दावा

16वीं लोकसभा के गठन की चुनावी रणभेरी बज चुकी है। सभी राजनीतिक दल और राजनेता येन केन प्रकारेण सत्ता तक पहुंचने की माथापच्ची में जुट चुके हैं। जनता को लुभाने के किस्म-किस्म के तरीके अपनाए जा रहे हैं। कोई खुद को उनका सबसे बड़ा रहनुमा बता रहा है तो कोई अपनी योजनाओं और नीतियों से जनकल्याण का पैमाना पेश कर रहा है। कुछ लोग तो भविष्य को सुखद बनाने तक की भी दलील दे रहे हैं। झांसों, दावों और वादों की कोई कमी नहीं है।

दांव

जनता लोकतंत्र की जान है। किसी चीज से अनजान नहीं है। सर्वशक्तिमान है। उसके पास किसी को पुष्प से सुवासित करने की अगर ताकत है तो क्षण भर में धूल धूसरित करने का हुनर भी है। इस चुनावी दंगल में कई राजनीतिक दल साझा सरकार बनाने के दावे के साथ सामने आ रहे हैं। हालांकि हर बार की तरह इस बार भी चुनाव से पहले ही इनका रूप-रंग मायावी सा दिखने लगा है। इनके बनने और बिगड़ने से जुड़े हर क्षण बदलते घटनाक्त्रम किसी भी राजनीतिक पंडित को चकरा देने में काफी हैं। येन केन प्रकारेण अगर ऐसा कोई मोर्चा सिरे भी चढ़ता है तो ऐसी अस्थाई राजनीतिक व्यवस्था हमेशा राष्ट्रीय अस्थिरता और छोटे-छोटे दलों की ब्लैकमेल करने वाली प्रवृत्ति को बढ़ावा देने वाले साबित हुए हैं।

भाव

इतिहास गवाह है कि ऐसी सरकारें घटक दलों को संतुष्ट करने के चक्कर में या तो अनिर्णय का शिकार रहीं या फिर गलत अनुचित निर्णय लिए गए। लिहाजा देश के सभी मतदाताओं के लिए यह सिर्फ चुनाव ही नहीं राष्ट्रीय स्थिरता के लिए योगदान का अवसर है। ऐसे में राष्ट्र की स्थिरता और आर्थिक विकास से जुड़े आम आदमी के कल्याण को देखते हुए गठबंधन सरकार और किसी एक दल की बहुमत वाली सरकार की खूबियों एवं खामियों की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

दोनों तरफ हैं खूबियां और खामियां

देश की अर्थव्यवस्था पर गठबंधन सरकार और किसी एक दल की बहुमत वाली सरकार द्वारा पड़ने वाले असर का तुलनात्मक अध्ययन राजनीतिक अर्थशास्त्री माला लालवानी ने किया। मुंबई विश्वविद्यालय की प्रोफेसर द्वारा किया गया यह शोध 2005 में प्रसिद्ध जर्नल अमेरिकन रिव्यू ऑफ पॉलिटिकल साइंस में प्रकाशित हुआ। शोध के अनुसार 1966-67 से 1998-99 के बीच राज्य स्तर पर 43 गठबंधन सरकारें काम कर रही थीं। उस दौर की परिस्थितियों में किए गए इस शोध के नतीजों में यह बात सामने आई कि राज्य स्तर पर साझा सरकारों के पूंजी खर्च में वृद्धि हुई। इन राज्यों ने विशेषकर सामाजिक सेवाओं और विकास कायरें से संबंधित श्रेणियों में इस पूंजी खर्च कर औसतन बेहतर प्रदर्शन किया। हालांकि ये सरकारें राजस्व खर्च और राजस्व घाटों को कम करने के लिए सख्त राजनीतिक निर्णय लेने में विफल रहीं। इन साझा सरकारों की कमजोर बहुमत उनकी प्रमुख ताकत रही। सत्ता पर गठबंधन की ढीली पकड़ उनको सुधारों के मार्ग प्रशस्त करने का लाइसेंस देती है। यदि इस अवसर के तहत कड़े सुधार किए जाएं तो गठबंधन का युग भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

जनमत

क्या क्षेत्रीय दलों के प्रभुत्व या दबाव में काम करने वाली गठबंधन सरकारें अनिर्णय और अस्थिरता का शिकार होती हैं?

हां 94 फीसद

नहीं 6 फीसद

क्या केंद्रीय संसद के लिए चुनाव में वोट करते वक्त राष्ट्रीय दलों को प्राथमिकता देनी चाहिए?

हां 83 फीसद

नहीं 17 फीसद

आपकी आवाज

क्षेत्रीय दल एक राज्य की राजनीति करते हैं। राज्य के मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देते हैं। राष्ट्रीय दल का फैलाव पूरे देश में होता है इसलिए केंद्रीय सांसदों को वोट देते वक्त देश की आम जनता को राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट करना चाहिए न कि क्षेत्रीय मुद्दों और राष्ट्रीय दलों को इसमें सर्वोपरि रखना चाहिए। -अनुराग शर्मा

हम सब की जिम्मेदारी है कि राष्ट्रीय दलों को चुन सही सरकार बनाए, छोटी पार्टी जीतने पर सौदेबाजी करती हैं। -शुभम जीमेल.कॉम

क्षेत्रीय पार्टियों का उदय देश के संघीय ढांचे के खिलाफ है। क्योंकि इनकी राजनीति का आधार जातिवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद आदि विभाजनकारी घटकों पर टिका है। -धर्मेद्रकुमारदूबे 438 जीमेल.कॉम

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