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    उत्तराखंड इलेक्शनः वोट कटवा बने राजनीतिक दलों की आफत

    By BhanuEdited By:
    Updated: Tue, 31 Jan 2017 03:35 AM (IST)

    उत्तराखंड विधानसभा चुुनाव 2017 में बड़े सूरमाओं की नजर ऐसे उम्मीदवारों (वोट कटवा) पर टिक गई जो, सिर्फ और सिर्फ वोट काटने के लिए मैदान में आ डटे हैं।

    उत्तराखंड इलेक्शनः वोट कटवा बने राजनीतिक दलों की आफत

    देहरादून, [केदार दत्त]: उत्तराखंड का सियासी समर जैसे-जैसे महासंग्राम का रूप ले रहा है, प्रत्याशियों की धड़कनें तेज हो रही हैं। नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद बड़े सूरमाओं की नजर ऐसे उम्मीदवारों (वोट कटवा) पर टिक गई जो, सिर्फ और सिर्फ वोट काटने के लिए मैदान में आ डटे हैं।

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    उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में ऐसा नहीं कि इन उम्मीदवारों को अपनी स्थिति का अंदाजा नहीं, बल्कि वे तो महारथियों का खेल बनाने और बिगाड़ने को चुनावी मैदान में कूदे हैं। चूंकि अभी नामवापसी में तीन दिन का समय बचा है, सो बड़े सूरमाओं ने इन्हें साधने की बिसात बिछानी शुरू कर दी है।

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    इसके लिए यारी-दोस्ती, नाते-रिश्तेदारी, पास-पड़ोस जैसे वास्ते दिए जा रहे हैं। डोरे बैठाने और डटे रहने, दोनों के लिए डाले जा रहे हैं। महारथियों का प्रयास यही कि किसी तरह उन्हें चुनाव मैदान से हटने या फिर डटे रहने को तैयार कर लिया जाए।

    2012 के विधानसभा चुनाव पर नजर दौड़ाएं तो राज्य की 70 विधानसभा सीटों में से 19 पर निर्दलीय प्रत्याशियों की धमक ने हार-जीत के समीकरणों को गड़बड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पांच सीटों पर जीत का अंतर सौ से 500 मतों के बीच रहा। जबकि, इतनी सीटों पर 500 से 1000 वोट के बीच।

    नौ विस क्षेत्रों में जीत का अंतर 1000 से 2000 के बीच रहा। निर्दल ताल ठोंकने वालों में ऐसे उम्मीदवार भी थे, जिन्होंने 300 से 500 के बीच मत हासिल किए। इससे मुख्य प्रत्याशियों के मध्य हार-जीत का अंतर खासा गड़बड़ा गया था।

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    इस मर्तबा भी बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों ने नामजदगी के पर्चे दाखिल किए हैं। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस समेत अन्य दलों के मुख्य प्रत्याशियों की नींद उड़ना स्वाभाविक है। यदि जीत-हार का अंतर कम रहा तो ये पूरा गणित बिगाड़ सकते हैं।

    इसे देखते हुए नामांकन प्रक्रिया से निबटने के बाद अब मुख्य प्रत्याशियों में से कुछ ने अपना फोकस ऐसे उम्मीदवारों को बैठाने पर कर दिया है, जिनका मैदान में रहना मुश्किलें खड़ी कर सकता है। जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी वोट कटवा श्रेणी के उम्मीदवारों को अपने सियासी नफा के लिए मैदान में डटे रहने के लिए तैयार करने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं।

    इसके लिए हर वो हथकंडे अपनाए जा रहेह हैं कि ऐसे उम्मीदवारों को रजामंद कर लिया जाए। देखने वाली बात होगी कि आने वाले दिनों में यह कोशिश कितना रंग ला पाती है।

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    पिछले चुनाव में 100 से 500 के बीच जीत वाली सीटें

    विस सीट--------------जीत का अंतर

    रानीखेत------------------78

    कर्णप्रयाग--------------227

    टिहरी------------------377

    नरेंद्रनगर--------------401

    चकराता---------------474

    500 से 1000 के बीच

    प्रतापनगर-------------542

    ज्वालापुर--------------558

    थराली-----------------667

    मंगलौर----------------698

    रुड़की------------------801

    1000 से 2000 के बीच

    अल्मोड़ा-------------1181

    डोईवाला-------------1212

    रुद्रप्रयाग------------1306

    कपकोट-------------1369

    देवप्रयाग------------1531

    धनोल्टी-------------1878

    बागेश्वर------------1911

    पिरानकलियर------1944

    श्रीनगर-------------1964

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