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दुनिया को मिस वर्ल्‍ड और मिस यूनिवर्स देने वाले वेनेजुएला का आखिर क्‍यों हुआ बुरा हाल

वेनेजुएला का जिक्र आजकल सभी की जुबान पर है। इसकी वजह है वहां पर चल रहा आर्थिक संकट। इस संकट की वजह से कभी बेहतर जीवन बिताने वाले लोग भी सड़क पर आ गए हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 19 Feb 2018 02:29 PM (IST)Updated: Wed, 21 Feb 2018 10:01 AM (IST)
दुनिया को मिस वर्ल्‍ड और मिस यूनिवर्स देने वाले वेनेजुएला का आखिर क्‍यों हुआ बुरा हाल
दुनिया को मिस वर्ल्‍ड और मिस यूनिवर्स देने वाले वेनेजुएला का आखिर क्‍यों हुआ बुरा हाल

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। वेनेजुएला का जिक्र आजकल सभी की जुबान पर है। इसकी वजह है वहां पर चल रहा आर्थिक संकट। इस संकट की वजह से कभी बेहतर जीवन बिताने वाले लोग भी सड़क पर आ गए हैं। वेनेजुएला के लिए सबसे खराब दौर है। लेकिन वेनेजुएला ने तरक्‍की का वह दौर भी देखा है जिसको लेकर कभी दुनिया के कई देश चर्चा करते थे। वेनेजुएला की सुंदरियों ने भी दुनिया के कई मंचों पर अपनी पहचान बनाई है। वेनेजुएला की सुंदरियों ने मिस यूनिवर्स का करीब तीन बार खिताब जीता है वहीं मिस वर्ल्‍ड एक बार जीता है। लेकिन इन सुंदरियों के इस देश की हालत अब खराब हो रही है।

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वेनेजुएला से मिस वर्ल्‍ड और यूनिवर्स

मिस वर्ल्‍ड और मिस यूनिवर्स की बात चली है तो पहले हम आपको इनकी ही जानकारी दे देते हैं। गैबरिला इसलर ने वर्ष 2013 में मिस यूनिवर्स का खिताब आखिरी बार अपने नाम किया था। वह इससे पहले मिस वेनेजुएला भी रह चुकी हैं। उनसे पहले 2008 और 2009 में दोनों ही बार वेनेजुएला की सुंदरियों ने यह खिताब अपने नाम किया था। इनका नाम था स्‍टेफानिया फर्ननांडिज और डायना में‍डोजा। ये दोनों भी इस खिताब को पाने से पहले मिस वेनेजुएला रही थीं। इन सभी के अलावा 2011 में वेनेजुएला से इवाना सरकोस ने मिस वर्ल्‍ड का खिताब जीता था। इन सभी ने मॉडलिंग से अपना करियर शुरू किया था। वहीं अब इनमें से कुछ देश के बाहर बस चुकी हैं। लेकिन आपको यह जानकर अफसोस होगा कि सोशल मीडिया से जुड़ी इन सभी सुंदरियों के फेसबुक वॉल और ट्विटर हैंडल पर वेनेजुएला की हालत को लेकर कोई बयान नहीं है।

काम के बदले अंडे

आर्थिक संकट से जूझ रहे वेनेजुएला में लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं। ऐसे में वेनेजुएला की सरकार ने लोगों को काम के लिए प्रभावित करने के मकसद से बड़ी दिलचस्‍प स्‍कीम भी निकाली है। इसमें कहा गया है कि उन्‍हें काम के ऐवज में अंडे और कुछ पैसे दिए जाएंगे। अंडे इसलिए कि वह अपना पेट भर सकें और पैसे इसलिए कि वह अपनी जरूरत का सामान खरीद सकें। लेकिन मौजूदा दौर में जहां लाखों रुपयों में महज एक किलो मीट आ रहा है और दूध की बोतल 80 हजार की बिक रही है तो यह पैसे कितने कारगर साबित होगा, कहना बड़ा मुश्किल है। यहां के आर्थिक संकट को लेकर वेनेजुएला के राष्‍ट्रपति मादुरो अमेरिका पर आरोप लगा रहे हैं।

वेनेजुएला की राजनीति

वेनेजुएला के इस उतार-चढ़ाव को यदि समझना है तो पहले वहां की राजनीति को समझना बेहद जरूरी होगा। आपको बता दें कि निकोलस मादुरो से पहले यहां की सत्‍ता ह्यूगो चावेज के हाथों में थी। 1998 से लेकर 2013 तक देश की हालत अच्‍छी थी। लेकिन 2013 में चावेज की कैंसर से मौत हो गई और इससे पहले उन्‍होंने देश की सत्‍ता अपने खासमखास मादुरो को सौंप दी थी। यहां आपके लिए यह भी जानना दिलचस्‍प होगा कि सत्‍ता पर काबिज होने से पहले मादुरा बस ड्राइवर थे और उनकी यूनियन के नेता भी थे। बाद में सितारा बुलंद हुआ तो वह देश के विदेश मंत्री भी बने। वह खुलेआम खुद को चावेज का 'बेटा' और 'शिष्य' कहते रहे हैं।

बस ड्राइवर से बॉडी गार्ड तक रह चुके मादुरो

2013 में उन्‍होंने मादुरों को कुल 50.66 फीसदी जबकि विपक्षी उम्मीदवार हेनरिक कैपरिलेस को 49.07 फीसदी वोट मिले थे। जीत मिलने के बाद मादुरो के तेवर विपक्षी दलों के लिए काफी कड़े हो गए थे। वह हेनरिक को ‘छोटा बुर्जुआ’ तक कहते रहे हैं। आर्थिक संकट को लेकर अमेरिका पर निशाना साधने वाले मादुरा यहां तक कहते रहे हैं कि अमे‍रिका उनका कत्‍ल करवा देना चाहता है। चावेज के करीबी रहे मादुरो उनका बॉडी गार्ड तक रह चुके हैं। विदेश मंत्री बनने से पहले 2005 से 2006 के बीच मादुरो नेशनल एसेंबली के अध्यक्ष थे। देश के राजनयिकों के प्रमुख के रूप में मादुरो ने वेनेजुएला का रिश्ता पश्चिम विरोधी ईरान, सीरिया और क्यूबा से मजबूत किया और वामपंथी विचारों वाले लैटिन अमेरिकी देशों का एक गुट खड़ा किया।

टूट गई तेल की अर्थव्‍यवस्‍था

यहां पर छाए आर्थिक संकट की बात करें तो आपको बता दें कि यहां की अर्थव्‍यवस्‍था तेल पर टिकी है। लैटिन अमेरिकी देशों में तेल की कीमत गिरने का सबसे ज्यादा नुकसान वेनेजुएला को उठाना पड़ा। 2013 और 2014 में देश ने जहां लगभग प्रति बैरल 100 डॉलर या उससे पहले चावेज के समय 140 डॉलर प्रति बैरल तेल बेचा था, वहीं मादुरो के समय ये कीमतें 25 डॉलर प्रति बैरल रह गई थीं। वेनेजुएला ने 2016 में यह महज 27 बिलियन डॉलर का तेल दूसरे देशों को बेचा था। यह कभी 80 बिलियन डॉलर हुआ करता था।

मादुरो की गलत नीतियां

मादुरो ने इससे उपजे संकट से निकलने के जो उपाय किये, वे और भी घातक सिद्ध हुए। मादुरो ने खुद को मिले विशेष आर्थिक अधिकार का उपयोग करते हुए वेनेजुएला की मुद्रा बोलिवार का अवमूल्यन कर दिया और तेल की कीमतें बढ़ा दीं। तेल की कीमतों में 6000 प्रतिशत की वृद्धि करने के सरकार के फैसले के खिलाफ लोगों की नाराजगी बढ़ गई। लेकिन मादुरो का यह पासा उनपर ही उलटा पड़ गया। तेल की कीमतों के गिरने से आय में हुई कमी को सरकार ने करेंसी नोट छाप कर भरपाई करने की कोशिश की। ऐसा करनरे से जनता में इफेक्टिव डिमांड तथा उनकी पर्चेजिंग पावर काफी बढ़ गई लेकिन आपूर्ति न होने की वजह से दुकानों पर और शॉपिंग मॉल में खरीददारों की लंबी कतारें लग गईं। इसके साथ ही वस्‍तुओं की कीमतों में इजाफा होने लगा जो बाद में खतरनाक स्‍तर तक पहुंच गया। देखते-देखते मुद्रास्फीति की दर करीब 2600 फीसद तक पहुंच गयी।

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