ओपीनियन पोल का खेल
साख चुनाव से पहले आमतौर पर ढेर सारे प्रकाशित-प्रसारित होने वाले ओपीनियन पोल (चुनावी सर्वेक्षण) जनता का ध्यान आकर्षित करते हैं। हाल में एक टीवी न्यूज चैनल ने ओपीनियन पोल के नतीजों की हकीकत जानने के लिए संबंधित एजेंसियों का एक स्टिंग ऑपरेशन किया। चैनल के दावे के मुताबिक 11 ओपीनियन पोल एजेंसियां पैसे लेकर पोल के नतीजों म
साख
चुनाव से पहले आमतौर पर ढेर सारे प्रकाशित-प्रसारित होने वाले ओपीनियन पोल (चुनावी सर्वेक्षण) जनता का ध्यान आकर्षित करते हैं। हाल में एक टीवी न्यूज चैनल ने ओपीनियन पोल के नतीजों की हकीकत जानने के लिए संबंधित एजेंसियों का एक स्टिंग ऑपरेशन किया। चैनल के दावे के मुताबिक 11 ओपीनियन पोल एजेंसियां पैसे लेकर पोल के नतीजों में हेरफेर करने की इच्छुक दिखीं। इससे इन पोल की साख पर बट्टा लगा है।
संकट
पहले से ही जब ओपीनियन पोल में कोई दल पिछड़ता दिखता है तो वह इनकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाता हुआ इन पर पाबंदी की मांग करता है। स्टिंग ऑपरेशन के पर्दाफाश के बाद निर्वाचन आयोग ने भी केंद्र सरकार से जरूरी कार्रवाई करने को कहा है। इससे इनके अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है लेकिन यह राय भी व्यक्त हो रही है कि इन पर पाबंदी अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने वाला कदम साबित होगा।
सवाल
इन सबके मद्देनजर अहम प्रश्न यह उठता है कि क्या इन पर पाबंदी की मांग तर्कसंगत है? क्रिकेट से लेकर कई क्षेत्रों में हुए स्टिंग ऑपरेशन के बाद क्या उन पर पाबंदी लगाई गई है? यद्यपि यह मांग भी उठ रही है कि इन पर प्रतिबंध के बजाय ऐसे नियम-कायदे बनाए जाने चाहिए कि वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर पारदर्शी तरीके से इस काम को अंजाम दिया जा सके। इन सब अहम प्रश्नों की पड़ताल आज का बड़ा मुद्दा है।
यदि स्टिंग ऑपरेशन 'ऑपरेशन प्राइम मिनिस्टर' में सत्यता है तो ये ओपीनियन पोल पेड न्यूज की श्रेणी में आते हैं जोकि लोकतंत्र को कमजोर करते हैं। मैं निर्वाचन आयोग से आग्रह करता हूं कि आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इस पर्दाफाश के बाद हेरफेर की गुंजाइश वाले इन ओपीनियन पोल की प्रकृति और प्रभाव के संबंध में निर्णय लें। इनकी जांच की जरूरत है। इनमें ये देखा जाना चाहिए कि क्या ये किसी राजनीतिक दल के हित को तो नहीं साध रहे हैं और लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं। इन परिस्थितियों में निर्वाचन आयोग को सख्त निर्णय लेने की जरूरत है। -कपिल सिब्बल (केंद्रीय मंत्री)
निर्वाचन आयोग को ओपीनियन पोल के संबंध में आचार संहिता बनानी चाहिए और इनकी निगरानी के लिए एक नियामक संस्था का गठन करना चाहिए। अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप में इस संबंध में स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल है और इस संबंध में बुनियादी जानकारियों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इनमें पोल एजेंसी के मालिक, सर्वे करने वाली एजेंसी का ट्रैक रिकॉर्ड, स्पांसर का ब्यौरा और सैंपल के आकार के विषय में जानकारी देना शामिल है। -योगेंद्र यादव
जनमत
क्या ओपीनियन पोल जनभावनाओं को जांचने परखने का सही जरिया हैं?
हां 75 फीसद
नहीं 25 फीसद
क्या ओपीनियन पोल से चुनाव नतीजे के प्रभावित होने का खतरा रहता है?
हां 47 फीसद
नहीं 53 फीसद
आपकी आवाज
ओपीनियन पोल जनभावनाओं को जांचने परखने का एक सही जरिया है। क्योंकि इसके जरिए ही चुनाव परिणामों से पहले ही यह तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाती है कि आम जनता किस पार्टी के पक्ष में हैं और किस के नहीं। -राजू 09023693142 जीमेल.कॉम
ओपीनियन पोल के माध्यम से चुनावों के पूर्व जो विचारों का प्रसार होता है, वो मतदाता के मन-मस्तिष्क को प्रभावित कर सीधे चुनाव के नतीजों को प्रभावित करता है। -अजय.मनकामेश्वर जीमेल.कॉम
ओपीनियन पोल तभी तक कारगर साबित है जब तक उसमें कोई भ्रष्टाचार न हो। चुनाव आयोग को ऐसे ओपीनियन पोल पर रोक लगानी चाहिए जो धांधली करते हुए पाए जाते हैं। -विनीतमी.58 जीमेल.कॉम
यह कुछ हद तक तो चुनाव नतीजों को जरूर प्रभावित करते हैं। इसलिए ओपीनियन पोल कराने की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होनी चाहिए। -योगेश. शर्मा827 जीमेल.कॉम
पढ़े: नया राज्य नई राय
।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।