उत्तर प्रदेश चुनाव 2017: भाजपा भुनाएगी एनडी का नाम
एनडी तिवारी अपने पुत्र रोहित शेखर तिवारी के राजनीतिक भविष्य के लिए परेशान हैं। जाहिर है कि उनके झुकाव को देखते हुए भाजपा उनके 'नाम' से उप्र को भी लुभाएगी।
लखनऊ (आनन्द राय)। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रह चुके एनडी तिवारी के दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के दफ्तर में जाने से उत्तर प्रदेश की राजनीति में नये समीकरण की आहट सुनाई पडऩे लगी है।
इन दिनों उत्तराखंड में रह रहे एनडी तिवारी अपने पुत्र रोहित शेखर तिवारी के राजनीतिक भविष्य के लिए परेशान हैं। जाहिर है कि उनके झुकाव को देखते हुए भाजपा उनके 'नाम' से उप्र को भी लुभाएगी। न सिर्फ ब्राह्मण चेहरे बल्कि उप्र के अहम सियासी किरदार के रूप में एनडी की अलग पहचान है।
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लंबे समय तक उप्र की सियासत की धुरी रहे एनडी तिवारी 2005 के बाद उत्तराखंड चले गये थे। समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद वह 30 नवंबर, 2012 को यहां लौटे। पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में आवंटित एक माल एवेन्यू आरोही स्थित बंगले में एक दिसंबर 2012 को सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उनके खैरमकदम को पहुंचे थे। तब एनडी बोले तो बहुत लेकिन, उनकी दो बातों के निहितार्थ निकाले गये। एक तो एनडी ने कहा था कि 'लखनऊ हम पर फिदा हो न हो, हम फिदा-ए-लखनऊ' और दूसरे यह भी कहा कि 'हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है'। तबसे अब तक करीब चार वर्षों में एनडी तिवारी की समाजवादी पार्टी से नजदीकियां जगजाहिर होती रहीं लेकिन, बुधवार को जब वह दिल्ली में भाजपा खेमे में गये तब दो बातें जरूर साफ हो गयीं कि लखनऊ से उन्हें जो उम्मीदें थीं वह हासिल नहीं हुई और आखिरी दौर में उनका दिल भाजपा पे आ रहा है।
भरे मन से मुलायम को लिखी थी चिट्ठी
गुजरी आठ जनवरी को एनडी ने भरे मन से मुलायम सिंह यादव को एक चिट्ठी लिखी थी। पत्र की शुरुआत है-16 अक्टूबर, 2016 को मैं अपनी पत्नी और सुपुत्र के साथ काठगोदाम पहुंचा था। 18 अक्टूबर को मेरा जन्मदिन हलद्वानी में मनाया गया। तबसे में मैं सपरिवार यहां ठहरा हूं। मेरी प्रबल इच्छा है कि मेरे पुत्र रोहित शेखर तिवारी 2017 के उत्तराखंड राज्य में होने जा रहे चुनाव में भाग लें अर्थात मेरे द्वारा बताए गये विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ें। इसी वजह से लखनऊ आ नहीं पा रहा हूं। समाजवादी पार्टी में चल रहे विवाद से दुखी हूं। मेरा सुझाव और विनम्र निवेदन है कि अखिलेश यादव को पार्टी का दायित्व सौंपे और पूरा आशीर्वाद दें।
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दरअसल, उप्र में एनडी तिवारी अपने पुत्र को स्थापित करने में सफल नहीं हो सके थे। रोहित शेखर को उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में सलाहकार जरूर बनाया गया लेकिन, कार्यकाल को विस्तार न मिलने पर तिवारी परिवार समझ गया था कि सियासत में मजबूती के लिए राह बदलना जरूरी है।
उज्ज्वला के प्रभाव में उठाया कदम
कांग्रेस में शामिल होने के बाद एनडी तिवारी ने कभी रास्ता नहीं बदला। नाराजगी बढ़ी तो कांग्रेसियों को ही साथ लेकर कांग्रेस तिवारी का गठन जरूर किया मगर सुलह-समझौते के बाद फिर विलय भी कर गये। अब जबकि वह खुद सक्रिय राजनीति से दूर हैं तो उनके भाजपा से प्रभावित होने की वजहें तलाशी जा रही हैं। कहा यही जा रहा है कि पुत्र रोहित के भविष्य के लिए ही उज्ज्वला ने उन्हें यह कदम उठाने को प्रेरित किया है। खामोशी तोड़कर जमाने की रवायत के खिलाफ सड़क से लेकर अदालत तक संघर्ष करने वाली उज्ज्वला शर्मा तिवारी अब प्रतिरोध की नजीर बन गयी हैं। यह उनके जज्बे का ही कमाल था कि जिस आरोही से एक रात उनको तथा उनके सामान सहित बाहर फेंक दिया गया, उसी आरोही की अब वह 'मालकिन' हैं।
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मोदी के हुए मुरीद
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद से ही एनडी तिवारी, मोदी के मुरीद हो गये थे। एनडी तिवारी समय-समय पर मोदी की सराहना से वह नहीं चूके लेकिन, कभी भाजपा के पक्ष में नहीं रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में गृहमंत्री राजनाथ सिंह अपने लिए आशीर्वाद मांगने उनके पास गये थे। इसके बाद कांग्रेस उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी भी गई थीं। एनडी ने आशीर्वाद तो सबको दिया था पर, वह कांग्रेस से तल्ख रिश्तों के बावजूद कभी लक्ष्मण रेखा नहीं लांघे। इस अवधि में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कई बार एनडी से मिलने उनके आवास गये और एनडी भी मुख्यमंत्री और मुलायम के आवास पर गये। उत्तराखंड से एनडी के लौटने पर जब मुलायम उनसे मिलने गये तो लखनऊ में ही रहने का अनुरोध किया। कहा कि, आपके रहने से मेरा मार्गदर्शन होगा और यूपी को एक गार्जियन मिल जाएगा।
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