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    असफलताओं से हुए दो-चार

    By Edited By:
    Updated: Thu, 07 Nov 2013 11:52 AM (IST)

    मुंबई। पिछले अंक में आपने पढ़ा कि दिलीप कुमार का फिल्मी सफर शुरू हो गया। वे आगे चलकर हिंदुस्तानी सिनेमा के महान अभिनेता तो बने, पर शुरुआती फिल्मी सफर समीक्षकों की आलोचनाओं से भरा था। दिलीप कुमार की उस स्थिति को देखना यहां जरूरी है। उनकी पहली फिल्म 'ज्वार भाटा' थी

    मुंबई। पिछले अंक में आपने पढ़ा कि दिलीप कुमार का फिल्मी सफर शुरू हो गया। वे आगे चलकर हिंदुस्तानी सिनेमा के महान अभिनेता तो बने, पर शुरुआती फिल्मी सफर समीक्षकों की आलोचनाओं से भरा था। दिलीप कुमार की उस स्थिति को देखना यहां जरूरी है। उनकी पहली फिल्म 'ज्वार भाटा' थी। उसकी शूटिंग के समय वे महज 19 साल 5 महीने के थे। उससे पहले उन्होंने कभी अदाकारी नहीं की थी। ऊपर से वे ठहरे शर्मीले स्वभाव के। कुल मिलाकर उन कमजोरियों ने दिलीप कुमार की अदाकारी पर बुरा असर डाला। उनकी पहली फिल्म को अमिय चक्रवर्ती डायरेक्ट कर रहे थे। उन्होंने उससे पहले सुपरहिट फिल्म 'बसंत' डायरेक्ट की थी। 'ज्वार भाटा' दिलीप कुमार के लिए अहम फिल्म तो थी ही, उसमें अमिय को वह शख्स असिस्ट कर रहा था, जो बाद में चलकर बॉलीवुड का पहला शो मैन बना, जिसने अपनी फिल्मों से न सिर्फ हिंदुस्तानी, बल्कि विदेशी दर्शकों को भी लुभाया। जी हां, निर्देशक और अभिनेता राज कपूर..।

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    पढ़ें:सीखने-सिखाने का सफर

    बहरहाल, फिल्म के पहले सीन में दिलीप कुमार को फिल्म की हीरोइन मृदुला को दौड़कर बचाना था। ताउम्र हॉकी और फुटबॉल खेलने वाले दिलीप कुमार मृदुला को बचाने के लिए इतनी तेज दौड़े कि उन्हें कैमरे में कैद ही न किया जा सका। अमिय ने कट कह सीन फिर से फिल्माने को कहा। कई री-टेक के बाद वह सीन फिल्माया जा सका। मुसीबत वहीं खत्म नहीं हुई, दिलीप कुमार को मृदुला को पकड़ने में भी खासी घबराहट हो रही थी। उस सीन को भी कई री-टेक बाद पूरा किया जा सका। बाद में उन्होंने घबराहट का वह वाकया अशोक कुमार से भी साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे हीरोइन का हाथ थामते ही उनके हाथ ठंडे पड़ जाते थे। अशोक कुमार भी वैसी घबराहट से दो-चार हो चुके थे, इसलिए उन्होंने दिलीप कुमार को सलाह दी कि वैसे सीन से पहले अपनी दोनों हथेलियों को जोर से रगड़ लिया करो। हाथ ठंडे नहीं पड़ेंगे।

    खैर, फिल्म 29 नवंबर 1944 को रिलीज हुई। अमिय चक्रवर्ती जैसे जाने-माने निर्देशक की मौजूदगी के बावजूद फिल्म को समीक्षकों की बड़ी ठंडी प्रतिक्रिया मिली। दिलीप कुमार खासकर सभी समीक्षकों के निशाने पर आ गए। उस समय के एक प्रतिष्ठित समीक्षक ने तो अनीमिक यानी जोशरहित करार दे दिया। उनमें समीक्षकों को हीरो जैसी कोई बात नजर नहीं आई। उन्होंने बॉम्बे टॉकीज की नई खोज को खारिज करते हुए कहा कि नया हीरो तो भूख से बेजार मरियल सा दिखता है। बॉम्बे टॉकीज को चाहिए कि वह पहले अपने नए हीरो को अदाकारी की कुछ प्रोटीन, विटामिन प्रदान करे, तब पर्दे पर लाए। उन्हें लंबी ट्रेनिंग की जरूरत है।

    बॉम्बे टॉकीज ने समीक्षकों की तीखी प्रतिक्रिया के बावजूद दिलीप कुमार को 'प्रतिमा' में मौका दिया। उन्हें फिल्म में स्वर्णलता के अपोजिट कास्ट किया गया। फिल्म के निर्देशन का जिम्मा जयराज को सौंपा गया। बॉम्बे टॉकीज की कर्ताधर्ता देविका रानी ने उन्हें असाइनमेंट के तौर पर वह फिल्म डायरेक्ट करने का मौका दिया। 'प्रतिमा' जयराज की भी बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म थी। वह रिलीज हुई और दिलीप कुमार को एक बार फिर समीक्षकों ने आड़े हाथों लिया। समीक्षकों को दिलीप कुमार 'ज्वार भाटा' से भी अधिक मरियल दिखे। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि अगर दिलीप कुमार जैसी कद-काठी के लोग हीरो बनने लगे तो मोशन पिक्चर का ग्लैमर निश्चित तौर पर सदा के लिए खत्म होने वाला है। 'प्रतिमा' में उनकी अदाकारी बेअसर है। हमें नहीं लगता कि वे भविष्य में कभी अदाकारी भी कर सकेंगे।

    पढ़ें:देविका रानी से बात-मुलाकात'प्रतिमा' के बाद देविका रानी ने रशियन मूल के पेंटर से ब्याह रचा, बॉम्बे टॉकीज को अलविदा कहा। वह स्टूडियो महालक्ष्मी के बिल्डर शिराज अली हाकिम ने खरीद लिया। उन्होंने हितेन चौधरी को स्टूडियो का प्रोडक्शन कंट्रोलर बना दिया। हितेन स्टूडियो के अधिग्रहण से पहले भी बॉम्बे टॉकीज के लिए काम कर चुके थे। उन्होंने स्टूडियो से दोबारा जुड़ते ही उसे नई ऊंचाइयां प्रदान करने में जुट गए। उन्होंने तत्कालीन मशहूर सिनेमेटोग्राफर नितिन बोस को हायर किया। उन्होंने 'मिलन' बनाई। दिलीप कुमार उनकी पहली च्वॉइस नहीं थे, पर हितेन के कहने और दिलीप की रिहर्सल के बाद उन्होंने हामी भर दी। फिल्म बांग्ला भाषा में भी बनी। दिलीप कुमार के लिए 'मिलन' राहत की खबर लेकर आई। उनकी पिछली दोनों फिल्मों के मुकाबले 'मिलन' ने अच्छा व्यवसाय किया। समीक्षकों ने मगर दिलीप कुमार को फुल मा‌र्क्स नहीं दिए, पर उन्होंने कहा कि नए लड़के ने ईमानदार कोशिश की है।

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