51 करोड़ बहाए, अब डरा रहा पीएम का पत्र
पेयजल निगम प्रदेशभर में जलस्रोतों के रिचार्ज के नाम पर 51.13 करोड़ रुपये बहा चुका है और अधिकारियों को इस बात की जानकारी ही नहीं है।
देहरादून, [सुमन सेमवाल]: जलस्रोतों के रिचार्ज के नाम पर पेयजल निगम प्रदेशभर में 51.13 करोड़ रुपये बहा चुका है और अधिकारियों को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि इतनी भारी-भरकम राशि फूंकने के बाद जलस्रोतों के स्राव में कितना इजाफा हुआ। बीते आठ-नौ सालों में नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम (एनआरडीडब्ल्यूपी) के तहत फूंकी गई इस राशि पर राज्य के अधिकारी इसी तरह गहरी नींद में सोते रहते, अगर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पत्र लिखकर राज्य की तंद्रा नहीं तोड़ते। प्रधानमंत्री ने वर्षा जल के अधिकतम उपयोग को लेकर कार्ययोजना बनाने को कहा तो अफसरों को 51 करोड़ रुपये का हिसाब लेने की याद भी आ गई। अब निगम अधिकारी जिलों को धड़ाधड़ पत्र लिखकर प्रगति तलब कर रहे हैं, मगर कहीं से भी जवाब नहीं मिल रहा।
यह जवाब आता भी कैसे, यदि धरातल पर काम हुआ होता। काम होता तो सरकारी रिकॉर्ड में ही राज्य की 17 हजार 32 बस्तियों के हलक तर करने की चुनौती न खड़ी होती। जबकि, एनआरडीडब्ल्यूपी के तहत वर्ष 2009 से अब तक गड्ढे-ट्रेंच, चेकडाम, पर्कुलेशन टैंक आदि की दिशा में कागजों में 51.11 करोड़ रुपये का खर्च दिखाया गया है। हालांकि अब जवाब देने की बाध्यता हो गई है। 29 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जो पाती मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्राप्त हुई, उसमें उन्होंने जल संकट से निजात दिलाने के लिए वर्षाजल का उपयोग व गर्मियों के दो-तीन माह की कार्ययोजना बनाने को कहा था। उन्होंने गतिमान योजनाओं पर भी एकीकृत रूप से काम करने पर बल दिया था। इस क्रम में शासन की ओर से जब पेयजल निगम और जल से संबंधित अन्य विभागों को पत्र पहुंचा तो सभी बगलें झांकने लगे। पेयजल निगम मुख्यालय तभी से जिलों से जानकारी मांग रहा है कि एनआरडीडब्ल्यूपी में कितने स्रातों को रिचार्ज किया गया और जल में कितनी बढ़ोत्तरी हुई है। जबकि, गर्मियां निकल चुकी हैं और मानसून सीजन दस्तक देने लगा है, फिर भी पीएम के पत्र का वाजिब जवाब न तो ढूंढा जा सका है, न ही आगे की राह अफसरों को नजर आ रही है। यह जरूर है कि पीएम के पत्र के बाद तमाम अफसरों को कार्रवाई का डर सताने लगा है।
जिलों से मांगी जा रही हैं सूचनाएं
महाप्रबंधक (पेयजल निगम) एससी पंत का कहना है कि पीएम के पत्र के क्रम में जिलों से सूचनाएं मांगी जा रही हैं। अभी तक भी कहीं से भी यह जवाब नहीं मिल पाया है कि भारी-भरकम बजट खर्च करने के बाद जल स्रोतों के पानी में कितना इजाफा हो पाया।
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