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    ग्राउंड रिपोर्ट : लॉकडाउन की मुश्किलों को मात दे रहीं जगन्नाथ की तीन पीढि़यां Nainital News

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sat, 18 Apr 2020 10:45 AM (IST)

    कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में रहने को मजबूर है। जगन्‍नाथ का परिवार जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है। उनका जिंदादिली प्रेरित करने वाली है।

    ग्राउंड रिपोर्ट : लॉकडाउन की मुश्किलों को मात दे रहीं जगन्नाथ की तीन पीढि़यां Nainital News

    हल्द्वानी, गणेश पांडे : चुनौतियां आती हैं। घबराने के बजाय मजबूती से उनका सामना करना होता है। धैर्य व साहस दिखाने की जरूरत होती है। कोरोना के खतरे व लॉकडाउन की चुनौती से जगन्नाथ की तीन पीढिय़ां मजबूती से सामना कर रही हैं। तमाम मुश्किलों के बीच जिंदगी जीने की जिंदादिली तारीफ योग्य है।

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    हल्द्वानी सब्जी मंडी ही जगन्नाथ की दुनिया है। तीन जनों की तीन पीढिय़ां उनकी धरोहर और फटे जूते-चप्पल को रफू करने के औजार और उन्हें रखने का संदूक उनकी संपत्ति है। आप सही समझे। जगन्नाथ चाचा मोची का काम करते हैं। बेटा बंटी काम संभालने लायक हुआ तो खुद मंडी में अनाज-सब्जी के कट्टे गाड़ी में उतारने-चढ़ाने का काम करने लगे। लॉकडाउन में सब तरफ सन्नाटा पसरा है। सब्जी लदे रिक्शा के चैन की कर्र-कर्र और कुछ कदमों की आहट सन्नाटा तोड़ते हैं। पेड़ के नीचे फड़ लगाकर लेटा बंटी किसी आहट पर बैठ जाता है। इधर-उधर नजर दौड़ाई और किसी को अपनी तरफ न आता देख पिता जगन्नाथ व बेटे कृष्णा के साथ पसर गया।

    मेरी मोटरसाइकिल पास रुकते जानकर बंटी फिर चौकन्ना होकर बैठ गया। भैयाजी! क्या सिलवाओगे। उसकी आवाज में दर्द है। टोह लेने की मंशा से मैंने पूछा कैसा चल रहा काम? कुछ देर की खामोशी तोड़ते हुए वह बोला काम क्या चलना। बस बैठे हैं। बंटी अब तक समझ गया था कि मुझे कुछ सिलाना नहीं है। मुझे थोड़ा हमदर्द बनता जानकर बंटी बोला, आदमी घरों से निकल नहीं रहा। चलना-फिरना बंद है। फिर काम कहां से होगा। तो फिर खाना? अभी इंसानियत जिंदा है। दिन में कुछ लोग आते हैं भोजन के पैकेट बांटने। रात को क्या खाते हैं? बोला, दिनभर में दस-बीस आ जाता है उससे आटा-चावल लेकर कुछ बना लेते हैं। घर किधर है? आढ़त पर। मतलब? भैया! इधर ही दुकान की आढ़ में सो जाते हैं। पिछले चार-पांच साल से यही अपना घर है। पहले कहां रहते थे? राजपुरा में अपना छोटा मकान था। पत्नी पेट से थी। बीमार हो गई, न बेटी बची न पत्नी। इलाज के लिए घर बेचना पड़ा।

    तमाम दु:खों के बावजूद बंटी की जिजीविषा कम नहीं। वह उम्मीदों में जीता है। फुटपाथ पर रखे औजार के बॉक्स पर उसने अपने लाड़ले कृष्णा का नाम उकेरा है। कहता है उसकी मां ने कृष्णा को यह नाम दिया था। बंटी के औजारों के बीच तिरंगा खड़ा है। 26 जनवरी को उसने कृष्णा के लिए इसे खरीदा था। हवा के झोंके से तिरंगा डगमग होता है तो बंटी उसे संभालने लगता है। कहता है परेशानी का समय हवा के झोंके की तरह होता है। कुछ समय धैर्य, साहस दिखाने की जरूरत है। सदा एक मौसम नहीं रहता तो परेशानी के दिन भी टल जाएंगे। बंटी का जज्बा उत्साह भरने वाला है।

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