Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ...तो महज 902 प्रतिष्ठान ही कर रहे भूजल दोहन!

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Wed, 13 Jun 2018 09:02 PM (IST)

    उत्तराखंड में महज 902 प्रतिष्ठानों ने ही भूजल दोहन का आवेदन किया है। जबकि जमीनी हकीकत इससे कई गुना ज्यादा है।

    ...तो महज 902 प्रतिष्ठान ही कर रहे भूजल दोहन!

    देहरादून, [जेएनएन]: रात-दिन भूजल का दोहन करने वाले व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) का भी भय नहीं रहा। एनजीटी के स्पष्ट आदेश के बाद भी उत्तराखंड से महज 902 प्रतिष्ठानों ने भूजल दोहन का आवेदन किया है। जबकि जमीनी हकीकत इससे कई गुना है। गंभीर यह कि केंद्रीय भूजल बोर्ड के पास कार्रवाई का अधिकार नहीं है और राज्य सरकार है कि अपने बेशकीमती संसाधन को लुटता हुआ देखने के बाद भी खामोश है। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भूजल दोहन को नियंत्रित करने व इसे निगरानी में लाने के लिए एनजीटी ने व्यावसायिक श्रेणी वाले तमाम प्रतिष्ठानों को केंद्रीय भूजल बोर्ड में ऑनलाइन आवेदन करने के लिए कहा था। पहले आवेदन की अंतिम तिथि 31 जनवरी रखी गई थी, जबकि इसके बाद यह तिथि 31 मार्च कर दी गई। बोर्ड के अधिकारी मानकर चल रहे थे कि राज्य में बड़े स्तर पर भूजल दोहन करने वाले प्रतिष्ठानों की संख्या कम से कम पांच हजार पार कर जाएगी, जबकि अंतिम तिथि तक भी यह आंकड़ा करीब 902 पर सिमट गया। वहीं, जनगणना 2011 के आंकड़ों की बात करें तो एनजीटी के निर्देश के दायरे वाले प्रतिष्ठानों (इंडस्ट्री सेक्टर, स्कूल-कॉलेज, शॉपिंग कॉम्पलेक्स, आवासीय परियोजनाएं आदि) की संख्या 68 हजार के पार है।

    सबसे अधिक भूजल का दोहन देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर व नैनीताल (हल्द्वानी) में किया जाता है और यहां एनजीटी के दायरे में आने वाले प्रतिष्ठानों की संख्या 31 हजार 500 से अधिक है। मैदानी क्षेत्रों में ही भूजल दोहन की अधिकता की बात मानी जाए और यह आकलन किया जाए कि 25 फीसद प्रतिष्ठान ही भूजल दोहन कर रहे हैं, तब भी यह आंकड़ा 7800 से अधिक होना चाहिए। फिर भी भूजल बोर्ड ने 5000 प्रतिष्ठानों से आवेदन की अपेक्षा की थी और इसके भी महज 18.04 फीसद प्रतिष्ठानों ही आवेदन करने की जहमत उठाई। 

    इस श्रेणी में थी आवेदन की अनिवार्यता 

    इंडस्ट्री (फैक्ट्री, वर्कशॉप आदि), स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, होटल, लॉज, गेस्ट हाउस आदि प्रतिष्ठान यदि भूजल दोहन कर रहे हैं तो उन्हें अनिवार्य रूप से आवेदन करना था। 

    इसलिए मांगे गए आवेदन 

    भूजल दोहन की स्वीकृति के बाद संबंधित प्रतिष्ठानों को पिजोमीटर लगाना होगा। इसके लगने के बाद भूजल दोहन की मॉनिटरिंग भी संभव है और यह पता लग पाएगा कि कहीं भूजल का दोहन तय सीमा से अधिक तो नहीं किया जा रहा। इससे भूजल की फिजूलखर्ची पर भी लगाम लग पाएगी। 

    यह भी पढ़ें: देहरादून में भूजल पर मनमानी से पाताल में पहुंचा पानी

    यह भी पढ़ें: गर्मियों में यहां पानी को तरस रहे लोग, जल संस्थान ने संभाला नलकूप का संचालन

    यह भी पढ़ें: रुद्रप्रयाग में 50 जल स्रोत सूखे, पानी को मच रहा हाहाकार