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    मां चंडी देवी के दर्शन मात्र से होती हैं सभी मनोकामनाएं पूर्ण

    By sunil negiEdited By:
    Updated: Fri, 07 Oct 2016 04:30 AM (IST)

    मां चंडी देवी का मंदिर सिद्धपीठों में शामिल है। मां चंडी के दर्शन करने मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

    हरिद्वार, [जेएनएन]: मां चंडी देवी का मंदिर सिद्धपीठों में शामिल है। मां चंडी के दर्शन करने मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। चैत्र व शारदीय नवरात्रों में यहां सहस्त्र चंडी अखंड पाठ का आयोजन किया जाता है। भक्त मां को नारियल का प्रसाद चढ़ाकर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

    इतिहास
    चंडी देवी मंदिर नील पर्वत के शिखर पर स्थित है। यह देश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है एवं इसे कश्मीर के तत्कालीन शासक के वर्ष 1929 में बनवाया था। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि मंदिर में जो मूर्ति है, उसे महान संत आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में स्थापित किया था। एक लोक कथा के अनुसार नील पर्वत वह स्थान है, जहां हिंदू देवी, चंडिका देवी ने शुंभ और निशुंभ राक्षसों को मारने के बाद कुछ समय आराम किया था।

    कैसे पहुंचें मंदिर
    इस स्थान तक पहुंचने के लिए यात्री हरिद्वार में कहीं से भी ऑटो, रिक्शा, टैक्सी या तांगा ले सकते हैं। यात्री इस स्थान तक ट्रेकिंग के रास्ते भी पहुंच सकते हैं, जो चंडीघाट से लगभग तीन किलोमीटर दूर है। केबल कार भी एक अच्छा विकल्प है और इससे पहुंचने में 20 मिनट का समय लगता है।

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    महात्मय
    नील पर्वत के आधार पर चंडी देवी मंदिर के दूसरी ओर नीलेश्वर मंदिर भी है। कहा जाता है मनसा और चंडी देवी पार्वती के दो स्वरूप है जो हमेशा एक दूसरे के करीब रहती हैं। इस मंदिर के ठीक सामने बिलवा पर्वत के शीर्ष पर मां मनसा देवी का मंदिर है जो गंगा के तटों के सामने मौजूद हैं। ये मान्यता हरियाणा के पंचकुला में स्थित माता मनसा देवी मंदिर के लिए भी मान्य है।

    नवरात्र में मंदिर में की जाती है विशेष पूजा-अर्चना
    मां चंडी देवी मंदिर के पुजारी महंत सतीश गिरी ने बताया कि मंदिर पर वर्षभर देश-विदेश के भक्त मां चंडी के दर्शन करने मंदिर पहुंचते हैं। नवरात्र में मां चंडी भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करती है। नवरात्र में मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

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    कपाट खुलने का समय
    सामान्य दिनों में मंदिर प्रात: छह बजे से आठ बजे तक खुला रहता है और मंदिर की प्रात: आरती सुबह साढ़े आठ बजे शुरू होती है। शीतकाल में मंदिर सुबह साढ़े छह से शाम सात बजे तक खुला रहता है।

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