रिश्तों की डोरी में एक धागा मेरा एक तुम्हारा
स्त्रियां अब आत्मनिर्भर हैं। गृहस्थी की जिम्मेदारियां भी अब मेरी, तुम्हारी बंटी नहीं रह गई हैं। फिर भी कुछ तो है खास कि तर्कों को मानने वाली पीढ़ी के बीच भी लगातार बढ़ती जा रही है करवाचौथ के प्रति आस्था और लगाव
कहीं सात भाइयों की बहन करवा है, तो कहीं राजा के शरीर की सूइयां निकालती रानी है...। करवा माता की कथाएं अलग-अलग हैं, पर एक सी है आस्था। अपनी प्रतिभा के बल पर हर चुनौती से टकराने वाले जोड़े भी आंख मूंदकर करते हैं अपने प्रेम की दीर्घायु की प्रार्थना। यही तो है आस्था का रंग, जो लगातार गाढ़ा होता जा रहा है।
मजबूत बनाता है प्यार
मूलत: पंजाब की रहने वाली नेहारिका वासुदेव इन दिनों गोवा में हैं। परिवार और परंपराओं को बहुत 'मिस' कर रहीं हैं। वहां न पंजाब जैसी चहल-पहल है, न ही है सरगी के सामान की वे दुकानें। फिर भी खुश हैं कि पति के साथ हैं। शादी के बाद नेहारिका का यह पहला करवा चौथ है। इसका उत्साह बयां करते हुए वह कहती हैं, 'सगाई के बाद करवाचौथ का व्रत रखा तो था, पर इस बार एक्साइटमेंट बहुत ज्यादा है, क्योंकि अतीव मेरे साथ हैं। मेरे लिए करवाचौथ वह खास उत्सव है, जब आप अपने प्यार के लिए एक दिन समर्पित करते हैं। मेरे लिए यह बहुत आंतरिक अनुभूति है। यहां गोवा का समाज बिल्कुल अलग है। करवाचौथ की बात करने पर यहां लोग हैरान होते हुए पूछते हैं कि क्या यह व्रत बिल्कुल वैसा होता है जैसा फिल्मों में दिखाया जाता है? आप कैसे पूरा दिन बिना कुछ खाए-पिए रह सकती हैं? मैं कहती हूं कि जब आप किसी के प्यार में होते हैं तो आप बाहर से बहुत खूबसूरत और अंदर से बहुत मजबूत हो जाते हैं। हमें किसी को कुछ दिखाना नहीं है। बस मेरी आस्था है कि खुशी हो या गम हमारा साथ हमेशा यूं ही बना रहे। प्यार के प्रति यह समर्पण ही तो है करवाचौथ।
बढ़ता जा रहा है प्यार का ग्राफ
मुंबई निवासी रेखा बब्बल मूलत: बिहार की हैं। मायके में महिलाएं वट सावित्री या हरितालिका तीज रखती थीं। शादी उत्तर प्रदेश के परिवार में हुई। यहां आईं तो करवाचौथ का व्रत रखना शुरू किया। पिछले सोलह बरसों से
मुंबई में हैं। पति अरविंद बब्बल धारावाहिक निर्माता-निर्देशक हैं। रेखा स्वयं भी संवाद लेखिका और अभिनेत्री हैं। अपनी और अरविंद की बॉन्डिंग पर वह कहती हैं, 'मैंने जैसा चाहा था, बिल्कुल वैसे ही पति मिले हैं मुझे। जब ससुराल में आई तो सिर्फ सासू मां के कहे अनुसार नियमों का पालन करती चली गई, पर जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया हमारे बीच का प्यार और बढ़ता जा रहा है। इसी तरह करवाचौथ के प्रति मेरी आस्था भी बढ़ती जा रही है। आप जिससे प्यार करते हैं, उसके लिए कुछ भी करना बहुत अच्छा लगता है। अगर ये ऐसे नहीं होते तो शायद मेरे मन में भी प्रश्न आता कि मैं ही क्यों ये सब करूं। मेरे मामले में सब कुछ इतना पॉजीटिव रहा कि मेरे सपने सच हो गए। करवाचौथ के दिन घर में गौरी माता की पूजा करती हूं। सासू मां ने कहा था कि अगर कोई नहीं भी मिले तो गौरी माता के साथ अपना करवा बदलकर व्रत किया जा सकता है। मैं खूब अच्छे से तैयार होती हूं। घर में सुबह से ही मेरा बहुत ख्याल रखा जाता है। अगले महीने हमारी शादी को पच्चीस बरस पूरे हो जाएंगे। मैं देखती हूं कि हमारे प्यार का ग्राफ दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है।
प्यार में तमाशा क्यों हो
मुंबई में एसोसिएट प्रोफेसर संध्या श्रीवास्तव कहती हैं, 'मैं पूरी आस्था से यह व्रत करती हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि आस्था और पूजा कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। शादी के बाद बस एक बार भोपाल में सासू मां के साथ करवाचौथ का व्रत रख पाई।
उसके बाद से मुंबई में ही हूं तो परंपराओं के बारे में ज्यादा पता नहीं है। सच कहूं तो फिजूल की तमाशेबाजी में मैं विश्वास भी नहीं रखती। मैं थोड़ा अलग सोचती हूं, दिखावे की बजाय कर्म में ज्यादा विश्वास करती हूं। यह दिन अन्य दिनों की तरह ही आपाधापी भरा होता है, इसलिए चाय-कॉफी वगैरह ले लेती हूं। मेरे लिए परंपराएं वे हैं, जो आपको आगे बढऩे की प्रेरणा दें। कॉलेज तो जाना होता ही है। इसलिए शाम को नई साड़ी पहनती हूं, पूजा करती हूं। छलनी में पति का चेहरा देखना या पति के हाथों पानी पीना नहीं हो पाता। यह सब मेरे पति को भी पसंद नहीं है। हम अपने प्यार के लिए, जो सुविधानुसार कर सकते हैं, वही करना चाहिए।
बदल रही है आस्था
अनन्या प्रभू लखनऊ की रहने वाली हैं। अभी हाल ही में उनकी शादी कालीकट (केरल) के सवित प्रभू से हुई है। उत्तर और दक्षिण भारत की परंपराओं में काफी अंतर है। अपने अनुभव साझा करते हुए अनन्या कहती हैं, 'जब मां को बचपन में ऐसे कठिन व्रत करते हुए देखती थी तो यह प्रताडऩा ही लगती थी कि मां ही क्यों सबके
लिए भूखी प्यासी रहे। पिताजी या भाई क्यों नहीं ऐसे व्रत रखते। फिर धीरे-धीरे बड़े हुए तो मैं और मेरी छोटी बहन पूर्वा करवाचौथ पर मां को खूब सपोर्ट किया करते थे। घर के कामों में उनकी मदद करते, ताकि उन्हें कुछ आराम मिले। उन्हें सजाते-संवारते, मां बहुत अच्छी लगती थी करवाचौथ के दिन। फिर भी मन में वे प्रश्न तो थे ही, पर अब जब मैं खुद इस प्यारे से रिश्ते में बंध गई हूं तो मेरा भी मन कर रहा है कि मैं भी अपने पति के लिए यह व्रत रखूं। घर में सासू मां ने भी कहा है कि अगर तुम चाहो तो अपने मायके की परंपरा अनुसार यह व्रत रख सकती हो, लेकिन वह कहते हैं कि बिल्कुल निराहार रहने की जरूरत नहीं है। यहां मुझे उनके लॉजिक ठीक लगते हैं, कि आपका प्यार हो या ईश्वर कोई भी भूखा रखकर आपकी परीक्षा क्यों लेना चाहेगा। पति इन दिनों आस्ट्रेलिया में हैं। उन्हें बहुत याद कर रही हूं, हर दिन याद करती हूं। करवाचौथ पर शायद और ज्यादा याद आएं।'
यह प्यार का निजी त्योहार है
जम्मू की कुसुम टिक्कू कला जगत से जुड़ी हैं। जम्मू में कितनी ही लड़कियों को उन्होंने अपने
धारावाहिकों में ब्रेक देकर पहचान दिलाई है। कश्मीरी परिवार में करवाचौथ का व्रत रखने की परंपरा नहीं है, फिर भी वह पूरी आस्था से इस व्रत को रखती हैं और कहती हैं, 'आर्थिक आत्मनिर्भरता अलग है, यह मेरे प्यार का निजी मामला है। मैं यह दिन सिर्फ अपने प्यार को समर्पित करना चाहती हूं। कोई भी अच्छी चीज जो आप किसी से भी सीखते हैं, सीख सकते हैं। मैंने भी यह अपने आसपास से ही सीखा। अब यह ऐसा ग्लोबल त्योहार हो चुका है, जो ज्यादातर पत्नियां अपने पति के लिए रखना चाहेंगी। मैं सारी आत्मनिर्भरता छोड़कर उस दिन पूरी तरह पति पर निर्भर हो जाती हूं। उनके साथ मेंहदी लगवाने जाती हूं। उनकी दी हुई साड़ी पहनती हूं। फिर चाहे वह कैसी भी हो। संयोग से उनका तोहफा हमेशा बहुत अच्छा होता है।'
सेतु हूं दोनों के बीच
लखनऊ की किरनलता पांडेय कहती हैं, 'सारी बात अपनी जगह है। तमाम तर्क और वैज्ञानिकता की बात भी मैं मानती हूं। पति लगातार कहते रहते हैं कि इन सारी बातों का कोई अर्थ नहीं है, छोड़ो यह सब। सासू मां की सीख अलग है। वह अब भी अस्सी बरस की होकर भी सारे व्रत रहती हैं। वह चाहती हैं कि मैं भी रहूं, सो रहती हूं। मेरी सासू मां तो इस उम्र में भी तीन-तीन, चार-चार दिन निर्जला व्रत रह जाती हैं और स्वस्थ भी रहती हैं, लेकिन पति की बात और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए कई सारे व्रत मुल्तवी भी किए हैं, जिन्हें हमारे यहां उद्यापन कहा जाता है। हमारे जीवन में आस्था और विश्वास भी एक शब्द है।
करवाचौथ, तीज, छठ, जीवतिया आदि सिर्फ व्रत नहीं हैं, विश्वास का विषय हैं और आस्था के आयाम हैं। हमारे यहां तो बेटी का कन्यादान करने के लिए, पांव पूजने के लिए समूचा परिवार, रिश्तेदार क्या स्त्री, क्या पुरुष सभी निर्जला व्रत रहते हैं। पति कहते हैं कि आस्था अगर बहुत गहरी है तो उसे वैज्ञानिकता के साथ स्वीकार करो। निराजल व्रत को त्याग कर फलाहार वाले व्रत रखो, क्योंकि शरीर में पानी बहुत जरूरी है। इसलिए पति और सास की बात के बीच एक सेतु बनाने की कोशिश की है। निराजल वाले अब कुछ व्रत छोड़कर फलाहार वाले कर लिए हैं। मैं चूंकि एक वर्किंग वूमेन हूं, इसलिए भी बहुत सारी बातें व्यावहारिक ढंग से देखनी होती हैं। परंपरा एक विरासत है इस नाते एक झटके से कुछ भी छोडऩा, अपने को तोडऩा है।
योगिता यादव
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