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    हिमालय में बना हुआ है हिम अकाल, वनस्पतियां झेल रही हैं सूखी हवा और कड़ाके की ठंड की मार

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 08:24 PM (IST)

    हिमालय में 'हिम अकाल' बना हुआ है, दिसंबर बीतने को है पर बर्फबारी नहीं हुई। बर्फ की कमी से नाजुक जैव-नेटवर्क खतरे में है, मिट्टी को नुकसान हो रहा है और ...और पढ़ें

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    केदारनाथ के पीछे हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं को भी बर्फ का इंतजार।

    विनय बहुगुणा, जागरण श्रीनगर गढ़वाल: दिसंबर विदाई की ओर है, लेकिन बर्फबारी का इंतजार खत्म नहीं हो रहा। हिमालय की शृंखलाओं से लेकर बुग्याल तक बर्फ के बिना वीरान पड़े हैं। पर्यावरणविद् और मौसम विज्ञानी इसे हिम अकाल बता रहे हैं, जिससे नाजुक जैव नेटवर्क को खतरा पैदा हो गया है।

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    जमीन का सुरक्षा कवच भी गायब हो रहा है और जल्द वर्षा-बर्फबारी नहीं हुई तो निकट भविष्य में पारिस्थितिक आपदा से इन्कार नहीं किया जा सकता। तुंगनाथ बुग्याल और वहां नर्सरी क्षेत्र का भ्रमण कर लौटी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के उच्च शिखरीय पादप कार्यकी शोध केंद्र (हैप्रेक) की टीम का निष्कर्ष तो यही बता रहा है।

    उच्च पर्वतीय (अल्पाइन) क्षेत्रों में मध्य दिसंबर तक सर्दी का मौसम चरम पर रहता है। आंकड़े बताते हैं कि इस समय तक मध्य व उच्च हिमालय के पहाड़ व बुग्याल बर्फ की कई फीट मोटी चादर ओढ़ लेते थे, लेकिन मौजूदा समय में हिमालय की शृंखलाओं के साथ ही बदरीनाथ, केदारनाथ, औली, चोपता, तुंगनाथ, चंद्रशिला, गंगोत्री, यमुनोत्री व हर्षिल के ऊंचाई वाले पहाड़ भी बर्फविहीन होकर वीरान पड़े हैं।

    बुग्याली घास के सूखकर टूटने से मिट्टी की परत को भी क्षति पहुंच रही है। हिमालय में उपजे हिम अकाल से नाजुक जैव-नेटवर्क को भी खतरा बढ़ रहा है। ऊंचाई वाले बर्फविहीन क्षेत्रों में चट्टानें और विरल वनस्पतियां सूखी हवा और कड़ाके की ठंड की मार झेल रही हैं। यहां बर्फ के बजाय कोहरे की हल्की परत जम रही है, जिससे पारिस्थितिक संतुलन प्रभावित हो रहा है। यह जो प्रकृति और पर्यावरण के लिए शुभ नहीं है।

    भूगर्भीय गर्मी को बाहर जाने से रोकती है बर्फ

    बर्फ की मोटी परत एक उत्कृष्ट ताप रोधक का कार्य करती है और भूगर्भीय गर्मी को बाहर जाने से रोकती है। जब बर्फीले तूफान के दौरान बाहरी हवा का तापमान -20° डिग्री तक गिर जाता है, तब भी 50 सेमी बर्फ के नीचे मिट्टी की सतह का तापमान जमाव बिंदु के आसपास बना रहता है।

    वायुमंडल के संपर्क में आ रही मिट्टी की परत

    बर्फ की मोटी परत के अभाव में मिट्टी की परत पृथ्वी की गर्मी से टूटकर सीधे वायुमंडल के संपर्क में आ रही है। इसका प्रभाव अल्पाइन क्षेत्र की वनस्पतियों पर भी पड़ रहा है। बर्फ के अभाव में मिट्टी का तापमान तेजी से घट रहा है और वह गहराई तक जमकर ठोस हो रही है। इससे बारहमासी पौधों व अल्पाइन झाड़ियों की सुप्त जड़ों को क्षति पहुंच रही है। शुष्क मौसम में तेज हवा पेड़-पौधों के खुले तनों और सदाबहार पत्तियों की नमी भी सुखा रही है।

    जैव नेटवर्क के लिए खतरा

    बर्फ का अभाव छोटे जीवों पर भी पड़ता है। कई जीव सर्दियों में सबनिवियन जोन पर निर्भर रहते हैं। यह जोन छोटी सुरंगों का एक नेटवर्क है, जो जमीन और बर्फ की परत के नीचे की अपेक्षा गर्म जगह में बनता है। इस बार बर्फ के अभाव में यह आवास नहीं बन पा रहा, जिस कारण छोटे जीव जमीन की सतह पर रहने को मजबूर हैं।

    बर्फ के अभाव में अल्पाइन क्षेत्र सूखकर वीरान नजर आ रहे हैं। बर्फबारी में यह देरी एक गंभीर विक्षोभ है। यदि अल्पाइन वनस्पतियों के पुनर्योजी ऊतक वर्तमान सूखी हवाओं और गहरी मिट्टी के जमने से नष्ट हो जाते हैं तो निकट भविष्य में वनस्पति विकास में व्यापक विफलता देखने को मिल सकती है। यह संकट संपूर्ण अल्पाइन खाद्य शृंखला को भीर प्रभावित करेगा।
    - डा. सुदीप सेमवाल, वरिष्ठ विज्ञानी, उच्च शिखरीय शोध पादक शोध संस्थान, गढ़वाल केंद्रीय विवि

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