UP election: सात सीटें जीतने वाली सपा के सामने कठिन चुनौती
बदलते समय के साथ बस्ती पहले जिला फिर मंडल मुख्यालय बन चुकी है। इसमें बस्ती, सिद्धार्थनगर व संतकबीरनगर तीन जिलों में सपा के लिए कड़ी चुनौती है।
लखनऊ (जेएनएन)। बदलते समय के साथ बस्ती पहले जिला फिर मंडल मुख्यालय बन चुकी है। इस मंडल में बस्ती, सिद्धार्थनगर एवं संतकबीरनगर तीन जिले हैं। सिद्धार्थनगर-संतकबीरनगर भी बस्ती के ही हिस्से थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में इस मंडल में सर्वाधिक 7 सीटें सपा के खाते में गई थीं, जबकि बसपा और पीस पार्टी को दो-दो सीटें मिली थीं। कांग्रेस और भाजपा को सिर्फ एक-एक सीट से संतोष करना पड़ा था। इस बार सपा के सामने पिछला रिकार्ड बनाए रखने की कठिन चुनौती है। मंडल की अधिकतर सीटों पर भाजपा, सपा-कांग्रेस और बसपा के बीच त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति है। कहीं पीस पार्टी तो कहीं निर्दलीय भी लड़ाई को चतुष्कोणीय बना रहे हैं। लंबे समय बाद भाजपा लगभग सभी सीटों पर न सिर्फ मजबूती से लड़ रही है बल्कि कई सीटों पर वह अपनी जीत के दावे भी करने लगी है। इस चुनाव में भी विकास की बातें सिर्फ जुबान से हो रही हैं, लेकिन जीत के लिए सबकी नजर जातीय समीकरणों पर ही है। सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बावजूद मंचों पर जाति और संप्रदाय के विकास के नाम पर मतदाताओं को विभाजित करने की खूब बातें की जा रही हैं। दूसरी पार्टियों के साथ पीस पार्टी और एमआइएमआइएम भी इसको हवा दे रही हैं।
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आमतौर पर तीनों जिलों की चुनौतियां एक जैसी ही हैं। मान्यता है कि बस्ती के मखौड़ा में राजा दशरथ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया था, जबकि सिद्धार्थनगर का कपिलवस्तु भगवान बुद्ध का जन्मस्थल है। संतकबीरनगर के मगहर में संत कबीर का निर्वाण स्थल है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं, लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए सड़कें और संसाधन दोनों ठीक नहीं है। बुद्ध और कबीर के संदेश से अभिसिंचित इस क्षेत्र में बाढ़ प्रमुख समस्या है। नेपाल सीमा से सटा सिद्धार्थनगर का एक हिस्सा हर साल बाढ़ में उजड़ता और बसता है। राप्ती और बान गंगा जैसी नदियां यदि इसकी शोभा हैं तो विनाश की इबारत भी लिखती हैं, लेकिन उनकी धारा को नियंत्रित करने या दिशा देने की कोशिश अब तक नहीं हो पाई। नदियों में जमा सिल्ट सियासत की उदासीनता बयां कर रही है। यही कारण है कि बांसी और डुमरियागंज तहसीलों के सैकड़ों गांवों के लिए ये नदियां बरसात में दुस्वप्न की तरह होती हैं। बस्ती और संतकबीरनगर में भी बाढ़ बड़ी समस्या है। बस्ती के हर्रैया में तो नदी के मुहाने पर बसे छह गांव-सीतारामपुर माझा, बाघानाला, सहजौरा, कल्याणपुर, चांदपुर तथा भरथापुर जलप्लावित होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। यहां के लोग रोज ही अपनी ओर बढ़ती नदी की सीमा नापते हैं और अपने घर-छप्पर उजाडऩे लगते हैं। इन्हें बचाने के लिए वर्षों पूर्व प्रस्तावित लोलपुर-गौरिया-बिक्रमजोत बांध अब तक पूरा नहीं हो सका है। ग्यारह किमी के इस बांध में सिर्फ दो किमी ही बन सका है, फिर भी नेता विकास के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं। बाढ़ क्षेत्र के गांवों के लोग इस बात से हैरान हैं कि विधानसभा चुनाव में उनकी समस्या पर बात नहीं हो रही है। नेताओं के उडऩखटोले गांवों तक पहुंच रहे हैं, लेकिन वे असल मुद्दों पर बात ही नहीं करते। सहजौरा के प्रमोद तिवारी कहते हैं कि प्रशासन हमारे गांव को बचा नहीं सकता तो कम से कम हमें अन्यत्र बसाने का इंतजाम करे। बाघानाला के बच्चा राम यादव नदी से मिली पीड़ा बताते हुए भावुक हो जाते हैं। वह कहते हैं कि 1971 से लेकर अब तक 41 गांव घाघरा में समा चुके हैं, इसके बावजूद सरकारें चुप्पी साधे रहीं। अब तो हमारा गांव भी नदी में समाने वाला है।
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विकास की बात करें तो सिद्धार्थनगर के हिस्से सिद्धार्थ विश्वविद्यालय आया है। इससे इस क्षेत्र में शिक्षा के प्रसार को गति मिलने की संभावना बढ़ी है। नेपाल के सीमावर्ती जिलों के छात्रों को भी उच्च शिक्षा का अवसर मिलने की उम्मीद जागी है। सपा इसे अपनी उपलब्धि बताकर भुनाने का प्रयास भी कर रही है, लेकिन बाढ़ को आमंत्रण देने वाले जर्जर बांधों के पुननिर्माण के लिए ठोस पहल का अब भी इंतजार है। पूरे देश में अपनी खुशबू बिखेरने वाले यहां के काला नमक चावल के क्षेत्रफल को भी बाढ़ समेटने लगी है। डुमरियागंज के शोएब मोहम्मद कहते हैं कि बाढ़ के स्थाई समाधान के लिए जरूरी है कि नदियों में जमा सिल्ट निकालकर उनका प्रवाह दुरुस्त किया जाए, लेकिन किसी को इसकी चिंता नहीं है। मंडल के जिला मुख्यालयों को जोडऩे वाली सड़कों की बात छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकतर सड़कें खस्ताहाल हैं। इन तीनों जिलों में रोजगार के अवसर की कमी है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में मुंबई तथा अन्य शहरों में पहुंच जाते हैं।
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बुनियादी सुविधाओं से भी महरूम संतकबीरनगर
पूर्वांचल में संतकबीरनगर की पहचान कबीर के निर्वाण स्थल के साथ कताई मिल, वनस्पति घी और हथकरघा उद्योग के कारण होती थी, लेकिन उनकी खटर-पटर ठप हो चुकी है। यहां की चीनी मिली भी वर्षों से बंद है, जिससे गन्ना किसान मारे मारे फिर रहे हैं। इंडस्ट्रियल एरिया में कहने के लिए चार छोटे उद्योग लगे हैं लेकिन उनमें इतना काम नहीं है कि बड़ी संख्या में बेराजगारों का समायोजन हो सके। कताई मिल एवं चीनी मिल को चलाने का वादा कई चुनावों में मंचों से किया गया, लेकिन चुनाव बीतते ही नेता इसे भूल गए। बखिरा का बर्तन उद्योग और मेंहदावल के हथकरघों को पुनर्जीवित करने के प्रयास हुए ही नहीं। मेंहदावल के खैरहवा में 1993 में कुक्कुट पालन केंद्र की आधारशिला रखी गई, लेकिन यह अब तक खुल नहीं सका। मगहर से सटकर बहने वाली आमी नदी कब की काली पड़ चुकी है। औद्योगिक इकाईयों के अपजल से प्रदूषित इस नदी को बचाने के लिए नागरिक संगठन वर्षों से आंदोलित हैं, लेकिन सरकार की ओर से कारगर कदम नहीं उठाए जा सके हैं।
मुलायम सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में गठित इस जिले में बुनियादी सुविधाओं का विकास अब तक नहीं हो पाया है। रोडवेज का अपना बेड़ा तक नहीं है।
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दांव पर विधानसभा अध्यक्ष सहित दिग्गजों की प्रतिष्ठा
छठें चरण में जिन क्षेत्रों में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है उनमें बस्ती मंडल के बस्ती, सिद्धार्थनगर एवं संतकबीरनगर जिलों की तेरह सीटें भी शामिल हैं। बस्ती एवं सिद्धार्थनगर में पांच-पांच तथा संतकबीरनगर में तीन सीटों पर रोमांचक मुकाबले की तस्वीर बन रही है। सिद्धार्थनगर के इटवा में विधानसभा अध्यक्ष एवं सपा प्रत्याशी माता प्रसाद पांडेय भाजपा और बसपा के साथ त्रिकोणीय मुकाबले में घिरे हैं, जबकि बांसी से राजा जयप्रताप सिंह की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। उन्हें सपा, बसपा, रालोद से कठिन चुनौती मिल रही है। इस मंडल में पीस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं विधायक डा. मोहम्मद अय्यूब के सियासी जमीन की परीक्षा भी होनी है, जो खुद भी खलीलाबाद सीट पर बहुकोणीय मुकाबले में फंसे हैं। पीस पार्टी के सामने 2012 का प्रदर्शन दोहराने की कठिन चुनौती है, जिसने दो सीटें हासिल की थीं और तीन सीटों पर दूसरे स्थान पर आई थी।
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इस बार अय्यूब खलीलाबाद सीट से लड़ रहे हैं, जबकि मेंहदावल सीट पर अपने बेटे को उतारा है। बस्ती के हर्रैया में अखिलेश सरकार में कभी ताकतवर रहे और बाद में बर्खास्त किए गए राजकिशोर सिंह चौथी बार किस्मत आजमा रहे हैं। कप्तानगंज में पांच बार से जीत रहे बसपा नेता एवं पूर्व मंत्री रामप्रसाद चौधरी भाजपा और कांग्रेस-सपा से जूझ रहे हैं। वह इस सीट पर अब तक अपराजेय रहे हैं, लेकिन इस बार क्या होगा कहना मुश्किल है। महदेवा सीट पर राज्यमंत्री रामकरन आर्य की भाजपा और बसपा ने घेरेबंदी कर रखी है। सपा ने इस मंडल में कांग्रेस को दो सीटें दी हैं। कप्तानगंज में पूर्व विधायक राणा कृष्ण किंकर सिंह उसके उम्मीदवार हैं, जबकि रुधौली में सईद अहमद। रुधौली सीट पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर संजय प्रताप जायसवाल ने जीती थी, जो अब यहां से भाजपा के उम्मीदवार हैं। शोहरतगढ़ सीट पर सपा-कांग्रेस का गठबंधन बिखर गया है। यहां सपा उम्मीदवार उग्रसेन सिंह के खिलाफ कांग्रेसी अनिल सिंह भी ताल ठोंक रहे हैं।
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