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    ...इस कानून पर अमल होता तो नदियों की स्थिति खराब न होती

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Sat, 29 Jul 2017 05:57 PM (IST)

    अगर बोर्डों का गठन हो जाता तो आज न तो जल संकट विकराल होता और न ही नदियों की स्थिति खराब होती।

    ...इस कानून पर अमल होता तो नदियों की स्थिति खराब न होती

    नई दिल्ली [हरिकिशन शर्मा]। सरकार ने अगर रिवर बोर्डस एक्ट पर अमल किया होता, तो देश में आज न तो जल संकट बढ़ता और न ही नदियों की दुर्दशा होती। छह दशक पहले संसद से पारित होने के बावजूद यह कानून सरकारी फाइलों में कैद होकर रह गया है। अगर यह प्रभावी ढंग से लागू होता, तो आज गंगा और यमुना सहित देश की सभी बड़ी नदियों में प्रदूषण की समस्या इतनी विकराल नहीं होती।

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    रिवर बोर्डस एक्ट संसद से 1956 में पारित हुआ

    रिवर बोर्डस एक्ट संसद से 1956 में पारित हुआ था। इसकी धारा चार के तहत गंगा और यमुना जैसी अंतरराज्यीय नदियों के लिए नदी बोर्ड बनाने का प्रावधान था। केंद्र सरकार नदी के प्रवाह क्षेत्र वाले राज्यों के साथ परामर्श कर आम राय से यह बोर्ड बना सकती थी। इस कानून के तहत बनने वाले बोर्ड इतने शक्तिशाली होते कि उन्हें जलापूर्ति से लेकर नदियों के प्रदूषण के संबंध में नियम और दिशानिर्देश बनाने का अधिकार होता। साथ ही बोर्डो को नदियों के किनारे पौधे लगाने, नदी बेसिन के विकास की योजनाएं बनाने और उनके क्रियान्वयन की निगरानी की शक्ति भी हासिल होती। हालांकि, किसी सरकार ने इस कानून को लागू कर नदियों के बोर्ड गठित करने की जहमत नहीं उठाई।

    नदियों की स्थिति खराब न होती

    केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के पूर्व अध्यक्ष एबी पांड्या कहते हैं कि इस कानून के तहत सरकार ने एक भी नदी के लिए रिवर बोर्ड का गठन नहीं किया है। अगर बोर्डों का गठन हो जाता तो आज न तो जल संकट विकराल होता और न ही नदियों की स्थिति खराब होती।

    ‘डेड लेटर’ अर्थात अप्रचलित कानून

    संविधान की वर्किंग की समीक्षा के लिए गठित एमएन वेंकटचलैया आयोग ने अपनी रिपोर्ट में तो इस कानून को ‘डेड लेटर’ अर्थात अप्रचलित कानून करार दिया था। उन्होंने इसके प्रावधानों को समाहित करते हुए जल पर एक समग्र कानून बनाने की सिफारिश की थी। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में यही सिफारिश की। आयोग ने इस संबंध में दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस और चीन का उदाहरण भी दिया, जहां पानी के बेहतर प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय कानून या नदी बेसिन के लिए तंत्र बनाए गए हैं। हालांकि, सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की।

    जवाबदेही सुनिश्चित करना मुश्किल 

    केंद्रीय जल संसाधन मंत्रलय के पूर्व सचिव शशि शेखर कहते हैं कि के रिवर बोर्ड एक्ट के प्रावधान सुझाव के रूप में थे न कि अनिवार्य। बेहतर होगा अगर सरकार इसके अच्छे प्रावधानों को निकालकर अंतरराज्यीय नदियों के संबंध में एक नया कानून बनाए। तभी जल संकट का स्थायी समाधान निकल सकेगा। अन्यथा जल प्रदूषण और पानी को लेकर राज्यों के आपस के झगड़े बढ़ते जाएंगे और इस संबंध में जवाबदेही सुनिश्चित करना मुश्किल होगा।

    1995 में एक प्रस्ताव के जरिये अपर यमुना बोर्ड बना

    वैसे यह बात अलग है कि सरकार ने कुछ नदियों के लिए रिवर बोर्ड बनाए, लेकिन वे इस कानून के तहत नहीं बने थे। मसलन, केंद्र ने 1995 में एक प्रस्ताव के जरिये अपर यमुना बोर्ड बनाया। लेकिन, इसका काम महज नदी के जल में राज्यों की हिस्सेदारी तक ही सीमित था। इस बोर्ड ने यमुना नदी में प्रदूषण की समस्या को दूर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

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    ये 10 काम करता रिवर बोर्ड

    अंतरराज्यीय नदी जल का उपयुक्त उपयोग, नियंत्रण और संरक्षण

    सिंचाई, जलापूर्ति या ड्रेनेज की योजनाओं का परिचालन और प्रोत्साहन

    बाढ़ नियंत्रण योजनाओं का परिचालन और प्रोत्साहन

    नौवहन पर नियंत्रण एवं प्रोत्साहन

    मृदा क्षरण नियंत्रण और पौधरोपण प्रोत्साहन

    अंतरराज्यीय नदियों में जल प्रदूषण पर नियंत्रण

    नदी घाटी व बेसिन के विकास की योजनाएं बनाना

    नदी बेसिन की योजनाओं के क्रियान्वयन की लागत राज्यों को बताना

    योजनाओं पर प्रगति की निगरानी करना

    राज्य सरकारों को परामर्श देना

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