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सैन्य परंपरा के ध्वज वाहक उत्‍तराखंड के वीर सपूत

शुक्रवार को भारतीय सैन्‍य अकादमी में एसीसी विंग के दीक्षांत समारोह का आयोजन हुआ। इसमें साढ़े 14 फीसद युवा अकेले उत्तराखंड से हैं। जो सैन्‍य परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 03 Dec 2016 02:39 PM (IST)Updated: Sun, 04 Dec 2016 01:30 AM (IST)
सैन्य परंपरा के ध्वज वाहक उत्‍तराखंड के वीर सपूत

देहरादून, [जेएनएन]: इसी जज्बे से सरहदें सलामत हैं। कितनी भी कठिनाइयां क्यों न आएं, वह अपने जज्बे और हौसले को हारने नहीं देते। यही एक सिपाही की पहचान भी है। जिसे देवभूमि के वीर सपूत चरितार्थ कर रहे हैं। जिस सैन्य परंपरा पर उत्तराखंड गर्व करता आया है, वह इन्हीं की बदौलत तो है। वीर गबर सिंह, दरबान सिंह और चंद्र सिंह गढ़वाली की शौर्य गाथाओं को सुनकर बड़े हुए पहाड़ के युवाओं में फौजी बनने की चाहत रची-बसी है। एसीसी विंग के दीक्षांत समारोह में यह बात फिर एक बार नुमाया हुई। जहां साढ़े 14 फीसद युवा अकेले उत्तराखंड से हैं।

पिता की शहादत ने दिया हौसला
लोहाघाट निवासी दीवान बिष्ट के पिता श्याम सिंह फौज में थे। वर्ष 1991 में वह सियाचिन में शहीद हो गए। पिता की शहादत ने दीवान के हौसले को हवा दी। 2007 में उन्होंने बतौर सैनिक महार रेजीमेंट ज्वाइन की और अब अफसर बनने की राह पर हैं।

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पिता के सपने को किया साकार
मूलत: टिहरी गढ़वाल और अब सेलाकुई में रहने वाले रोहित धनाई के पिता सुनील धनाई सरकारी स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। पिता की मौत ने रोहित को तोड़ दिया था। लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 2005 में फौज में जवान भर्ती हुए रोहित अब अफसर बनने से कुछ ही कदम दूर हैं।

परिश्रम से हासिल किया मुकाम
अल्मोड़ा निवासी उमेश चंद्र फुलारा के पिता शंकर दत्त फुलारा बरेली में मेडिकल स्टोर चलाते हैं। उमेश का जन्म और शिक्षा-दीक्षा भी बरेली में ही हुई। 2009 में कोर ऑफ सिग्नल्स में भर्ती हुए उमेश ने अफसर बनने की ओर अपने कदम बढ़ा दिए हैं।

पारिवारिक व्यवसाय छोड़ अलग राह
ऊखीमठ, रुद्रप्रयाग निवासी सुमित कुमार के पिता किशन सिंह ऊखीमठ में ज्वेलर हैं। ऊखीमठ से ही इंटरमीडिएट तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद 2005 में वह इंडियन नेवी में शामिल हुए और अपनी मेहनत व लगन के बूते अब अफसर बनने वाले हैं।

पिता के नक्शे कदम पर बेटा
रानीखेत, अल्मोड़ा निवासी कमल सिंह को पूर्व फौजी पिता ललित सिंह से सेना में शामिल होने की प्रेरणा मिली। आर्मी स्कूल रानीखेत के इस पूर्व छात्र ने मन में वर्दी की ललक लिए 2009 में सेना ज्वाइन की। परिश्रम की आग में तपकर अब वह कुंदन बनने वाले हैं।

सैन्य परंपरा पर बढ़ाया पग
सोमेश्वर, अल्मोड़ा निवासी नरेंद्र के पिता सूबेदार बची सिंह उन्हें हमेशा देश सेवा के लिए प्रेरित करते थे। डीएसबी नैनीताल से पढ़ाई के दौरान नरेंद्र ने पिता की प्रेरणा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। 2010 में बंगाल इंजीनियरिंग में शामिल हुए और अब अफसर बनने की राह पर हैं।

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पूरी की वर्दी की ललक
कुसुमखेड़ा, हल्द्वानी निवासी पान सिंह बिष्ट के बेटे हेमंत ने सेना में अफसर बनने की तरफ कदम बढ़ाकर उनका सपना पूरा किया। आर्मी स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सेना ज्वाइन की। अब वह अफसर बनने वाले हैं।

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पिता से मिली फौजी बनने की प्रेरणा
पिथौरागढ़ निवासी विक्रांत धनिक को अपने पिता पूर्व फौजी मदन सिंह धनिक से फौज में जाने की प्रेरणा मिली। आर्मी स्कूल पिथौरागढ़ से पढ़ाई करने के बाद 2008 में वह बंगाल इंजीनियरिंग में शामिल हुए। देश का यह सिपाही अब अफसर बनने को तैयार हैं।

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