पहाड़ों पर बढ़ती जा रही जंगलों में आग की घटनाएं, तैनात तीन हजार फायर वॉचर भी नाकाफी; अब इस नई रणनीति पर होगा काम
Uttarakhand Forest Fire जंगलों में आग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए वन व अन्य सरकारी विभाग पर्यावरणप्रेमियों के निशाने पर है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर चीड़ बाहुल्य वन क्षेत्रों में स्थानीय महिला समूहों के माध्यम से पिरुल एकत्र करने का अभियान भी तेज कर दिया गया है। यहां तक कि अब नए पीसीसीएफ धनंजय मोहन के चार्ज संभालने के बाद पिछली बार की तरह...
जागरण संवाददाता, नैनीताल। राज्य के पर्वतीय इलाकों में जंगल की आग की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। नैनीताल में तो वायु सेना स्टेशन तक आग पहुंचने से बचाने के लिए सेना के हेलीकॉप्टर का सहारा लेना पड़ा। जंगल की आग पूरी तरह बुझी नहीं है। इस जंगल की आग को बुझाने के लिए तीन हजार से अधिक फायर वाचर, वन विभाग कर्मचारी, पीआरडी जवान नाकाफी साबित हो रहे हैं।
जंगलों में आग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए वन व अन्य सरकारी विभाग पर्यावरणप्रेमियों के निशाने पर है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर चीड़ बाहुल्य वन क्षेत्रों में स्थानीय महिला समूहों के माध्यम से पिरुल एकत्र करने का अभियान भी तेज कर दिया गया है। यहां तक कि अब नए पीसीसीएफ धनंजय मोहन के चार्ज संभालने के बाद पिछली बार की तरह मुख्यालय के वरिष्ठ अफसरों को जिलों का नोडल अफसर बनाने की तैयारी है।
तीन हजार से अधिक फायर वाचर तैनात
वन विभाग के अनुसार विभिन्न वृत्तों के अंतर्गत वन प्रभागों में फायर वाचरों की संख्या निर्धारित की गई है। कुमाऊं में पंश्चिमी वृत्त के अंतर्गत हल्द्वानी वन प्रभाग को 144, तराई केंद्रीय को 60, तराई पश्चिमी को 80, रामनगर को 60, उत्तरी कुमाऊं में अल्मोड़ा में 188, सिविल सोयम अल्मोड़ा में 87, बागेश्वर में 120, पिथौरागढ़ में 144, चंपावत में 238, दक्षिणी कुमाऊं वृत्त में नैनीताल में 210, भूमि संरक्षण नैनीताल में 50, भूमि संरक्षण रामनगर में 50, भूमि संरक्षण रानीखेत को 50, निदेशक कार्बेट को 69 सहित गढ़वाल के प्रभागों तथा वन्यजीव क्षेत्रों के लिए 3983 संख्या निर्धारित की गई है।
पीसीसीएफ की ओर से जारी कार्यवृत्त के अनुसार जंगल की आग से निपटने के लिए अधिकारियों की जवाबदेही तय की गई है।
फील्ड ड्यूटी से कतरा रहे हैं वन रक्षक
राज्य में हाल ही में तीन सौ से अधिक नवनियुक्त वन रक्षकों को प्रभाग आवंटित किए गए। उसके बाद उन्हें रैंज में तैनाती गई है। इन वन रक्षकों में एक दर्जन करीब पीएचडी धारक, बीटेक के साथ ही एमएससी आदि उच्च डिग्री प्राप्त हैं। जबकि वन क्षेत्राधिकारी शैक्षणिक योग्यता में इनसे कम हैं। तमाम वन प्रभागों के वन क्षेत्राधिकारी व एसडीओ यह शिकायत करने लगे हैं कि फारेस्टर उनके दिशा-निर्देशों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं और सीधे उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट कर रहे हैं।
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