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केवल प्यार व देखभाल की दलील के आधार पर नहीं दी जा सकती बच्चे की कस्टडी : हाई कोर्ट

हाईकोर्ट में पुत्री की मौत के बाद नानी ने अपने दोहते की कस्टडी मांगी थी जिसे कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि केवल प्यार पर देखभाल के आधार पर बच्चे की कस्टडी नहीं दी जा सकती।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Wed, 22 Apr 2020 05:47 PM (IST)Updated: Wed, 22 Apr 2020 05:47 PM (IST)
केवल प्यार व देखभाल की दलील के आधार पर नहीं दी जा सकती बच्चे की कस्टडी : हाई कोर्ट
केवल प्यार व देखभाल की दलील के आधार पर नहीं दी जा सकती बच्चे की कस्टडी : हाई कोर्ट

चंडीगढ़ [दयानंद शर्मा]। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ किया कि केवल प्यार व देखभाल करने की दलील के आधार पर बच्चे की कस्टडी नहीं दी जा सकती, क्योंकि बच्चे के लिए केवल प्यार व देखभाल करना ही काफी नहीं है। बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए उसकी शिक्षा जरूरी है। हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी पानीपत निवासी एक महिला की अपने दोहते (लड़की के पुत्र) की कस्टडी की मांग की याचिका को खारिज करते हुए की। इस मामले में महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर पानीपत फैमिली कोर्ट के 6 अगस्त 2019 के उस आादेश को चुनौती दी थी, जिसमें फैमिली कोर्ट ने नाबालिग बच्चे की कस्टडी उसे न देकर बच्चे के पिता को दे दी।

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महिला ने हाई कोर्ट को बताया कि उसकी पुत्री का विवाह प्रतिवादी के साथ 19 फरवरी 2013 को हुआ था। 28 फरवरी 2015 को उनके घर एक पुत्र हुआ। उसका दामाद उसकी पुत्री के साथ क्रूरता का व्यवहार रखता था। जिस कारण उसकी पुत्री बीमार हो गई व 22 मार्च 2017 को रोहतक पीजीआइ में उसकी मौत हो गई, बच्चा उसके पास था। इस मामले में दामाद के खिलाफ पुलिस में केस भी दर्ज करवाया गया था।  याचिकाकर्ता ने कहा कि वह नाबलिग बच्चे की नानी है और उसका अच्छे से ख्याल रख सकती है। वह बच्चे को पूरा प्यार व समय दे सकती है। उसका संयुक्त परिवार है, जिसका फायदा बच्चे को मानसिक तौर ज्यादा मिलेगा, जबकि पिता को उसकी कस्टडी देने से वह इन चीजों से वंचित रहेगा।

बच्चे की नानी ने आरोप लगाया गया कि फैमिली कोर्ट ने सभी तथ्यों को अनदेखा कर बच्चे की कस्टडी पिता को सौंप दी। कोर्ट में पिता की तरफ से दलील दी गई कि उसकी पत्नी के साथ उसका कोई विवाद नहीं था। उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत ससुराल पक्ष की तरफ से दर्ज करवाई गई थी, जिसमें वह निर्दोष साबित हुआ था। उसकी पत्नी ने कभी भी उसके खिलाफ कोई शिकायत नहीं की।

पत्नी के इलाज के लिए उसने तन मन धन से कोशिश की। ऐसे में बच्चे की कस्टडी का वह कानूनी हकदार है और फैमिली कोर्ट ने इसलिए उसे बच्चे की कस्टडी दी है, जबकि बच्चे की नानी खुद बूढ़ी हैं। वह बच्चे को कैसे संभाल सकती हैं। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि यह बच्चे के कल्याण व भविष्य का सवाल है।

हाई कोर्ट अपना फैसला देने से पहले सभी तथ्यों पर गौर करेगा। बच्चे का पिता एक सरकारी अधिकारी हैंं तथा वह जवान है और साफ कह चुका है कि वह दूसरा विवाह नहीं करेगा। इस बात की कोई संभावना नहीं है कि वह किसी भी तरह से नाबालिग की उपेक्षा करेगा। बच्चे का पिता आर्थिक तौर पर समृद्ध है। उसके दादा भी उच्च पद से सेवानिवृत्त हैं, जबकि बच्चे की नानी के पति की मौत हो चुकी है। ऐसे में वह आर्थिक तौर पर मजबूूत नहीं है।

बेंच ने कहा कि बच्चे के संरक्षण पर पहला अधिकार पिता या दादा का होता है। इस मामले में बच्चे की कस्टडी की मांग करने वाली नानी ओल्ड एज के साथ हाउस वाइफ है, जबकि बच्चे का पिता व दादा वित्तीय तौर पर काफी मजबूत व बच्चे का ख्याल रखने में सक्षम हैं। ऐसे में हाई कोर्ट का मानना है कि केवल प्यार व देखभाल करने की दलील के आधार पर बच्चे की कस्टडी नहीं दी जा सकती। ऐसे में हाई कोर्ट इस याचिका को खारिज करते हुए बच्चे को पिता के संरक्षण में देने के आदेश को सही ठहराता है।

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