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    उत्तराखंड असेंबली इलेक्शनः थमती नजर आ रही सहानुभूति लहर

    By BhanuEdited By:
    Updated: Mon, 13 Feb 2017 06:44 PM (IST)

    उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में दस माह पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पक्ष में चली सहानुभूति लहर ऐन चुनाव के मौके पर मंद सी पड़ गई है।

    उत्तराखंड असेंबली इलेक्शनः थमती नजर आ रही सहानुभूति लहर

    देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: प्रदेश में तकरीबन दस माह पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पक्ष में चली सहानुभूति लहर ऐन चुनाव के मौके पर मंद सी पड़ गई है। अब प्रदेश में भ्रष्टाचार व विकास ही ऐसे प्रमुख मुद्दे बचे हैं, जिनके बूते सभी राजनीतिक दल चुनाव में मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। एक सवाल दल के भीतर और बाहर उठ रहा है कि वो कौन से कारक हैं, जिनकी वजह से हरीश रावत कांग्रेस में अकेले दिख रहे हैं।

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    उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में मार्च माह में हुई सियासी उठापटक को लेकर कांग्रेस को मिली सहानुभूति लहर का असर मंद पड़ता नजर आ रहा है। मार्च 2016 में प्रदेश में मचे राजनीतिक घमासान के बाद जब राष्ट्रपति शासन लगा तो मुख्यमंत्री हरीश रावत के प्रति कुछ हद तक सहानुभूति लहर थी। जिस प्रकार से कांग्रेस के विधायकों ने ही अपनी सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करते हुए सरकार को गिराने की मुहिम चलाई उससे पलड़ा मुख्यमंत्री के पक्ष झुका नजर आया।

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    हालांकि, कुछ ही दिनों में मुख्यमंत्री के एक स्टिंग के सामने आने से यह लहर काफी हद तक मंद पड़ने लगी। इस बीच मुख्यमंत्री के खिलाफ सीबीआइ जांच भी शुरू हो गई।

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    डेढ़ माह बाद फिर से सत्ता संभालने पर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने विभिन्न मंचों से खुद को सिर कटा मुख्यमंत्री तक करार दिया। उन्होंने भाजपा पर सरकार गिराने की साजिश करने, सीबीआइ की जबरन जांच कराने आदि बिंदुओं पर जनता को अपने पक्ष में लाने का प्रयास किया।

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    यहां तक कि स्टिंग को भी मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक सुनियोजित साजिश करार दिया। उन्होंने कहा कि तथाकथित स्टिंग में पूरे तथ्य नहीं दिखाई जा रहे हैं। सीबीआइ जांच को उन्होंने अपने प्रति एक राजनीतिक साजिश करार दिया।

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    इससे यह लगने लगा था कि मुख्यमंत्री के प्रति एक बार फिर सहानुभूति लहर चलेगी लेकिन फिलहाल ऐसा नजर नहीं आ रहा है। देखा जाए तो मुख्यमंत्री हरीश रावत की छवि प्रदेश के एक कद्दावर व जुझारू नेता की रही है। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि वे बेहद मेहनती हैं।

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    उनके विरोधी भी उनकी इसकी तारीफ करते हैं। पिछले छह माह में मुख्यमंत्री ने इसका श्रेय लेने का प्रयास भी किया है। बीते कुछ माह से हरीश रावत को वृद्ध बताने के साथ ही उनकी दिन रात की मेहनत को जनता के बीच गिना कर मुख्यमंत्री के पक्ष में एक बार फिर सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया गया।

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    मुख्यमंत्री स्वयं भी प्रदेश के हित के लिए जनता से अपनी रक्षा का आशीर्वाद मांग रहे हैं। प्रदेश में आने वाले केंद्रीय नेताओं को बार-बार उनके विभाग में लंबित बजट व योजनाओं पर घेरने का प्रयास किया जा रहा है। तस्वीर ऐसी पेश की जा रही है कि मुख्यमंत्री ने राज्य के लिए केंद्र को तो योजनाएं बहुत भेजी लेकिन केंद्र ने हरीश रावत सरकार को पैसा नहीं दिया।

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    मुख्यमंत्री हरीश रावत के रणनीतिकारों ने केंद्र पर ये सारे तीर सहानुभूति पाने के लिए चलाए। यह बात दीगर है कि अब चुनाव के मौके पर इन तीरों में धार नजर नहीं आ रही है।

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