सरकार की सुस्ती व लापरवाही पड़ रही है भारी, आठ लाख बच्चे स्कूल से दूर
बच्चों को स्कूल तक लाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है, आरटीई में स्पष्ट कानून है, इसके बाद भी दिल्ली सरकार बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए कार्ययोजना नहीं बना पाई है।
नई दिल्ली [जेएनएन]। देश की राजधानी में ही बच्चों के हक पर सरकार की सुस्ती व लापरवाही भारी पड़ रही है। एक तरफ तो दिल्ली सरकार शिक्षा का बजट बढ़ाने को अपनी उपलब्धि बता रही है, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली में लाखों बच्चों को पढ़ने का अवसर तक नहीं मिल रहा है। आलम यह है कि राजधानी में 12 साल तक के आठ लाख बच्चे किसी भी स्कूल में पंजीकृत नहीं हैं और दिल्ली सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं हैं।
छह लाख बच्चे स्कूल में पंजीकृत नहीं
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) 2009 के तहत 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को शिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन दिल्ली सरकार बच्चों को शिक्षित करने की कोई योजना बनाने में असफल नजर आ रही है। इस संंबंध में अखिल भारतीय अभिभावक संघ के अध्यक्ष अधिवक्ता अशोक अग्रवाल कहते हैं कि दो साल पहले तक करीब छह लाख बच्चे राजधानी के किसी भी स्कूल में पंजीकृत नहीं थे, लेकिन वर्तमान में यह आंकड़ा आठ लाख के पार पहुंच गया है।
जिम्मेदारी राज्य सरकार की
इन बच्चों को स्कूल तक लाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है, इस संबंध में आरटीई में स्पष्ट कानून है, लेकिन इसके बाद भी दिल्ली सरकार इन बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए कोई कार्ययोजना नहीं बना पाई है। उन्होंने कहा कि असल में इन बच्चों को स्कूल तक लाने की नैतिक जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की होती है। सरकार इस पर कोई कानून बनाए और निगम के साथ मिलकर इसे लागू करें।
दिल्ली सरकार आज तक कोई काम नहीं कर पाई
अशोक अग्रवाल ने बताया कि इस संबंध में सोशल ज्यूरिस संगठन ने कुछ वर्ष दिल्ली के 20 स्थानों पर कैंप लगाए थे। इसमें 1000 से अधिक ऐसे बच्चों ने आवेदन किए, जिन्होंने अभी तक किसी भी स्कूल में पंजीकरण नहीं कराया था। इसी तर्ज पर दो महीने पहले हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को कैंप लगाने का आदेश दिया था, लेकिन उस आदेश पर दिल्ली सरकार आज तक कोई काम नहीं कर पाई हैं।
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