनतम तकनीक की समझ जरूरी
यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि विद्यार्थियों के निजी जीवन पर आधुनिक तकनीक का सकारात्मक असर पड़े, नकारात्मक न पड़ सके।
आधुनिक युग में भले ही तकनीक की दृष्टि से देश और दुनिया बहुत ही आगे निकल चुकी है, मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसका दुरुपयोग कर अपना या किसी दूसरे का नुकसान कर बैठें। आज युवाओं को यही संदेश देने की जरूरत है कि इंटरनेट की दुनिया में अधिक सक्रिय रहने वाले लोगों को कई बार नुकसान झेलना पड़ता है। ऐसे में यह संदेश आगे तक ले जाने की जिम्मेदारी पहले प्रथम गुरु माता-पिता और फिर अध्यापकों के कंधों पर पहुंचती है। मगर यहां हम यह बिल्कुल नहीं कहेंगे कि बच्चे इंटरनेट का इस्तेमाल न करें। हां, इतना जरूर सुनिश्चित करने की जरूरत है कि विद्यार्थियों के निजी जीवन पर तकनीक का सकारात्मक असर पड़े, नकारात्मक न पड़ सके।
जीवन के हर मोड़ पर काम आता है अनुशासन युवाओं को यह समझना होगा कि अच्छाई और बुराई सिर्फ तेज रफ्तार से भागती उच्च स्तरीय तकनीक से संपन्न आधुनिक युग में ही नहीं, बल्कि हम सभी के भीतर जन्म से मृत्यु तक बनी रहती हैं। मगर किसी काम को करने पर नकारात्मक परिणाम तभी सामने आते हैं जब हम अच्छे या फिर बुरे कर्म की भी सीमा लांघ जाते हैं। हमारे बड़े बुजुर्गों ने भी हमेशा यही संदेश दिया है कि किसी भी चीज की अति कभी बेहतर परिणाम नहीं दिला सकती। यही इंटरनेट के बारे में भी हमें छात्र-छात्राओं को भी समझाना है। हम इसीलिए हमेशा कहते हैं कि संस्कार और शिष्टाचार के मायने कभी नहीं बदलते। भले ही दुनिया आज चांद पर पहुंच चुकी है, मगर अनुशासन और नियमों के पालन से ही सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं।
बच्चों को सिखाएं मर्यादा निभाने की कला
इसी कड़ी में हम बच्चों से यह भी कहना चाहेंगे कि अगर दुनिया साइंस की तरक्की, आधुनिक तकनीक, इंटरनेट, सोशल मीडिया और मोबाइल आने से एक छोटे से परिवार में तब्दील हो चुकी है, तो हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि पहले ही बड़े बुजुर्ग ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की परिभाषा दे चुके हैं। तेज रफ्तार से दौड़ती ऑनलाइन दुनिया पलक झपकते ही संदेशों को एक छोर से दूसरे छोर में पहुंचा रही है। उन्नत तकनीक से हमारे वाहनों की रफ्तार भी इतनी हो चुकी है कि चंद लम्हों में जमीन से आसमान तक की दूर तय करने लगे हैं। मगर इतना सब होने के बावजूद हम इस सच्चाई से दूर नहीं भाग सकते कि मर्यादा में रहना हमेशा लाभदायक होता है। यहां हम आध्यात्मिक दृष्टि से भी देखें तो भगवान श्रीराम सतयुग में ही मर्यादाओं में रहने की सीख दे चुके हैं, इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।
गलत राह की ओर बढ़ते बेटों को टोकें
आज हम कम समय में बहुत कुछ पाने के लिए तमाम तरह की मर्यादाएं लांघ जाते हैं और फिर उसके दुष्परिणाम तो सामने आएंगे ही, क्योंकि अंत में हर एक कामयाबी और असफलता की भी सीमा निर्धारित होती है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अत्यधिक समय तक सक्रिय रहने से स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचता है। दिमाग पर तो जोर पड़ता ही है, आंखों पर भी असर होता है और हम उन असामाजिक तत्वों की नजर में भी आ सकते हैं, जो ऑनलाइन रहकर अपने शिकार ढूंढते हैं और साइबर अपराध को अंजाम देते हैं। इसपर विचार करने की जरूरत है और खास तौर पर बेटों को गलत दिशा में जाने से रोकना होगा, जिनके भटकने की संभावना अधिक होती है। उन्हें बताएं कि इंटरनेट का इस्तेमाल अपनी सामान्य जरूरतों के लिए ही करें।
सावधानी से हो तकनीक का इस्तेमाल
बेटियों को दें संस्कार, शिष्टाचार और संयम निभाने का हुनर
बच्चों को बताते रहना चाहिए कि काल चक्र घूमता है और हम कलयुग में जीवन बिता रहे हैं, मगर जीवन की सफलता का सूत्र हमारे संस्कार, शिष्टाचार, मर्यादा, संयम, समझ और सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता पर ही निर्भर रहती है। ठीक यही सब बातें डिजिटल, ऑनलाइन और इंटरनेट की दुनिया पर भी लागू होती हैं। अच्छे व बुरे परिणाम हमारी खुद की समझ एवं कर्मों पर आधारित होते हैं। पहले फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राफ और वाट्सएप नहीं थे, तो हमारी दुनिया सीमित दायरे में थी और निजता के हनन का इतना भय भी नहीं था। ऐसे में विशेष तौर पर बेटियों को अधिक सतर्कता से सोशल साइट्स का इस्तेमाल करना चाहिए। इसीलिए बच्चों में इस बदलती दुनिया के बीच भी पूर्वजों के अनुभवों पर आधारित इन कहावतों सहित अपने देश की संस्कृति, परंपराओं और संस्कारों का प्रसार करना बेहद जरूरी है, ताकि बच्चों की खुद की समझ इतनी विकसित हो कि भले बुरे का अंतर समझकर वह सर्वश्रेष्ठ निर्णय ले सकें। इसके लिए परिवार के सदस्यों को भी सोशल साइट्स और एप की गुणवत्ता के बारे में बच्चों को शिक्षा देना चाहिए।
- डॉ. राजेश्वरी कापरी, प्रधानाचार्य, राजकीय उच्चतर माध्यमिक बालिका विद्यालय, सोनिया विहार।
शिक्षा में करें उपयोग
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर तो लोग कम समय देते हैं, मगर वाट्सएप आने के बाद हर वक्त युवाओं को ऑनलाइन रहने का शौक लगा रहता है। वाट्सएप पर हमें बेवजह के ग्रुप से नहीं जुड़ना चाहिए। अपने दोस्तों से पढ़ाई की जानकारी साझा करने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
- सुयश, छात्र, लवली रोज सीनियर सेकेंडरी स्कूल।
सावधानी बरतनी जरूरी
डिजिटल तकनीक आज हमारे जीवन का हिस्सा बन गई है, जिसकी वजह से बहुत से काम बेहद कम समय में हो जाते हैं। आज हम दुनिया के किसी कोने में घटी घटना के बारे में चंद सेकेंडों में जानकारी हासिल कर सकते हैं। इंटरनेट के इस्तेमाल में सावधानी बरतना जरूरी है।
- सोनाक्षी, सेंट सोमस स्कूल।
इंटरनेट का सही उपयोग
इंटरनेट का इस्तेमाल अगर सही दिशा में किया जाए, तो इसका शिक्षा की दृष्टि से भी कोई मुकाबला नहीं है। ऑनलाइन आकर छात्रों को बड़ी से बड़ी और दुर्लभतम जानकारी बेहद जल्द व अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध हो सकती है। इंटरनेट का सही इस्तेमाल हो।
- पंकज दास, छात्र, सर्वोदय बाल विद्यालय, लक्ष्मी नगर।
विद्यार्थी को मिले उचित शिक्षकों से मार्गदर्शन
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इंटरनेट से हम सभी के जीवन में बहुत सी सुविधाएं बढ़ी हैं। मगर इसके दुष्प्रभाव भी किसी से छुपे नहीं हैं। ऐसे में हम बच्चों को यही बताते हैं कि इंटरनेट का इस्तेमाल तभी करें, जब आपको उसकी अधिक जरूरत पड़े। भले ही आज हमारे देश में डिजिटल इंडिया और ऑनलाइन संचार को बढ़ावा दिया जा रहा है, मगर इसकी सबसे बड़ी वजह सकारात्मक प्रभाव ही रहे हैं। ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि माता पिता से लेकर शिक्षकों तक बच्चों को इस दिशा में उचित मार्गदर्शन मिले, ताकि वह सही राह पर चल सकें।
- निशा शर्मा, शिक्षक, नगर निगम प्रतिभा विद्यालय, मोहनपुरी।
अभिभावको की निगरानी में बच्चे करें इंटरनेट का प्रयोग
जो लोग सोशल मीडिया पर अधिक सक्रिय रहते हैं उन लोगों को अक्सर साइबर अपराधों का शिकार होते देखा गया है। कई युवाओं का तो सोशल नेटवर्किंग साइट्स की वजह से पूरा जीवन प्रभावित हो जाता है। खासतौर पर महिलाओं को इस तरह की घटनाओं का शिकार अधिक होना पड़ता है क्योंकि कई हैकर उनकी साइट्स और आइडी हैक करके उनकी तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करके वायरल कर देते हैं। हाल ही में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं। अभिभावको की निगरानी में बच्चे इंटरनेट का प्रयोग करें।
- संदीप कुमार, शिक्षक, राजकीय उच्चतर माध्यमिक बाल विद्यालय, हस्तसाल।
संस्कारों में पिरोएं सही गलत का हुनर
हम यह नहीं कहते कि बच्चों पर किसी तरह की बंदिश लगाई जाएं, उन्हें सीखने के लिए हर एक उच्च तकनीक एवं डिजिटल दुनिया से रूबरू रखना चाहिए। हां, इतना जरूर है कि बच्चों को इंटरनेट के उस पहलू से दूर रखा जाए, जो उनके लिए खतरनाक हैं। बच्चों को भावों और विचारों की आजादी मिलनी चाहिए, डिजिटल इंडिया का बहुत बड़ा योगदान विद्यार्थियों का बेहतर भविष्य बनाने में होता है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने बच्चों के संस्कारों में ही सही व गलत चुनने का हुनर पिरो सकें।
- एकता शर्मा, शिक्षक, राजकीय उच्चतर माध्यमिक बालिका विद्यालय, सबोली।
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