राष्ट्रीय क्षेत्रीय मुद्दे
रंग दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने केंद्रीय संसद की चुनावी रंगत से सराबोर है। यहां के 120 करोड़ उत्सवप्रिय लोगों के लिए चुनाव किसी खास आयोजन से कम नहीं हैं। जिधर देखो, चुनाव का शोर। जिसको देखो चुनावी विश्लेषण करते हुए दिखेगा। आपके सुनने के सब्र का पैमाना छलक जाएगा लेकिन उनके चुनावी विश्लेषण पर पूर्ण तो क्या अर्द्ध विराम भ
रंग
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने केंद्रीय संसद की चुनावी रंगत से सराबोर है। यहां के 120 करोड़ उत्सवप्रिय लोगों के लिए चुनाव किसी खास आयोजन से कम नहीं हैं। जिधर देखो, चुनाव का शोर। जिसको देखो चुनावी विश्लेषण करते हुए दिखेगा। आपके सुनने के सब्र का पैमाना छलक जाएगा लेकिन उनके चुनावी विश्लेषण पर पूर्ण तो क्या अर्द्ध विराम भी नहीं लगेगा। गठजोड़, समीकरण, बयार, उड़ान चक, पैराशूट प्रत्याशी सहित उम्मीदवारों के तमाम उपमाओं से जुड़े शब्द इन दिनों लोगों की शब्दकोश की शोभा बढ़ाते हैं। आखिर हो भी क्यों न, पांच साल बाद होने वाला यह देश की लोकसभा का चुनाव जो है।
रंगत
हालांकि पिछले कुछ दशक से देश के इस केंद्रीय चुनाव के 'राष्ट्रीय' चरित्र की रंगत फीकी पड़ती दिख रही है। एक तरफ राष्ट्रीय दलों की वोट हिस्सेदारी कम हो रही है तो क्षेत्रीय दलों की पकड़ मजबूत हो रही है। हालांकि किसी भी लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए स्थायी केंद्र सरकार के लिए इस प्रवृत्ति को बहुत कारगर नहीं कहा जा सकता है। कुछ लोग इस बात की दलील दे सकते हैं कि भारत जैसे विविधता वाले देश में यह व्यापक प्रतिनिधित्व की एक निशानी है। लेकिन इससे पहले क्षेत्रीय दलों के आचार, विचार और व्यवहार, निष्ठा पर भी एक नजर डालनी होगी। अवसरवादिता की राजनीति ने निष्ठाओं को कुचलने का काम किया है। अपने हितों के लिए केंद्र की सरकार को पंगु और अस्थायी बनाना इन दलों का प्रमुख शौक रहा है।
राहत
केंद्र की सरकार के स्थायित्व से देश के समग्र विकास के साथ जन कल्याण, विदेश नीति जैसे तमाम राष्ट्रीय मसलों का सीधा और गहरा नाता है। यह चुनाव एक मौका है। मतदाता को राष्ट्र हित में ऐसे लोगों का चुनाव करना चाहिए जो राष्ट्रीय मुद्दों पर समर्ग्रता में विचार रखते हों, स्पष्ट दृष्टिकोण रखते हों। आखिर जब हम पंचायत जैसे नितांत स्थानीय चुनाव में स्थानीय मुद्दों पर वोट करते हैं, राष्ट्रीय मुद्दे मतदाता की प्राथमिकता में नहीं होते तो राष्ट्रीय-केंद्रीय संसद के चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट क्यों नहीं और स्थानीय मुद्दों को तरजीह क्यों मिले? ऐसे में 2014 के केंद्रीय-राष्ट्रीय संसद के चुनाव के दौरान राष्ट्रीय मसलों पर वोट किए जाने के प्रति मतदाताओं के बीच जागरूकता फैलाना आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
जनमत
क्या लोकसभा के चुनाव में मतदान का आधार स्थानीय के बजाय राष्ट्रीय मुद्दे होने चाहिए?
हां 93 फीसद
नहीं 07 फीसद
क्या संसदीय चुनाव में राष्ट्रीय दृष्टिकोण रखने वाले प्रत्याशी को तवज्जो देनी चाहिए?
हां 96 फीसद
नहीं 04 फीसद
आपकी आवाज
संसदीय चुनाव में प्रत्याशी का चयन निश्चित ही राष्ट्रीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर करना चाहिए। संसद में जाने वाले प्रत्याशी की सोच एवं राय राष्ट्रीय मुद्दों पर स्पष्ट होनी चाहिए। -अनुराग शर्मा
राष्ट्रहित में ही सभी का हित समाहित है, इसलिए मतदान देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि आपकी पार्टी या नेता देश हित के लिए समर्पण भावना रखते हों। -मनीषा श्रीवास्तव
राष्ट्रीय राजनीति दल जितने मजबूत होकर केंद्र में पहुंचेंगे उतना ही सशक्त सरकार का गठन होगा और जनता के हितों के अनुरूप काम होगा। गठबंधन से जनमी सरकार सभी दलों के स्वार्थ को पूरा करते हुए दम तोड़ देती है। -मुन्ना कुमार
देश के चौतरफा विकास के लिए लोकसभा चुनाव में ऐसे प्रत्याशियों को तवज्जो नहीं दे, जो धर्म, जाति, भाषा या फिर क्षेत्र विशेष को महत्व देते हों। -राजू 09023693142 जीमेल.कॉम
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