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    यादें करवाचौथ की

    By Babita kashyapEdited By:
    Updated: Tue, 18 Oct 2016 04:34 PM (IST)

    हर सुहागन स्त्री के लिए प्रेम का प्रतीक करवाचौथ एक अलग मायने रखता है। कुछ महिलाओं ने संगिनी के साथ शेयर कीं करवाचौथ से जुड़ी अपनी यादें...

    प्यार जताने का मिलता है मौका...

    लखनऊ के राममनोहर लोहिया हॉस्पिटल में डाइटीशियन, नीलम गुप्ता कहती हैं, पति-पत्नी का रिश्ता है ही इतना प्रगाढ़ कि कितना भी मनमुटाव और तनाव क्यों न हो, एक-दूसरे को कभी परेशानी में अकेला नहीं छोड़ते हैं। ऐसे मौकों पर ही पता चलता है कि वे एक-दूसरे से कितना प्रेम करते हैं। नीलम कहती हैं, हमारी शादी को 25 साल बीत चुके हैं, लेकिन लगता है कि हम अभी भी नवविवाहित हैं। मेरे पति भी राममनोहर लोहिया हॉस्पिटल में सीनियर आर्थोपेडिक सर्जन हैं। डॉक्टर होने के नाते यह हॉस्पिटल और मरीजों के बीच कभी-कभी इतना व्यस्त हो जाते हैं कि मेरे लिए समय निकालना मुश्किल हो जाता है।

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    ऐसा ही एक वाक्या याद है मुझे जब करवाचौथ आने वाला था और करवाचौथ से करीब पंद्रह दिन पहले उनकी व्यस्तता को लेकर ही हम दोनों में अनबन शुरू हो गई जो इतनी बढ़ गई कि हम दोनों ने एक-दूसरे से बात करनी छोड़ दी। फिर करवाचौथ वाले दिन मैंने व्रत रखा और शाम को जब पूजा करने के बाद व्रत के पारण का समय

    आया तो मैं हैरान रह गई और खुशी के मारे मेरी आंखें भर आईं।

    हर साल करवाचौथ के दिन पतिदेव अपने हाथों से मेरी मनपसंद इमरती और नींबू की शिकंजी से व्रत खुलवाते हैं, लेकिन उस करवाचौथ पर जब हम दोनों के बीच झगड़ा चल रहा था तो मुझे लगा कि आज ये मेरा व्रत नहीं खुलवाएंगे, मगर ऐसा नहीं हुआ उस दिन भी ये व्रत खुलवाने के लिए जब हाथ में इमरती और शिकंजी का गिलास लेकर मेरे सामने आए तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और मेरे सारे शिकवे-गिले दूर हो गए।

    मुझे लगता है कि हमारे देश में इतने सारे जो व्रत, प्रथाएं और त्योहार बनाए गए हैं वो शायद यही सोचकर मनाए जाते हैं कि भले ही पूरा साल एक-दूसरे के लिए उतना समय न निकाल पाएं, लेकिन व्रत और त्योहारों के मौकों पर जरूर एक-दूसरे को यह जताएं कि वे हमारे लिए कितने खास हैं।

    करवाचौथ पति-पत्नी के आत्मीय और प्रगाढ़ रिश्ते का प्रतीक है। इस दिन पति कितना भी व्यस्त हो, नाराज हो या फिर भले ही पत्नी से दूर क्यों न हो, अपना प्यार जताना नहीं भूलता है। इसी प्यार और विश्वास के बल पर ही पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते की डोर बंधी होती है।

    चंद्रदेव से पहले ही आ जाते हैं

    वाराणसी की गौरी केडिया बताती हैं शादी के तीसरे साल की बात है करवाचौथ पर मैंने दुल्हन की तरह श्रृंगार कर व्रत रखा था। रात को चंद्रमा देखने के बाद पतिदेव का इंतजार कर रही थी कि हमेशा की तरह साथ बैठकर खाना खाएंगे। बहुत तेज भूख लगी थी, उधर घड़ी रात के 11 बजा रही थी।

    मेरी सासू मां ने कहा बेटा जरूरी नहीं कि उन्हें देखकर ही खाओ, ऐसे भी व्रत का पारण कर सकती हो, मगर मेरा मन नहीं मान रहा था। हमारा कपड़ों का बिजनेस है उन्हें शोरूम से आने में देर हो रही थी। भूख से बेचैन और मन में गुस्सा लिए न जाने कब नींद आ गई पता नहीं चला।

    रात को जब यह आए तो इन्हें पता चला कि मैं भूखी ही सो गई। इन्होंने मुझे खाना खिलाने के लिए जगाया। नींद खुलते ही मैं इनसे गुस्सा हो गई और नोकझोंक हो गई। मैं इनसे बोली आपके लिए ही व्रत रखा था और आप ही नहीं आए। अब कल खाना खाऊंगी। मेरे पतिदेव बहुत शांत स्वभाव के हैं। वह मेरे मन की पीड़ा समझ गए और तुरंत बोले माफ कर दो वादा करता हूं अब हर करवाचौथ को चांद निकलने से पहले ही तुम्हारे सामने रहूंगा।

    इनका प्यार देखकर मेरा गुस्सा गायब हो गया।

    फिर इन्होंने अपने हाथों से मुझे खाना व मेरी पसंद की मिठाई खिलाई। इसके बाद उपहारस्वरूप अंगूठी अपने हाथों से पहनाई। हमारी शादी को अब 20 साल हो गए हैं, मगर आज भी हर साल करवाचौथ पर वो वाकया याद आ जाता है। बच्चे भी जानते हैं कि पापा करवाचौथ पर इसीलिए देर नहीं करते।

    झिझकते हुए दी अंगूठी

    वाराणसी की शालिनी अग्रवाल कहती हैं कि 24 साल पहले हमारी शादी हुई थी। शादी के पहले घर में सभी को करवाचौथ का व्रत रखते देखती थी, लेकिन जब मेरी बारी आई तो सोचा कैसे निराजल व्रत रह पाउंगी। फिर करवाचौथ के एक दिन पहले मुझे ऐसा महसूस हुआ कि यह पति-पत्नी के प्रति स्नेह प्यार का पर्व है, बस यहीं से हिम्मत आई। बिना किसी चिंता के मैंने सारी तैयारी की। करवाचौथ पर सासूमां ने मुझे सरगी दी। मैंने अपनी शादी का जोड़ा पहना, मेहंदी लगाई और खूब श्रृंगार किया। 24 साल पहले उस दौर में पति-पत्नी एक-दूसरे से अपने प्रेम का इजहार करने और उपहार देने तथा तारीफ करने में शर्माते थे। जब उन्होंने मुझे देखा तो वह कुछ नहीं कह पाए, लेकिन उनकी आंखों ने बयां कर दिया कि जैसे वह कह रहे हों तुम कितनी प्यारी लग रही हो। मेरे लिए यही काफी था।

    शाम को पूजा हो गई और उन्होंने अपने हाथ से पानी पिलाकर व्रत का पारण कराया। इसके बाद जो सरप्राइज मुझे मिला वो कभी नहीं भूलता। हमारे यहां इस पर्व पर उपहार देने की कोई परंपरा नहीं थी। पूजा के बाद वह मुझे किनारे ले गए और जेब से झिझकते हुए अंगूठी निकाली और मुझे पहना दी। मैंने सोचा भी नहीं था कि वह मुझे इस तरह सरप्राइज गिफ्ट देंगे।

    उस दौर में कोई अपने प्यार को खुले तौर पर जाहिर नहीं कर पाता था। मुझे उनसे जब अंगूठी मिली तो मैं चौंक गई। बस उसके बाद से हर साल यह परंपरा कायम है। हम दोनों ने एक-दूसरे से कभी कुछ कहा नहीं, लेकिन बिना कहे ही एक-दूसरे को समझते हैं।

    वाराणसी से वंदना सिंह, लखनऊ से कुसुम भारती

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