चंद्र समान मुख के दर्शन देकर देवी ने भगवान शंकर का दूर किया था मोह
सती के मोह में जब भगवान शंकर यहां पर विलाप करने लगे तो मां भगवती ने उन्हें चंद्र समान मुख के दर्शन दिए इससे भगवान शंकर का मोह पूरी दूर हो गया।
टिहरी, [जेएनएन]: सती के मोह में जब भगवान शंकर यहां पर विलाप करने लगे तो मां भगवती ने उन्हें चंद्र समान मुख के दर्शन दिए इससे भगवान शंकर का मोह पूरी दूर हो गया। मां के चंद्र समान मुख के दर्शन से ही इस स्थान का नाम चंद्रबदनी पड़ा। यहां पर मां भुवनेश्वरी श्रीयंत्र की भी पूजा होती है।
सिद्धपीठ चंद्रबदनी टिहरी जिले के देवप्रयाग ब्लॉक के चंद्रकूट पर्वत पर आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। चंद्रबदनी में भुवनेश्वरी श्रीयंत्र की भी पूजा होती है। यहां एक किमी की पैदल दूरी तय कर पहुंचा जाता है।
चंद्रबदनी मंदिर की परपंरागत पूजा का अधिकार पुजार गांव के भट्ट बंधुओं को है मुख्य पुजारी पंडित दाताराम के अनुसार उनके पूर्वज बताते हैं कि विशेष पर्व पर चंद्रकूट पर्वत पर मध्य रात्रि में खैट पर्वत से डोली जैसी वस्तु लाल चिंगारी छोड़ती आती दिखाई देती थी यह आछरियों की डोलियां होती थी जो मां चंद्रबदनी के पूजन में नृत्य गान करने आती थी।
महातम्य
यह उत्तराखंड के सिद्धपीठों में है। संतान प्राप्ति के लिए चंद्रबदनी में लोग विशेष पूजन करते। नवविवाहिता भी यहां विशेष रूप से पूजन को आती है। चैत्र नवरात्र में यहां पर विशाल मेला आयोजित होता है।
मंदिर में पूजा-अर्चना का मिलता है विशेष फल
मां चंद्रबदनी मंदिर के पुजारी पंडित दाताराम भट्ट बताते है कि यहां पर वैसे तो हर समय दूर-दराज क्षेत्र से लोग पूजा करने आते हैं,लेकिन चैत्र नवरात्र पर यहां मंदिर में पूजा-अर्चना का विशेष फल मिलता है। दुखों के निदान के लिए लोग यहां पहुंचते हैं।
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ऐसे पहुंचे
ऋषिकेश से 65 किमी की दूरी तय कर टिहरी मुख्यालय पहुंचा जाता है और यहां से करीब 50 किमी की दूरी तय कर जामणीखाल तक बस या टैक्सी से जाया जा सकता है। इसके बाद मंदिर तक करीब एक किमी की दूरी तय कर पहुंचा जाता है।
कपाट खुलने का समय
यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं के लिए कपाट खुल रहते हैं जिससे लोग किसी भी समय आसानी से सिद्धपीठ के दर्शन कर सते हैं। यहां पर मौसम न ज्यादा ठंडा है और नगर।
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