..तो पाकिस्तान को इस तरह परास्त कर सकता है भारत
पाकिस्तान से बढ़ती तल्खी के बीच ईरान से संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने का भारत के लिए यह उचित समय है
ईरान-पाकिस्तान के रिश्तों में तल्खी बढ़ती जा रही है। पिछले साल जिस दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी शिविरों को बर्बाद किया था, उसी दिन ईरान ने भी पाकिस्तान पर हमला किया था। दरअसल 28-29 सितंबर, 2016 की रात पाकिस्तान को लंबे समय तक याद रहेगी। उस रात भारतीय सेना के जवानों ने सीमा पार 38 आतंकवादियों को मार गिराए थे। उसी समय पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर ईरान ने मोर्टार दागे थे। पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 किलोमीटर की सीमा है। याद रखिए कि यह वही ईरान है जिसने 1965 में भारत के साथ जंग में पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया था।
मगर अब हालात बहुत बदल चुके हैं। पाकिस्तान से उसके कई पड़ोसी नाराज हैं क्योंकि सऊदी अरब की मदद से वह हर जगह आतंकवाद फैलाता है। और सऊदी अरब के ताजा हालातों से जहां पाकिस्तान की नींद उड़ी होगी, वहीं ईरान चाहेगा कि सऊदी अरब गृह युद्ध में नष्ट हो जाए ताकि खाड़ी क्षेत्र में उसका वर्चस्व हो जाए। बहरहाल, ईरान इसलिए भी पाकिस्तान से नाराज है क्योंकि दोनों देशों की सीमा पर तैनात ईरान के दस सुरक्षाकर्मियों को पिछले साल आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया था। इन हालात को देखत हुए कहा जा सकता है कि यह सब भारत के लिए ईरान से अपने संबंधों को मजबूती देने का अनुपम अवसर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान की दो दिवसीय यात्र पर जा चुके हैं। ईरान के राष्ट्रपति डॉ. हसन रूहानी के निमंत्रण पर हुई उस यात्र में मोदी ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अल खुमैनी से भी मिले थे। खुमैनी आमतौर पर किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष से मिलते नहीं है, लेकिन वे मोदी से मिले थे। साफ है कि ईरान ने मोदी की यात्र को खासी तरजीह दी थी। भारत के लिए ईरान अहम देश है। ईरान न केवल तेल का बड़ा व्यापारिक केंद्र है, बल्कि मध्य-एशिया, रूस तथा पूर्वी यूरोप जाने का एक अहम मार्ग भी है। भारत ऊर्जा से लबरेज ईरान के साथ अपने संबंधों में नई इबारत लिखने का मन बना चुका है। अभी भारत कच्चे तेल को सऊदी अरब और नाइजीरिया से आयात करता है। मोदी की यात्र से ईरान को ये संदेश मिल गया था कि भारत उसके साथ आर्थिक और सामरिक संबंधों को मजबूती देना चाहता है। भारत और अमेरिका के बीच 2008 में हुए असैन्य परमाणु करार के बाद ईरान के साथ बहुत सारी परियोजनाओं को या तो रद कर दिया गया था या टाल दिया गया था, लेकिन यह भी सच है कि भारत और ईरान के बीच मतभेद और गलतफमियां रही हैं। ईरान इस वजह से भारत से नाराज था क्योंकि उसने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आइएईए) में ईरान के परमाणु रिकॉर्ड के खिलाफ नाकारात्मक वोट किया था। भारत ने अमेरिका के दबाव में ईरान के खिलाफ वोट किया था। मगर अब हालात बदले हैं।
ईरान और पाकिस्तान के बीच संबंधों में बड़ा बदलाव तब आया जब दिसंबर, 2015 में सऊदी अरब ने आतंकवाद से लड़ने के लिए 34 देशों का एक ‘इस्लामी सैन्य गठबंधन’ का फैसला किया, लेकिन इस गठबंधन में शिया बहुल ईरान को शामिल नहीं किया गया। इसमें सऊदी अरब ने पाकिस्तान को प्रमुखता के साथ जोड़ा। इस कारण ईरान पाकिस्तान से काफी नाराज हुआ। इस गठबंधन का प्रमुख बनाया गया पाकिस्तान के पूर्व सैन्य प्रमुख जनरल राहिल शरीफ को। ये गठबंधन कभी कायदे से अपना काम नहीं कर सका। इस गठबंधन को ईरान विरोधी गुट के रूप में भी देखा गया, जो सऊदी अरब का मुख्य क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी है। बहरहाल अभी नहीं लगता कि ईरान-पाकिस्तान के संबंधों में सुधार होने वाला है। ये मौका है जब भारत ईरान के करीब आ जाए और इस दिशा में वह बढ़ भी रहा है।
विवेक शुक्ला
(लेखक नई दिल्ली में यूएई दूतावास के पूर्व सूचना अधिकारी हैं)
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