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world earth day : हवा में जहर और पानी की गंदगी में कमी, आराम कर रही जमीं

कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को बड़े संकट में ला दिया है। हजारों जानें चली गई हैं और सिलसिला अभी जारी है। वहीं धरती पर सभी गतिविधियां लॉकडाउन ने थाम रखी हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 22 Apr 2020 01:21 PM (IST)Updated: Wed, 22 Apr 2020 01:21 PM (IST)
world earth day :  हवा में जहर और पानी की गंदगी में कमी, आराम कर रही जमीं
world earth day : हवा में जहर और पानी की गंदगी में कमी, आराम कर रही जमीं

हल्द्वानी, गोबिंद बिष्ट : कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को बड़े संकट में ला दिया है। हजारों जानें चली गई हैं और सिलसिला अभी जारी है। वहीं धरती पर सभी गतिविधियां लॉकडाउन ने थाम रखी हैं। इसी निराशा के बीच जल, जंगल, जमीन और आसमान के लिए एक नई आस भी इसने दी है।

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कुमाऊं में औद्योगिक जिला ऊधमसिंह नगर समेत सभी जिलों में वायु प्रदूषण का लेवल एकदम गिरा है। आसमान साफ हो चुका है तो हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं भी साफ नजर आ रही हैं। विश्वप्रसिद्ध नैनीताल झील समेत नदियां भी मानों सांस ले रही हैं। वहीं, इंसानी दखल कम होने से जंगलों में आग की घटनाएं भी आधी हो गई। इंसानी चहलकदमी पर ब्रेक से शहरों में गंदगी कम हो रही है। घर, दफ्तर से लेकर सड़क तक सफाई पर सभी का फोकस भी है। लॉकडाउन ने हमें बिजली बचाने की सीख भी दी। यहां तक कि गर्मियों में कुमाऊं के जंगलों में आग की घटनाएं भी पिछले साल के मुकाबले आधी से कम हैं। मानवजनित दखल में कमी ने पृथ्वी को इस वक्त सांस लेने का अवसर देते हुए संदेश भी दिया है भविष्य के लिए भी सचेत रहना होगा। 

लॉकडाउन जल, जंगल और जमीन तीनों के लिए फायदेमंद साबित हुआ है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और वन विभाग के आंकड़े यहीं बता रहे हैं। कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी में ही वायु प्रदूषण का स्तर 50 माइक्रोग्राम घनमीटर नीचे आया है। नैनीझील, भीमताल सहित कोसी व गौला नदी में प्राण वायु की मात्र बढ़ी है व हानिकारक तत्व घटे हैं। बागेश्वर की गोमती, सरयू नदी में प्रदूषण कम हुआ है। आरके चतुर्वेदी, क्षेत्रीय प्रबंधक पीसीबी ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से हवा और साफ हुई है। पानी में ऑक्सीजन की मात्र भी बढ़ी है। नदियां भी अपने मूल रूप में नजर आने लगी हैं। यह धरती के लिए अच्छा संकेत है। वहीं डॉ. पराग मधुकर धकाते, वन संरक्षक ने कहा कि पिछले साल की तुलना में जंगल जलने की घटनाएं कम हुई हैं। मौसम चक्र में बदलाव दिख रहा है। इससे बीच-बीच में बारिश हो रही है। हरियाली भी बढ़ गई है।

मानव के साथ धरा की रक्षा का भी संकल्प

आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. आशुतोष पंत ने बताया तीन दशक पुरानी बात है। आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में मानव रक्षा की शुरुआत की। कुमाऊं के विभिन्न स्थानों पर सेवा का मौका मिला तो अहसास हुआ कि धरा को भी अब उपचार की जरूरत है। देखा कि बरसातों का पानी ठहरने के बजाय निचले इलाकों में बह जाता है। इससे पहाड़ को फायदा नहीं मिलता है। समय के साथ कई स्नोत इतिहास बनते तक देखे। यहीं से पर्यावरण रक्षा का संकल्प ले जंगलों में पौधे लगाने के साथ ही चाल-खाल बनाए, जिसके परिणाम मिले।  

17 वर्षों से बुरसौल नदी को बचाने में जुटी भूपाल सिंह 

बागेश्वर जिले की जिस नदी ने सैकड़ों वर्षों तक लोगों की प्यास बुझाई, वह सूखने की कगार पर थी। जिसमें लगातार पानी की कल-कल सुनाई देती थी, उसमें कंकड़-पत्थर दिखने लगे थे। नदी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही थी। ऐसे में यदि भूपाल जैसे भगीरथ न मिलते तो बुरसौल नदी की अविरल धारा थम जाती। तहसील के मुझारचौरा गांव निवासी भूपाल सिंह कठायत ऐसे शख्स हैं, जिनके जुनून की धार पिछले 17 वर्षों से बुरसौल नदी को बचाने में जुटी है। वह बुरसौल नदी, जो हजारों लोगों की प्यास तो बुझाती ही है, कई हेक्टेयर भूमि में फसलों की सिंचाई भी करती थी। नदी का जल स्तर इतना कम हो गया था कि सिंचाई तो दूर प्यास बुझाने के लिए भी नदी में पानी नहीं रहा। भूपाल सिंह ने जीवनदायिनी बुरसौल नदी में  अविरल धारा बहाने का संकल्प लिया। उन्होंने नदी के मुहाने से एक किमी दूरी तक बांज, फल्याट, उतीस, कुरैण आदि प्रजाति के पौधे रोपे। चौड़ी प्रजाति के इन पौधों ने पांच-सात वर्षों में ही नदी के जल स्तर को बढ़ा दिया। आज नदी अपने पुराने स्वरुप में लौट चुकी है। आज भी वह लगातार पौधरोपण करते आ रहे है और लोगों को भी प्रेरित कर रहे है।

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