मलिन बस्ती को रोशन करती सुदीप सर की क्लास
हरिद्वार जिले के चंडीघाट में एक व्यक्ति गरीब बच्चों को पढ़ा रहा है। इसके बदले में बच्चों से कोई फीस नहीं मांगता, बल्कि उन्हें निश्शुल्क किताबें भी उपलब्ध कराता है।
हरिद्वार, [विजय मिश्र]: चंडीघाट में पुरी नगर नाम की मलिन बस्ती और आसपास पसरी गंदगी। इस गंदगी के बीच रोजगार की तलाश में भटकता एक युवक। अचानक सुदीप बनर्जी नाम के इस युवक के मन में न जाने क्या ख्याल आया कि उसने रोजगार तलाशने के बजाय मलिन बस्ती के बच्चों को पढ़ाने की ठान ली। फिर उसने पढ़ाई के लिए बच्चों को तैयार किया और जुट गया उन्हें जीवन की राह दिखाने में।
तीन बच्चों से शुरू हुई सुदीप सर की इस पाठशाला में अब बच्चों की संख्या 50 के पार पहुंच चुकी है। सर्दी, गर्मी या बरसात, कोई भी मौसम हो, सुदीप सर की कक्षाओं में छात्र-छात्राओं की कभी कमी नहीं हुई। इतना ही नहीं, वह नौनिहालों को निश्शुल्क किताबें भी दे रहे हैं।
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हरिद्वार के चंडीघाट में ही गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाला सुदीप बनर्जी शिक्षा पूरा करने के बाद रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटकने लगा। वर्ष 2009 में सुदीप समाजसेवी डॉ. कमलेश कांडपाल के संपर्क में आया, इसने जीवन के प्रति उसका नजरिया ही बदल दिया। सुदीप ने शिक्षा को महत्वपूर्ण मानते हुए पुरी नगर के बच्चों में शिक्षा के प्रति अलख जगानी शुरू कर दी।
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पहले ही प्रयास में तीन बच्चे कक्षा में शामिल हुए। लेकिन, राह इतनी आसान नहीं थी। इस काम में उसकी कमजोर आर्थिक स्थिति आड़े आने लगी, फिर भी उसने हार नहीं मानी। ट्यूशन पढ़ाकर गरीब बच्चों के लिए किताबें खरीदीं और मुहिम जारी रखी।
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वर्ष 2010 में उसने अन्य लोगों की सहायता से मलिन बस्ती में समाज के लिए आदर्श शिक्षण केंद्र की स्थापना की। मुहिम रंग लाई और उनके शिक्षण संस्थान से पूरी मलिन बस्ती के लोग जुडऩे लगे। आहिस्ता-आहिस्ता सुदीप की पाठशाला में छात्रों की संख्या बढऩे लगी और वर्तमान में 50 से ज्यादा छात्र प्रतिदिन उनकी कक्षाओं में पढऩे को पहुंचते हैं।
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सुदीप की मेहनत का ही प्रतिफल है काजल, जिसने उत्तराखंड में इंटरमीडिएट की परीक्षा टॉप की। वर्तमान में सुदीप बस्ती के छात्रों को निश्शुल्क शिक्षा ही नहीं दे रहे, बच्चों को खोजकर उन्हें निश्शुल्क पुस्तकें भी उपलब्ध कराते हैं। इससे न सिर्फ बस्ती में शिक्षा का बेहतर माहौल तैयार हुआ है, बल्कि अभिभावकों में बच्चों को पढ़ाने के प्रति रुझान भी बढ़ा है।
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बकौल सुदीप, मैं घर-घर जाकर अभिभावकों को बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करता हूं। बदले में बच्चों से कोई फीस नहीं मांगता, बल्कि उन्हें निश्शुल्क किताबें भी उपलब्ध कराता हूं। अब मैं कुछ टॉपरों को प्रशासनिक सेवा के लिए भी तैयार कर रहा हूं, ताकि वह बस्ती और अपने अभिभावकों का नाम रोशन कर सकें।
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