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अफगानिस्तान में हुए आतंकी हमलों में खत्म हो गया भारत का प्यारा ‘काबुलीवाला’

अफगानिस्तान में तालिबान के आतंकियों ने आर्मी कैंप पर बड़ा हमला किया है। इस हमले में 20 अफगान जवान मारे गए हैं और 12 आतंकियों को भी ढेर कर दिया गया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 24 Feb 2018 03:35 PM (IST)Updated: Mon, 26 Feb 2018 10:23 AM (IST)
अफगानिस्तान में हुए आतंकी हमलों में खत्म हो गया भारत का प्यारा ‘काबुलीवाला’
अफगानिस्तान में हुए आतंकी हमलों में खत्म हो गया भारत का प्यारा ‘काबुलीवाला’

नई दिल्‍ली [कमल कान्त वर्मा]। एक था काबुलीवाला लेकिन नहीं पता अब वो जिंदा भी है या नहीं। काबुलीवाला, वर्षों पहले जिस किरदार को पन्‍नों पर गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर ने सजीव किया था उसके आज जिंदा होने के सुबूत काफी कम हैं। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि जिस काबुल और काबुलीवाले की छवि को टैगोर ने कागज पर उकेरा था, वह अब बिल्‍कुल बदल चुका है। अब वहां पर खुशहाली बामुश्‍किल ही नजर आती है। वह काबुल और वह अफगानिस्‍तान आज कितना बदल चुका है। जहां की हवाओं में कभी संगीत और प्‍यार बसता था वहां की हवाओं में अब बारूद की गंध और फिजाओं में धमाकों की आवाज बसी है।

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आतंकी हमले की गूंज

कोई नहीं जानता है कि उसके सामने कब मौत खड़ी हो जाए। शुक्रवार रात को भी वहां पर ऐसे ही एक आतंकी हमले की गूंज फिर सुनाई दी। यह हमला तालिबान ने शाह-ए-बला कंस्‍क स्थित आर्मी के बेस कैंप पर किया था। इसमें अफगान आर्मी के बीस जवान मारे गए हैं। फराह की प्रां‍तीय काउंसिल के अधिकारी ने बताया है कि हमलावरों के पास भारी मात्रा में हथियार और गोलाबारूद था। इस दौरान मोर्चा संभालने वाले जवानों ने करीब 12 तालिबानियों को भी ढ़ेर कर दिया। शनिवार दोपहर तक भी यह मुठभेड़ जारी थी। यह महज सिर्फ कोई कहानी या किस्‍सा नहीं है बल्कि मौजूदा अफगानिस्‍तान की ऐसी ही कुछ स्थिति पिछले चार दशकों में हो गई है।

भारत के बेहद करीब है अफगानिस्‍तान

काबुल को भारत और यहां के लोग हमेशा से ही अपने बेहद करीब मानते आए हैं। काबुल एक ऐसी जगह है जहां पर आज भी भारत और यहां के लोगों को इज्‍जत और सम्‍मान से देखा जाता है। यहां पर आपको लगभग हर जगह भारत की छाप भी दिखाई दे जाती है, फिर चाहे वह अफगानिस्‍तान की नई पार्लियामेंट हो या सलमा डैम या फिर कोई दूसरी जगह। अफगानिस्‍तान की नई पार्लियामेंट को भारत ने ही बनवाया है। यह दोनों देशों की वर्षों की दोस्‍ती की एक जीती जागती मिसाल है। काबुल में ही एक जगह अफगानिस्‍तान का सबसे ऊंचा और बड़ा झंडा भी भारत से दोस्‍ती की कहानी बयां करता है। इस झंडे को उद्योगपति नवीन जिंदल के फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने अफगानिस्‍तान को बतौर तौहफा दिया था।

अफगानिस्‍तान में बॉलीवुड गॉसिप

इतना ही नहीं अफगानिस्तान टाइम्‍स बॉलीवुड के गॉसिप से भरा हुआ दिखाई देता है। काबुल का इंदिरागांधी अस्‍पताल यहां का सबसे पुराना अस्‍पताल है जहां के डॉक्‍टर कुछ दशकों से ज्‍यादा बिजी दिखाई देते हैं। इसको 1990 में बनवाया गया था, लेकिन यहां होने वाले धमाकों से यह भी अछूता नहीं रहा। वर्ष 2004 में इसको दोबारा बनवाया गया। भारत को लेकर यहां के लोगों का प्रेम साफतौर पर दिखाई भी देता है। कभी यदि आपका जाना यहां हो तो एक बार बाग ए बाबर भी जरूर जाइएगा, यहां से खूबसुरत काबुल आज भी बांहें फैलाए आपको बुलाता दिखाई देगा। बाग ए बाबर दरअसल मुगल बादशाह बाबर का म्‍यूजियम है। यहां पर आपको पाकिस्‍तान और भारत के बीच का फासला भी साफ दिखाई दे जाएगा। हिंदुस्‍तान का बताने के साथ ही यहां पर आपको हर कोई गले लगाने को तैयार रहता है वहीं पाकिस्‍तान को लेकर यहां लोगों के चेहरों पर मायूसी और गुस्‍सा दिखाई देता है।

अफगानिस्‍तान के खराब हालात के लिए पाक जिम्‍मेदार

ऐसा इसलिए है क्‍योंकि यहां के बिगड़े हालात के लिए अफगानिस्‍तान में आम आदमी से से लेकर यहां के राष्‍ट्रपति तक पाकिस्‍तान को दोषी मानते हैं। उनकी निगाह में पाकिस्‍तान ने अफगानिस्‍तान को बर्बाद कर दिया है। यह इसलिए भी सच लगता है क्‍योंकि इसकी भविष्‍यवाणी कहीं न कहीं फ्रंटियार गांधी या फिर खान अब्‍दुल गफ्फार खान ने काफी पहले ही कर दी थी। खान अब्दुल गफ्फार खान हिंदुस्‍तान के बंटवारे के बिल्कुल खिलाफ थे। उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलग पाकिस्तान की मांग का विरोध किया था और जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की मांग को स्वीकार कर लिया तो इस फ्रंटियर गांधी ने दुख में कहा था - 'आपने तो हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया है।'

अलग पश्‍तूनिस्‍तान की मांग

जून 1947 में खान साहब और उनका खुदाई खिदमतगार एक बन्नू रेजोल्यूशन लेकर आया, जिसमें मांग की गई कि पाकिस्तान के साथ मिलाए जाने की बजाय पश्तूनों के लिए अलग देश पश्तूनिस्तान बनाया जाए। हालांकि अंग्रेजों ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया। अपने पूरे जीवन काल में वह कई बार गिरफ्तार किए गए और जेल में प्रताड़ना सहनी पड़ी। 20 जनवरी 1988 में जब उनका निधन हुआ उस समय भी वह पेशावर में हाउस अरेस्ट थे। उनकी इच्छा के अनुसार मृत्यु के बाद उन्हें अफगानिस्तान के जलालाबाद में दफनाया गया।

खत्‍म हो गया काबुलीवाला

खैर हम बात कर रहे थे काबुल और काबुलीवाले की। आज के काबुल में काबुलीवाले की छाप कुछ कम ही है। आज सड़कों पर या अफगानिस्‍तान के दूर-दराज इलाकों में बंदूक टांगे लोग ज्‍यादा दिखाई देते हैं। जिस काबुल को कभी भारत में काजू, बादाम और चिलगोजे के लिए जाना जाता था उसी काबुल को अब हथियारों और धमाकों वाली जगहों के रूप में जाना जा रहा है। यह वास्‍तव में बहुत बुरा है। आपको जानकर हैरत होगी कि इसी काबुल में हिंदी फिल्मों के गाने वाले इन्‍हें गुनगुनाने वाले आज भी सैकड़ों मिल जाते हैं। काबुल में करीब चालीस देशों के लोग रहते हैं। इन सभी के बीच भारत का नागरिक होने का मतलब यहां पर आपके लिए प्‍यार हर जगह है। शायद यही है आज का ‘काबुलीवाला’।

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