.और मन्ना डे ने नहीं गाया पड़ोसन का गाना
गायकी को लेकर मन्ना डे के मन में कितनी श्रद्धा थी, यह इस कहानी से मालूम होती है। फिल्म संगीत को जानने वाले लोग इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि उनके समय में मन्ना डे से बड़ा शास्त्रीय गायक फिल्म इंडस्ट्री में कोई नहीं था। निर्माता को अगर किसी फिल्म में शास्त्रीय राग पर आधारित गीत गवाना होता था, तो इसके लिए उनके मन में सिर्फ और सिर्फ
गायकी को लेकर मन्ना डे के मन में कितनी श्रद्धा थी, यह इस कहानी से मालूम होती है। फिल्म संगीत को जानने वाले लोग इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि उनके समय में मन्ना डे से बड़ा शास्त्रीय गायक फिल्म इंडस्ट्री में कोई नहीं था। निर्माता को अगर किसी फिल्म में शास्त्रीय राग पर आधारित गीत गवाना होता था, तो इसके लिए उनके मन में सिर्फ और सिर्फ मन्ना डे ही आते थे। उन्होंने तमाम फिल्मों में गीत गाए, लेकिन ज्यादातर फिल्मों में उनके गाए एक गीत ही रहे। वजह साफ थी कि वे गीत शास्त्रीय राग पर और सरगम वाले थे।
एक कप चार पीकर 20 गाने सुना गए मन्ना दा
यहां बानगी के रूप में एक कहानी सुना रहा हूं। वह फिल्म थी पड़ोसन, जो 1968 में रिलीज हुई थी। इसके निर्माता थे महमूद और निर्देशक योति स्वरूप। संगीतकार थे आरडी बर्मन। इस कॉमेडी फिल्म के वैसे तो सभी गीत 'कहना है आज तुमसे पहली बार.', मेरे सामने वाली खिड़की पे इक चांद का टुकड़ा रहता है., मैं चली मैं चली देखो प्यार की गली., मेरे भोले बलम., शर्म आती है मगर आज ये कहना होगा., भई बत्तूर भई बत्तूर अब जाएंगे कितनी दूर. और सूनी रे सेजरिया साजन बिन तेरे. सभी सदाबहार हुए, लेकिन एक गीत और था इस फिल्म में जिसके बोल थे एक चतुर नार करके सिंगार.। हास्य से भरपूर इस गीत में तीन लोगों की आवाजें हैं, मन्ना डे, किशोर कुमार और महमूद की। फिल्म में किशोर कुमार बने थे विद्यापति। फिल्म में एक सिचुएशन के तहत विद्यापति और महमूद यानी मास्टर पिल्लई यानी गुरुजी के बीच गायकी का मुकाबला होता है। सीन के मुताबिक गीत रिकॉर्ड होना था।
अगर ऐसा न होता तो देश को एक अनमोल गायक नहीं, बल्कि पहलवान मिलता
प्लानिंग के मुताबिक जब गीतकार राजेंद्र कृष्ण ने गीत लिख लिया और उसमें कुछ ऐसे शब्द भी बीच-बीच में डाल दिए, जिन्हें सीन के हिसाब से कहने थे। अब बात आई रिकॉर्डिग की, तो किशोर कुमार को नोटेशन यानी सरगम तो आती नहीं थी, लेकिन मन्ना डे इसके मास्टर थे। उस वक्त उनसे बढि़या क्लासिकल गीत गाने वाला गायक फिल्म इंडस्ट्री में कोई नहीं था। यह बात जब मन्ना डे और किशोर कुमार से कही गई कि आपको गीत के बीच-बीच में कुछ ऐसे शब्द भी उसी अंदाज में कहने होंगे, जैसे यह गाना हो.। किशोर कुमार इसके लिए तैयार हो गए, पर मन्ना डे ने ऐसा करने से एकदम मना कर दिया। उन्होंने कहा, मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगा। मैं संगीत के साथ मजाक नहीं कर सकता। फिर उनकी बात मान ली गई और गीत की रिकॉर्डिग शुरू हुई, तो उन्होंने सब वैसे ही गाया, लेकिन जब किशोर कुमार ने गलत अंदाज वाला नोटेशन गायकी के अंदाज में गाया, तो वे चुप हो गए। मन्ना डे ने कहा, यह क्या है? यह कौन सा राग है? तो महमूद ने उन्हें समझाया, सर सीन में कुछ ऐसा ही करना है, इसलिए किशोर दा ने ऐसे गाया.। वह इसके लिए तैयार नहीं थे। किसी तरह उन्होंने अपने हिस्से का गीत पूरा किया लेकिन वह सब नहीं गाया, जो उन्हें पसंद नहीं था।
इस गीत में जो भी बोल उस तरह के रखे गए हैं, जैसे -ये गड़बड़ जी., ये सुर बदला., ये हमको मटका बोला., ये सुर किधर है जी., अम छोड़ेगा नहीं जी., अम पकड़ के रखेगा जी., ओ या., ये फिर गड़बड़., फिर भटकाया., ये घोड़ा बोला., ये गाली दिया., अय्यो घोड़े तेरी., क्या रे ये घोड़ा-चतुर, घोड़ा-चतुर बोला, एक पे रह ना, या घोड़ा बोलो या चतुर बोलो., ये अटक गया. आदि को महमूद ने अपनी आवाज में डब किया। इस तरह यह गीत, जो सदाबहार बना, पूरा हुआ लेकिन मन्ना डे ने उन शब्दों को नहीं गाया। वे गायकी को पूजा मानते थे। वे गायकी के साथ मजाक नहीं कर सकते थे। वे कैसे सुर साधक थे, यह इसी कहानी से जाहिर होता है। (रतन)।
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