यूपी चुनावः पूर्वांचल में उमड़ा बिहार, दे रहा बाटी चोखा और जनेऊ की दुहाई
बनारस का एक चौथाई भाग बिहारियों से आबाद है। चाय-पान दुकान से रिक्शा ठेला और ठेकेदार तक। बनारस के नवनिर्माण में लगे लगभग 80 फीसद राज मिस्त्री बिहार के ही हैं।
बनारस [अरविंद शर्मा]। बानी और संस्कार लगभग एक ही हैं, सो यहां के कई जिलों में बिहार का दिख जाना सहज ही था। विशेष तौर पर बनारस में जिसे यूपी-बिहार का लाइन ऑफ कंट्रोल कहा जाता है और ...जो दिल्ली के बाद सियासत का सबसे बड़ा केंद्र है। ...जहां से दोनों प्रदेशों की राजनीति प्रभावित होती है। ...जिसके पोर-पोर में बिहारी चाल-ढाल व अंदाज पूरी तरह रचा-बसा है। बनारस के इसी मिजाज को भांपकर नरेंद्र मोदी 2014 के लोकसभा चुनाव में बनारसी हो गए थे। बिहार विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल प्रमुखता से नजर आया था और अब यूपी में भोजपुर दिख रहा है। बाटी-चोखा की संगतें हो रही हैं तो जनेऊ की दुहाई भी।
पूर्वांचल की सियासी कुंडली बिहारी अंदाज से पूरी तरह मेल खाती है। यही कारण है कि समाजवादी पार्टी ने बिहार प्रदेश के अध्यक्ष देवेंद्र प्रसाद यादव एवं भाजपा ने अपने सहयोगी लोजपा प्रमुख एवं केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को यूपी में स्टार प्रचारक बना रखा है। बिहार की राजनीति पूर्वांचल में सक्रिय है। यह सक्रियता बनारस में कुछ अधिक ही है, क्योंकि यहां के सामने घाट, छित्तूपुर, पांडेयपुर, चितईपुरी जैसे मोहल्लों में बिहारियों की बड़ी आबादी है। माना जाता है कि बनारस का एक चौथाई भाग बिहारियों से आबाद है। चाय-पान दुकान से रिक्शा ठेला और ठेकेदार तक। बनारस के नवनिर्माण में लगे लगभग 80 फीसद राज मिस्त्री बिहार के ही हैं। कैमूर, बक्सर, रोहतास, मोहनिया, छपरा व औरंगाबाद जिले की बड़ी आबादी बनारस में रहती है। इनमें से अधिकतर यहां के निवासी बनकर वोटर बन गए हैं। औरंगाबाद के मूल निवासी और अभी बनारस के पांडेयपुर में बसे ब्रजेश कुमार के मुताबिक बिहार के लोग चुनाव लड़ते नहीं, लड़वाते हैं। हमारी अनदेखी करते ही हार-जीत का खेल हो जाता है।
पूर्वांचल में बिहार की अहमियत का अहसास कर ही सियासत के बड़े खिलाडिय़ों ने बिहारी नेताओं को लगा रखा है। अपने समधी की मदद करने के लिए राजद प्रमुख लालू प्रसाद इस चुनाव में अभी तक यूपी का दो बार दौरा कर चुके हैं। आखिर के दो चरणों के लिए बिहार से सटे बनारस के आसपास के इलाकों में अपनी सक्रियता तेज करने वाले हैं। समाजवादी पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद देवेंद्र प्रसाद यादव ने बनारस को अपना केंद्र बना रखा है। वह बिहारी कार्यकर्ताओं के बड़े अमले के साथ पूर्वांचल में दो सप्ताह से डटे हैं। कबीर चौरा पर अपना कैंप बना रखा है। खुद चंदौली, कुशीनगर एवं देवरिया समेत आसपास के जिलों की दूरी माप रहे हैं। यही हाल कांग्रेस खेमे का है।
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं शिक्षा मंत्री अशोक कुमार चौधरी समेत तीन मंत्रियों ने अपनी पूरी दिनचर्या को पूर्वांचल में ही शिफ्ट कर लिया है। बिहार प्रदेश से आने वाले भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों के सभी मंत्रियों का रुख आजकल अपने प्रदेश से विमुख हैं। सबका डेरा पूर्वांचल के जिलों में है। लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्वांचल पर पकड़ के लिए तैयार किए गए भाजपाई फार्मूले ने परिणाम भी दिया था। सीमा से सटे बिहार की 12 सीटों समेत पूर्वांचल की तकरीबन तीन दर्जन सीटों पर भाजपा की फतह हुई थी। उन सीटों पर भी भाजपा ने खाता खोला था जो अरसे से विरोधियों के खाते में जाती थी। लोकसभा के नतीजे के बाद सभी दलों के शीर्ष नेताओं को पूर्वांचल में बिहार की अहमियत को समझना पड़ा है। यही कारण है कि बनारस वाले बिहारियों का कद बढ़ गया है।
यहां आकर बनारसी हो जाते हैं बिहारी
बीएचयू में पढ़ रहे छात्रों की लगभग आधी संख्या बिहार की है। यही कारण है कि इसे मज़ाक में बिहार हिंदू यूनिवर्सिटी भी कह दिया जाता है। बीएचयू में पढ़ रहे मोतिहारी के विशाल कहते हैं, यह मजाक महज संयोग नहीं हो सकता। बीएचयू की चारों तरफ की कॉलोनियां बिहारियों से भरी पड़ी हैं। सिर्फ लंका में बिहारियों की छिटपुट आबादी है। बच्चों की शिक्षा के मकसद से आए बिहारियों ने लंका से क्यों परहेज किया? यह शोध का विषय हो सकता है। इसी तरह यूपी कॉलेज के आसपास की आबादी भी बिहार बहुल है। यहां आकर बस गए बिहारियों ने बनारसीपन को अपनाया है, बिहारीपन को नहीं। बिहारियों की जातिगत भावनाएं यहां आकर शिथिल पड़ जाती हैं।
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