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    Year Ender 2025: उत्तराखंड में पूरे साल जंगली जानवरों का खौफ, पहाड़ से दिल्ली तक रही गुलदार-भालू के आतंक की गूंज

    Updated: Wed, 31 Dec 2025 11:59 AM (IST)

    उत्तराखंड में 2025 में जंगली जानवरों का आतंक रहा। गुलदार और भालू के हमलों से लोग परेशान रहे, जिसकी गूंज दिल्ली तक सुनाई दी। जंगली जानवरों ने लोगों का ...और पढ़ें

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    सर्दी की आहट के साथ ही भालू, गुलदार व बाघ बने बड़ी मुसीबत। प्रतीकात्‍मक

    केदार दत्त, देहरादून। वन एवं वन्यजीव विविधता के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 25 साल हो चुके हैं, लेकिन विरासत में मिली वन्यजीवों के हमले रूपी आपदा से अभी तक पार नहीं पाई जा सकी है। गुजरे साल भी गुलदार, बाघ, भालू, हाथी जैसे जानवरों के आतंक के चलते उत्तराखंड में जिंदगी सहमी रही तो बचपन पर पहरे की स्थिति भी बनी।

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    सर्दी की आहट होते ही गुलदार व भालू ने तो लोगों को मुश्किल में डाले रखा। दिक्कत इतनी बढ़ी कि पहाड़ से लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तक गुलदार, भालू के आतंक की गूंज सुनाई दी। यहां के सांसदों ने संसद के दोनों सदनों में वन्यजीवों के हमले का विषय उठाते हुए केंद्र से मदद का आग्रह किया। यद्यपि, इधर, राज्य सरकार भी लगातार सक्रिय रही। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वयं मोर्चा संभाला और मशीनरी को सक्रिय करते हुए वन्यजीवों के हमलों की रोकथाम के दृष्टिगत चल रहे उपायों की वह मानीटरिंग कर रहे हैं। बावजूद इसके चिंता और चुनौती बने हुए हैं।

    ऐसा नहीं है कि वन्यजीवों के हमले अचानक से बढ़े हों। अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में भी यह दिक्कत थी। आंकड़े देखें तो वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तब वन्यजीवों के हमलों में 30 व्यक्तियों की जान गई थी, जबकि 56 घायल हुए थे। उम्मीद जताई गई थी कि राज्य बनने के बाद वन्यजीवों को जंगल में थामे रखने को प्रभावी कदम उठेंगे, लेकिन इस दिशा में ठोस पहल नहीं हो पाई। नतीजतन, वन्यजीवों के हमले कम नहीं हुए। आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। वर्ष 2000 से 2025 तक के कालखंड को देखें तो इस अवधि में औसतन प्रतिवर्ष 49 व्यक्तियों की जान वन्यजीवों ने ली, जबकि इसके पांच गुना से अधिक लोग हर साल घायल हो रहे हैं।

    सालभर खौफ के साये में रहे लोग

    राज्य का शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा होगा, जहां बीते वर्षभर वन्यजीवों का खौफ तारी न रहा हो। क्या पहाड़, क्या मैदान और क्या घाटी वाले क्षेत्र सभी जगह वन सीमा से सटे इलाकों में वन्यजीवों ने नाक में दम किए रखा। सर्दी का मौसम शुरू होने के बाद वन्यजीवों के हमलों में अचानक से तेजी आई। विशेषकर, भालू और गुलदार तो आबादी के आसपास ऐसे धमक रहे हैं, जैसे पालतू जानवर हों। इन्हीं के हमलों ने अधिक नींद उड़ाए रखी। स्थिति यह बनी कि कई क्षेत्रों में विद्यालयों में अवकाश तक घोषित करना पड़ा।

    मुख्यमंत्री धामी ने संभाला मोर्चा

    साल के आखिरी चार महीनों में वन्यजीवों के बढ़ते हमलों ने सरकार की पेशानी पर भी बल डाले रखे। पानी सिर से ऊपर गुजरता देख मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वयं मोर्चा संभाला और वन्यजीवों के हमले थामने के दृष्टिगत वन विभाग के साथ ही पूरी मशीनरी को सक्रिय किया। इसके साथ ही कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। इसमें वन्यजीवों के हमलों में मृत्यु पर मुआवजा राशि 10 लाख रुपये करने और घायलों के उपचार का संपूर्ण खर्च सरकार द्वारा उठाना मुख्य रहे। यही नहीं, वन विभाग के आला अफसरों को भी फील्ड में उतारा गया। समस्या से निबटने के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक उपायों की दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं। इसके अलावा बच्चों का स्कूल भेजने के लिए वन विभाग को एस्कार्ट करने के निर्देश दिए गए हैं।

    संसद में भी सुनाई दी यह गूंज

    वन्यजीवों के गहराते आतंक की गूंज इस बार संसद में भी सुनाई दी। गढ़वाल सांसद एवं भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने लोकसभा तो राज्यसभा सदस्य एवं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने राज्यसभा में यह विषय प्रमुखता से उठाया। साथ ही वन्यजीवों के हमलों की समस्या से निबटने के लिए राज्य को विशेष मदद उपलब्ध कराने के साथ ही वन्यजीवों के व्यवहार में आई आक्रामकता के कारणों का अध्ययन कराने का केंद्र से आग्रह किया।

    ये उठाए गए कदम

    • गुलदार व भालू के हमलों की दृष्टि से संवेदनशील स्थलों का चिह्नीकरण।
    • वन्यजीवों के बढ़ते हमलों के कारणों की तह तक जाने को अध्ययन का निर्णय।
    • संवेदनशील क्षेत्रों में क्विक रिस्पांस टीमों की तैनाती और फील्ड कर्मियों की गश्त।
    • घटना होने पर तुरंत मौके पर पहुंचेंगे डीएफओ, प्रभावितों को देंगे राहत राशि।
    • आमजन की जागरूकता पर जोर, सुबह-शाम जंगल जाने से परहेज की सलाह।
    • कचरे के निस्तारण के साथ ही प्रकाश, सोलर लाइट, अलार्म, बाड़ की व्यवस्था।

    वासस्थलों में भोजन की हो उपलब्धता

    भालू-मानव संघर्ष थामने के लिए दीर्घकालिक उपाय करने की कड़ी में भालुओं को प्राकृतिक वासस्थलों में भोजन उपलब्ध हो, इसके लिए जंगलों में ओक, काफल और जंगली बेरी जैसे खाद्य पौधों का रोपण व संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने के निर्देश दिए गए हैं। अधिक भालू घनत्व वाले क्षेत्रों में वासस्थलों के संरक्षण को भी प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया है। इसके अलावा क्विक रिस्पांस टीमों को पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने, भालू को रेस्क्यू करने के लिए उचित साइज के पिंजरों की व्यवस्था करने को भी कहा गया है।

    चुनौती अभी भी बरकरार

    • प्रजननकाल होने के कारण शीतकाल में ज्यादा आक्रामक होते हैं बाघ, गुलदार।
    • पलायन के चले खाली गांवों में बंजर होती कृषि भूमि में उगी झाडिय़ों का कटान।
    • वन्यजीवों के आबादी की ओर आने पर अर्ली वार्निंग सिस्टम की दरकार।

    राज्य में मुख्य वन्यजीवों के हमले (वर्ष 2000 से 2025 तक)

    • वन्यजीव, मृतक, घायल
    • गुलदार, 549, 2127
    • हाथी, 230 234
    • बाघ, 106, 134
    • भालू, 72, 2012
    • सांप, 260, 1056
    • जंगली सूअर, 30, 663

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