बस एक कप चाय पीकर लगातार 20 गीत सुना गए मन्ना डे
मन्ना डे : स्मृति शेष
जागरण संवाददाता, लखनऊ: अदब और तहजीब की नगरी में यूं तो कई बार आ चुके थे मन्ना डे लेकिन यहां की कुछ घटनाएं ऐसी हैं जो भुलाए नहीं भूलतीं। एक किस्सा ऐसा भी है जिसमें अतिथि को ईश्वर का दर्जा देने वाले नवाबों के शहर में इतने प्रसिद्ध गायक को जिल्लत झेलनी पड़ी थी।
दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए रंगकर्मी आतमजीत सिंह स्मृतियों के समंदर में खो गए। उन्होंने बताया कि बात वर्ष 1978 की है। रेलवे स्टेडियम में उनका एक कार्यक्रम तय था। मन्ना डे के साथ में 'टुनटुन' भी आई थी। किंतु आयोजक पैसा बटोर कर भाग लिए। मौके पर पुलिस पहुंची और कलाकारों, यानी मन्ना डे और टुनटुन को यह सोच कर पकड़ ले गई कि कलाकारों को बंदी बनाएंगे तो आयोजकों के वापस आने की संभावना है। यह बात रविंद्रालय के प्रबंधक टंडन को पता चली तो उन्होंने पुलिसकर्मियों को मन्ना डे का परिचय देते हुए कहा कि इसमें कलाकारों की कोई गलती नहीं। आतमजीत आगे बताते हैं कि जब मन्ना डे छूट कर आए तो वह बहुत घबराए हुए थे, थर-थर कांप रहे थे। अगली ट्रेन से फौरन मुंबई रवाना हो गए।
भूले कतई नहीं थे
रेलवे स्टेडियम की वह घटना को मन्ना डे भूले कतई नहीं। वर्ष 1990 में उनका दोबारा राजधानी आना हुआ। इस विषय में उन्होंने इस घटना पर गुस्सा भी जताया था।
एक चाय के दम पर 20 गाने गाए
मन्ना डे के करीबी रहे सेवानिवृत्त बैंक कर्मी व संगीत प्रेमी अनिमेश मुखर्जी ने बताया कि अंतिम बार वह लखनऊ वर्ष 2009 में आए थे। 11 अप्रैल को उनका कार्यक्रम था। वैसे तो उस वक्त उनकी उम्र 91 वर्ष थी पर जोश में कोई कमी नहीं थी। एक कप चाय के बूते उन्होंने लगातार 20 से भी अधिक गाने सुना दिए। दर्शकों संग आयोजक भी उनकी इस जिजीविषा को देखकर हैरान थे। इसके बाद उनके प्रशंसकों ने जलपान ग्रहण करने का अनुरोध किया।
पत्नी के निधन से टूट गए थे
अनिमेश मुखर्जी बताते हैं कुछ वर्षो पहले मन्ना डे की पत्नी का निधन भी हो गया था। यह सदमा वह बर्दाश्त नहीं कर पाए थे। घटना के बाद से बहुत उखड़े रहते थे।
मूड बदलना तो बखूबी जानते थे
संगीतकार केवल कुमार ने बताया कि सन् 1960 में भी मन्ना डे का यहां आना हुआ था। रविंद्रालय में उनका कार्यक्रम हुआ था। उस दौरान कुछ गुफ्तगू का अवसर मिला था। उनकी खास बात यह थी कि वह किसी का भी मूड बदलना बखूबी जानते थे। कोई उदासी भरा गीत गाते थे तो दर्शकों के आंसू निकल जाते थे। क्षण भर बाद यदि कोई मस्तमौला गीत गाना शुरू कर दें तो सभी के चेहरों पर हंसी की फुहार आ जाती थी।
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