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उत्‍तराखंड विधानसभा चुनाव: 'हाथी' दे रहा 'हाथ' को चुनौती

उत्‍तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 के मद्देनजर प्रदेश के दो जिलों में सत्‍तारुढ़़ कांग्रेस को भाजपा ही नहीं बसपा भी कड़ी चुनौती दे रही है।

By Gaurav KalaEdited By: Published: Wed, 01 Feb 2017 12:04 PM (IST)Updated: Thu, 02 Feb 2017 02:00 AM (IST)
उत्‍तराखंड विधानसभा चुनाव: 'हाथी' दे रहा 'हाथ' को चुनौती
उत्‍तराखंड विधानसभा चुनाव: 'हाथी' दे रहा 'हाथ' को चुनौती

देहरादून, [विकास गुसाईं]: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के मद्देनजर प्रदेश के दो जिलों में सत्ताधारी कांग्रेस को भाजपा के साथ ही सत्ता में भागीदार रही बसपा भी कड़ी चुनौती पेश कर रही है। प्रदेश में तकरीबन दो दर्जन से अधिक अल्पसंख्यक बहुल सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस और बसपा के बीच टक्कर हो सकती है। इतना ही नहीं, कई सीटों पर बसपा प्रमुख दलों का समीकरण भी बिगाड़ रही है।

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राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में हाथी ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। यही कारण भी है कि बसपा आज निर्विवाद रूप से प्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत है। बसपा का सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाता हैं। यूं तो बसपा प्रदेश में तकरीबन ढाई दशक से सक्रिय है लेकिन इसकी असली ताकत राज्य गठन के बाद ही नजर आई है।

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वर्ष 2002 में बसपा ने कुल 10.93 प्रतिशत वोट लेकर सात सीटों पर कब्जा जमाया। इनमें से पांच सीटें हरिद्वार और दो सीटें ऊधमसिंह नगर से थीं। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 11.76 प्रतिशत वोट लेकर आठ सीटों पर कब्जा जमाया। वर्ष 2012 में तीसरी विधानसभा के चुनावों में बसपा के वोट बैंक में भले ही 0.43 प्रतिशत का इजाफा हुआ लेकिन दल के खाते में केवल तीन ही सीटें आई। ये तीनों ही सीटें हरिद्वार से थी। बसपा का ऊधमसिंह नगर से सफाया हो गया।

इसका एक कारण इसके पुराने नेताओं का कांग्रेस का दामन थामना रहा। मौजूदा विधानसभा चुनाव में बसपा के लिए स्थिति काफी बदली हुई है। पिछली विधानसभा में चुने गए तीन विधायकों में से सुरेंद्र राकेश का स्वर्गवास हो चुका है और उनकी पत्नी ममता राकेश कांग्रेस के टिकट से मैदान में है। सदन में नेता बसपा के तौर पर पांच साल गुजारने वाले हरिदास कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। तीसरे विधायक सरबत करीम अंसारी बसपा के टिकट से ही फिर से मैदान मे हैं।

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इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच बसपा ने प्रदेश में एक बार फिर सभी 70 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। चुनावों में उम्मीदवारों की मौजूदा तस्वीर पर नजर डालें तो बसपा तकरीबन 15 ऐसी सीटों पर सीधे कांग्रेस को टक्कर देती नजर आ रही है जहां अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या 20 फीसद से अधिक है।

देखा जाए तो अल्पसंख्यकों को कांग्रेस का पुराना वोट बैंक माना जाता है, मगर उत्तराखंड के मैदानी जिलों में स्थिति थोड़ी अलग हैं। यहां अल्पसंख्यक समुदाय कांग्रेस और बसपा दोनों के साथ ही जुड़ा हुआ है। हरिद्वार जिले की बात करें तो जिले की तकरीबन सात सीटों पर बसपा, कांग्रेस को कड़ी चुनौती दे रही है। शेष दो पर भी बसपा समीकरण बिगाडऩे की स्थिति मे हैं।

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कुमाऊ मंडल की बात करें तो ऊधमसिंह नगर की चार और नैनीताल की दो सीटों पर बसपा समीकरण बिगाड़ रही है। वहीं देहरादून की तीन सीटों पर बसपा सीधे मुख्य मुकाबले मे तो नहीं है लेकिन यह दोनों ही प्रमुख दलों की पेशानी पर बल डाले हुए है। अल्पसंख्यक मतदाताओं का बहुत ही छोटा हिस्सा भाजपा के पाले में जाता है। पर्वतीय जिलों में अल्पसंख्यक कांग्रेस के साथ है। इससे साफ है कि मैदानी क्षेत्रों में अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर बसपा सीधे कांग्रेस को ही चुनौती पेश कर रही है।

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कौन कौन सी सीटों पर अल्पसंख्यकों का अच्छा प्रभाव

हरिद्वार ग्रामीण, भगवानपुर, ज्वालापुर, लक्सर, पिरान कलियर, रुड़की, मंगलौर, सहसपुर, विकासनगर, धर्मपुर, डोईवाला, रामनगर, हल्द्वानी, जसपुर, रुद्रपुर, किच्छा व सितारगंज।

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