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    यूपी चुनाव: नरेश उत्तम बोले- अब शिवपाल का यूपी समाजवादी पार्टी से क्या लेना-देना

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Sat, 28 Jan 2017 01:33 PM (IST)

    नरेश उत्तम ने सबसे पहले शिवपाल सिंह यादव के समर्थकों को दल से बाहर का रास्ता दिखाया। उनका हौसला बढ़ा है और वह ये भी कहते हैं कि संगठन के मामले में अब शिवपाल का क्या लेना-देना।

    यूपी चुनाव: नरेश उत्तम बोले- अब शिवपाल का यूपी समाजवादी पार्टी से क्या लेना-देना

    लखनऊ। अब से महज छह महीने पहले ही कोई कहता कि विधान परिषद सदस्य नरेश उत्तम समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए हैं तो शायद किसी को यकीन ही न होता। लेकिन, विधानसभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी के महासंग्राम व अधिकार की लड़ाई जीतने के बाद मुख्यमंत्री तथा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ढेरों कयासों को नकारते हुए नरेश उत्तम को उस कुर्सी का दायित्व सौंपा जिसे वह खुद संभालते थे। एक तथ्य यह भी है कि इस कुर्सी पर बैठते ही नरेश उत्तम ने सबसे पहले अपने नाम के आगे 'पटेल' शब्द जोडऩा शुरू किया।

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    युवा ब्रिगेड की वापसी का फैसला किया और शिवपाल सिंह यादव के समर्थकों को दल से बाहर का रास्ता दिखाया। उनका हौसला बढ़ा है और वह ये भी कहते हैं कि संगठन के मामले में अब शिवपाल का क्या लेना-देना। चुनावी चुनौती, भितरघात और गठबंधन को लेकर विशेष संवाददाता परवेज अहमद ने उनसे लंबी बात की-

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    आप वह कुर्सी संभाल रहे हैैं , जिसे अखिलेश, शिवपाल संभालते थे। रोड मैप क्या है?

    -देखिए, राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यह दायित्व दिया है। उनका विश्वास टूटने नहीं दूंगा। इसलिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हूं। संगठन को लोगों को यह यकीन दिलाना है कि उनके दुख-सुख में सिर्फ मै नहीं, राष्ट्रीय अध्यक्ष भी साथ हैैं। बस, इसके बाद चीजें स्वत: रफ्तार पकड़ लेंगी। यही मेरा रोड मैप है।

    सैफई परिवार के अंदर भी इस पद के दावेदार थे?

    मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता है। मैैं, संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह का चुनाव प्रभारी रहा, कन्नौज चुनाव का काम संभाला। पार्टी के लिए प्रतिबद्ध रहा हूं और इसी कारण ही राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुझ पर भरोसा जताया है। यह भरोसा टूटने न दूंगा।

    शिवपाल के नियुक्त एक दर्जन जिलाध्यक्ष एक झटके में हटा दिए, क्यों ?

    इसमें शिवपाल सिंह यादव जी से अब क्या लेना-देना। मुझे, अखिलेश यादव ने संगठन का जिम्मा सौंपा है। मैैं, उनकी नीतियों को आगे बढ़ाने की दिशा में चलूंगा। यह समझना होगा कि राजनीतिक दल राष्ट्रीय अध्यक्ष के विश्वास व विचार से बढ़ते हैं। किसी का आदमी होने से पद नहीं मिलता, सपा अपने कार्यकर्ताओं के सम्मान में कमी नहीं आने देती। जिन्हें हटाया गया है कि नेतृत्व उन्हें कोई न कोई जिम्मेदारी देगा। वर्ष 2017 में सरकार बनाना पहला लक्ष्य है।

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    किन मुद्दों को लेकर चुनाव में जा रहे हैैं ?

    -हमारे मुद्दे साफ हैैं। अखिलेश यादव का 'काम बोलता है'। विकास के मुद्दे पर ही हम चुनाव लड़ेंगे। नोटबंदी से किसानों की कमर टूट गई है, यह भी हमारा मुद्दा होगा। देश में धर्मनिरपेक्ष ताकतें कमजोर नहीं होने पाएं, इसी कारण कांग्रेस से गठबंधन किया गया है। कोई भी दल अगर ईमानदारी से बात करेगा तो वह समाजवादी सरकार के विकास से मुकाबला नहीं कर सकता है। हम इस चुनाव में 'अच्छे दिन का वादाÓ कर जनता ठगने वालों को पोल भी खोलेंगे। उनसे ही सवाल करेंगे किसके अच्छे दिन आये, जनता को बतायें?

    कांग्रेस ने '27 साल, यूपी बेहाल' नारे से सपा को घेरा, गठबंधन के बाद कार्यकर्ताओं में सामंजस्य कैसे होगा?

    -देखिए, समाजवादी पार्टी का छोटे से छोटा कार्यकर्ता जानता है कि देश की एकता-अखंडता व धर्म निरपेक्षता की रक्षा के लिए उसके नेतृत्व ने कांग्रेस से गठबंधन किया है। बड़ा लक्ष्य पाने के लिए बने गठबंधन को उसने दिल से स्वीकारा है। दोबारा अपनी बनाने के लिये हमारा कार्यकर्ता पूरी ताकत से जुट गया है।

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    कांग्रेस को दी गई 105 सीटों के टिकट के दावेदार मायूस नहीं होंगे, जो पांच साल से चुनाव की तैयारी में लगे थे?

    -नहीं, ऐसा नहीं है। मैैंने पहले ही कहा कि बड़े लक्ष्य के लिए कुछ तकलीफ उठानी होती है। कार्यकर्ता को पता है कि अखिलेशजी के दोबारा मुख्यमंत्री बनने पर उनको सम्मान मिलेगा। सम्मान भी ऐसा, जिसकी उसने अपेक्षा की हो। कार्यकर्ताओं का उत्साह देखकर केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार का आत्मविश्वास डोल गया है। वह घबरा कर दलबदलुओं को टिकट बांट रही है, मगर जनता उसकी दाल नहीं गलने देगी।

    सपा पर मुस्लिमों के हितों की अनदेखी का इल्जाम लग रहा है, आप क्या कहेंगे?

    - अरे, कमाल करते हैं। समाजवादी पार्टी इकलौती है जो अकलियतों के लिए न्याय की लड़ाई 25 सालों से लड़ रही है। इसके संस्थापक मुलायम सिंह यादव से बड़ा कोई उदाहरण नहीं है। अखिलेश यादव के रूप में हमारा युवा नेतृत्व भी उसी राह पर है। समाजवादी पार्टी अल्पसंख्यकों, मुस्लिमों को अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ती रहेगी। फासिस्टवादी ताकतों के दुष्प्रचार से मुस्लिम गुमराह होने वाला नहीं है। समाजवादी पार्टी उनकी स्वाभाविक पसंद भी है।

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    कौमी एकता दल (कौएद) सपा छोड़ बसपा के साथ चली गई, पूर्वांचल पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

    -अखिलेश यादव राजनीति के अपराधीकरण के विरोधी थे और हैैं। वह डॉ. लोहिया, जनेश्वर मिश्र के विचारों को आत्मसात करने वाले नेता हैैं। विचारों की लड़ाई लड़ते हैैं। देश के युवा वर्ग की मंशा की भावनाओं को अनुरूप उन्होंने माफिया प्रवृति के लोगों को पार्टी में लेने से इनकार किया था। बसपा ने अंसारी बंधु को साथ लेकर मौका परस्ती का एक सबूत जनता के सामने पेश कर दिया है। अपराधियों से दूर रहने की सपा की नीति का जनता स्वगत कर रही है।

    मुख्य लड़ाई किससे मान रहे है?

    -समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन की किसी से लड़ाई नहीं है। हम नम्बर एक पर हैैं। भाजपा-बसपा आपस में तय करें कि कौन दूसरे-तीसरे नम्बर पर रहेगा।

    गठबंधन को कितनी सीटें जीतने की उम्मीद है?

    -अखिलेशजी के नेतृत्व में दोबारा सरकार बनाने जा रहे हैैं। मुख्यमंत्री ने जितना विकास कार्य किया है, उतना आजादी के बाद कभी नहीं हुआ है। सपा अपने दम पर ढाई सौ सीटें जीतती, गठबंधन हो गया है तो तीन सौ सीटें तो जीतेंगे ही। मुख्यमंत्री भी यह बात कहते हैैं।

    मगर आप क्या मानते हैैं?

    - यकीन जानिए, जनता का जिस तरह से गठबंधन के प्रति सकारात्मक रुझान दिख रहा है, उसमें अगर हम साढ़े तीन सौ सीटें भी जीत जाएं तो बहुत आश्चर्य मत कीजिएगा।

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