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जेएफएफ में जेड प्लस पर किताब हुई लांच

डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेद्वी की फिल्म जेड प्लस को समीक्षक बिरादरी में सराहना मिली थी। उसकी कहानी जयपुर के पत्रकार व लेखक रामकुमार सिंह ने लिखी थी। छठे जागरण फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन उस फिल्म की स्क्रीनिंग भी हुई। उसे देखने सिने प्रेमी तो जुटे ही, रामकुमार सिंह ने फिल्म

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Fri, 03 Jul 2015 09:54 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2015 10:07 PM (IST)
जेएफएफ में जेड प्लस पर किताब हुई लांच

नई दिल्ली। डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेद्वी की फिल्म जेड प्लस को समीक्षक बिरादरी में सराहना मिली थी। उसकी कहानी जयपुर के पत्रकार व लेखक रामकुमार सिंह ने लिखी थी। छठे जागरण फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन उस फिल्म की स्क्रीनिंग भी हुई। उसे देखने सिने प्रेमी तो जुटे ही, रामकुमार सिंह ने फिल्म पर लिखी किताब भी साथ में लांच कर दी। फिल्म में जुटी भीड़ से वे आह्लादित थे।

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उसकी स्क्रीनिंग छठे जागरण फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन हुई। फेस्टिवल अपने रिलीज के समय से ही सराही जा रही है। नई दिल्ली में चल रहे जेएफएफ में भी दर्शकों ने इसे खूब सराहा। इस अवसर पर इस फिल्म के लेखक रामकुमार सिंह दर्शकों से रू-ब-रू भी हुए। रामकुमार सिंह ने बताया कि 'जेड प्लस' अब किताब के रूप में भी उपलब्ध है। रामकुमार सिंह ने अपनी किताब व फिल्म के बारे बातचीत की।

उन्होंने कहा, जागरण फिल्म फेस्टिवल में इस मिजाज की फिल्मों का आना बेहद जरूरी है। इसके जरिए हिंदी पट्टी के सुदूर इलाकों के पास यह फिल्म पहुंच पाएगी। मैं इस फेस्टिवल का शुक्रगुजार हूं, क्योंकि यह फिल्म खास व आम वर्ग के बीच की दूरियों को संवेदनात्मक रूप से प्रस्तुत करती है। इस फिल्म का नायक असलम एक पंक्चर बनाने वाला आम इंसान है, जो खास लोगों के चक्रव्यूह में फंस जाता है। 'खास' किस तरह से कॉमन मैन का दोहन कर रहे हैं, वह इस फिल्म है। लिहाजा इसकी यूनिवर्सल अपील है।

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इस फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने से लेकर अब जब यह फिल्म फेस्टिवलों में धूम मचा रही है, वह कौन-सा मूमेंट रहा, जिसे रामकुमार सिंह कभी भूलना नहीं चाहेंगे, पूछे जाने पर वे बताते हैं, डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी जी को जेड प्लस की कहानी जब मैंने सुनाई थी, उन्होंने बिना हिचक इस पर फिल्म बनाने की बात कह दी। यह बहुत ही सुखद पल था। वह पल मेरे लिए हमेशा से यादगार रहा है। उनके प्रोत्साहन ने मुझे बहुत खुशी प्रदान की थी। और आज आप सब के बीच यह फिल्म है। अब तो यह किताब के रूप में राजकमल प्रकाशन के उपक्रम सार्थक से प्रकाशित होकर भी आ चुकी है। मुझे उम्मीद है लोगों का प्यार किताब को भी मिलेगा। किताब की लांचिंग के लिए मैंने इसी मंच को इसलिए चुना, क्योंकि यहां से यह ढेर सारे लोगों तक पहुंच सकेगी।

फिल्म के बाद किताब, यह तो अच्छी बात है। फिल्म की स्क्रिप्ट व उपन्यास में कुछ अंतर है क्या? पूछे जाने पर वे बताते हैं, जेड प्लस को मैंने उपन्यास फॉर्म में ही लिखा था। डॉक्टर साहब (चंद्रप्रकाश द्विवेद्वी) को इस उपन्यास की स्क्रिप्ट पसंद आई और किताब आने से पहले ही इस पर फिल्म बन गई।

'जेड प्लस' उपन्यास या फिल्म के संदर्भ में इसका मजबूत पक्ष क्या है? इस सवाल पर वे कहते हैं, इस उपन्यास में हमने एक कॉमन मैन के प्रतिरोध प्रदर्शित करने का प्रयास किया है। एक कॉमन मैन किस हद तक प्रतिशोध कर सकता है, जैसा कि इस उपन्यास का नायक असलम करता है, वह इस फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष है। जब असलम की बीवी हमीदा कहती है कि तुम्हारे हराम की कमाई से मैं अपने बच्चों का पालन नहीं करूंगी, तब इस उपन्यास में एक पत्नी की सशक्त भूमिका उभर कर आती है। जिस दिन स्त्रियां हमीदा की तरह घर में प्रतिरोध शुरू करेंगी भ्रष्टाचार के खिलाफ वह एक नया प्रस्थान बिंदू हो सकता है।

अंत में मुझे पूरा विश्वास है कि वो किताब पढ़ेगे तो उन्हें मजा आएगा। सिनैमैटिक व लिटररी दोनों अनुभव एक साथ होंगे। अगर मजा न आए तो मुझे ई-मेल करें।

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