Move to Jagran APP

फिल्‍म रिव्‍यू: भोपालः ए प्रेयर फॉर रेन (ढाई स्‍टार)

अपने कथ्य और संदर्भ के कारण महत्वपूर्ण 'भोपाल : ए प्रेयर फॉर रेन' संगत और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण के साथ भोपाल गैस ट्रैजेडी का चित्रण करती तो प्रासंगिक और जरूरी फिल्म हो जाती। सन् 1984 में हुई भोपाल की गैस ट्रैजेडी पर बनी यह फिल्म 20वीं सदी के जानलेवा हादसे की

By Monika SharmaEdited By: Published: Fri, 05 Dec 2014 01:03 PM (IST)Updated: Fri, 05 Dec 2014 01:23 PM (IST)
फिल्‍म रिव्‍यू: भोपालः ए प्रेयर फॉर रेन  (ढाई स्‍टार)

अजय ब्रह्मात्मज

loksabha election banner

प्रमुख कलाकार: राजपाल यादव, मार्टिन शीन, मिशा बार्टन, कल पेन, तनिष्ठा चटर्जी, फागुन ठकरार और विनीत कुमार, लीजा द्वान।

निर्देशक: रवि कुमार

स्टार: ढाई

अपने कथ्य और संदर्भ के कारण महत्वपूर्ण 'भोपाल : ए प्रेयर फॉर रेन' संगत और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण के साथ भोपाल गैस ट्रैजेडी का चित्रण करती तो प्रासंगिक और जरूरी फिल्म हो जाती। सन् 1984 में हुई भोपाल की गैस ट्रैजेडी पर बनी यह फिल्म 20वीं सदी के जानलेवा हादसे की वजहों और प्रभाव को समेट नहीं पाती। रवि कुमार इसे उस भयानक हादसे की साधारण कहानी बना देते हैं।

'भोपाल : ए प्रेयर फॉर रेन' की कहानी पत्रकार मोटवानी( फिल्म में उनका रोल पत्रकार राजकुमार केसवानी से प्रेशर है) के नजरिए से भी रखी जाती तो पता चलता कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां तीसरी दुनिया के देशों में किस तरह लाभ के कारोबार में जान-माल की चिंता नहीं करतीं। अफसोस की बात है कि उन्हें स्थानीय प्रशासन और सत्तारूढ़ पार्टियों की भी मदद मिलती है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हिंसक और हत्यारे पहलू को यह फिल्म ढंग से उजागर नहीं करती। निर्देशक ने तत्कालीन स्थितियों की गहराई में जाकर सार्वजनिक हो चुके तथ्यों को भी फिल्म में समाहित नहीं किया है। फिल्म में लगता है कि यूनियन कार्बाइड के आला अधिकारी चिंतित और परेशान हैं, जबकि सच्चाई उसके विपरीत थी। न केवल खतरों के बारे में मालूम होने के बाद भी प्रोडक्शन चालू रखा, बल्कि सुरक्षा उपायों की भी अनदेखी की गई। इस फैक्ट्री को चलाने की मंजूरी और सहमति देने में सुरक्षा और चेतावनी के पहलुओं पर स्थानीय प्रशासन ने गौर नहीं किया। फिल्म में संकेत तो मिलता है कि नेताओं की मिलीभगत से यूनियन कार्बाइड की नकेल नहीं कसी गई, लेकिन उसके विस्तार में जाने के बजाय फिल्म दिलीप नामक मजदूर की लाचार जिंदगी का रूपक रचती है।
ऐसी फिल्मों का उद्देश्य मनोरंजन से अधिक भयावह स्थितियों का रेखांकन होता है ताकि भविष्य की पीढिय़ां इतिहास की चूकों से सबक ले सकें। विश्व सिनेमा में मानवीय हादसों पर ऐसी अनेक फिल्में बनी हैं, जो अतीत की घटनाओं पर फैले जाले को साफ करती है। समय बीतने के साथ भुक्तभोगी और अपराधी भी घटनाओं को निस्संग नजरिए से देख पाते हैं।
रवि कुमार की फिल्म 'भोपाल: ए प्रेयर फॉर रेन' हादसे की सतह पर रह जाती है। वह गहरे नहीं उतरती। यही कारण है कि वह भोपाल गैस ट्रैजेडी की व्यथा कथा प्रभावशाली तरीके से नहीं रख पाती। ऐसी फिल्मों में कलाकारों का चयन खास महत्व रखता है। रवि कुमार ने कलाकार तो जुटा लिए हैं, लेकिन उनके किरदारों पर अधिक मेहनत नहीं की है।

पढ़ेंः बाप रे! फिल्म के लिए 10 करोड़ डॉलर का इंश्योरेंस

यहां क्लिक करके पढ़ें बाकी फिल्मों का रिव्यू

abrahmatmaj@mbi.jagran.com


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.