Mussoorie History : भारतीयों को नहीं थी माल रोड पर चलने की इजाजत... यहां उगने वाले पौधे पर पड़ा मसूरी का नाम
Mussoorie History आज मसूरी पूरे भारत देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध पर्यटक स्थल बन चुकी है। सूरज चढ़ने के साथ ही शाम छलने तक माल रोड में पर्यटकों की रौनक रहती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कभी माल रोड में भारतीयों का प्रवेश वर्जित था।
टीम जागरण, देहरादून : Mussoorie History : आज पहाड़ों की रानी मसूरी (Tourist Place Mussoorie) पूरे भारत देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध पर्यटक स्थल बन चुकी है।
पूरे साल यहां पर्यटकों का आना लगा रहता है। गर्मियों में यहां का सुहावना मौसम और सर्दियों में बर्फ की चादर से ढकी मसूरी की वादियां (Mussoorie) पर्यटकों के मन को भा जाती हैं।
कभी माल रोड में भारतीयों का प्रवेश वर्जित था
पर्यटक यहां आने के लिए आतुर रहते हैं। सूरज चढ़ने के साथ ही शाम छलने तक माल रोड में पर्यटकों की रौनक रहती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कभी माल रोड में भारतीयों का प्रवेश वर्जित था। भारतीयों को माल रोड पर चलने की इजाजत नहीं थी। आइए जानते हैं ऐसे ही मसूरी के इतिहास की कुछ रोचक बातें...
- साहसिक ब्रिटिश मिलिट्री अधिकारी कैप्टन यंग ने मसूरी की खोज की थी। उन्हें यह जगह आयरलैंड की तरह लगी। तभी इस सुंदर पर्यटन स्थल की नींव पड़ी।
- कैप्टन यंग ने 1823 में मसूरी (Mussoorie) को बसाने का काम शुरू किया।
- कैप्टन यंग मसूरी की सुंदरता पर मंत्रमुग्ध हो गए और यहीं बस गए।
- उन्होंने मसूरी में अपना घर बनाया और मलिंगार में शूटिंग रेंज भी बनवाई।
- कैप्टन यंग के मनाने पर ही आला अंग्रेज अफसर मसूरी में रहने के लिए राजी हुए और मसूरी को हिल स्टेशन व सैनिक डिपो के रूप में विकसित किया गया।
- कैप्टन यंग ने सैनिकों के लिए अस्पताल बनवाया। इसका नाम ब्रिटिश मिलिट्री अस्पताल रखा गया। यहां युद्ध में घायल अंग्रेजी सैनिकों का इलाज किया जाता था।
- इसी अस्पताल की नर्स व कर्मचारियों के लिए आवासीय परिसर बनाया गया। जिसे सिस्टर बाजार के नाम से पुकारा गया।
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- 1827 में यहां सैनिटोरियम बनवाया गया, जो अब लंढौर कैंटोनमेंट के नाम से जाना जाता है।
- 80 के दशक तक भी सर्दियों में मसूरी (Mussoorie) का बाजार बंद रहता था।
- मसूरी में बहुतायत में उगने वाले एक पौधे 'मंसूर’ के नाम पर ही इस हिल स्टेशन का नाम रखा गया।
- देहरादून में पूर्व प्रधानमंत्री स्व जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित रहती थीं।
- 1920-1940 के दौरान नेहरू परिवार मसूरी में लगातार आता था।
- अप्रैल 1959 में दलाई लामा, चीन अधिकृत तिब्बत से निर्वासित होने पर अपने अनुयायियों के साथ यहीं आए थे।
- लगभग 5000 तिब्बती मसूरी में आज भी निवास करते हैं।
'भारतीय और कुत्तों को अनुमति नहीं'
मसूरी की माल (Mussoorie Mall Road) रोड पूर्व में पिक्चर पैलेस से लेकर पश्चिम में पब्लिक लाइब्रेरी तक जाती है। ब्रिटिश काल में इसे अंग्रेजों द्वारा बसाया गया था।
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तब माल रोड पर लिखा होता था कि 'भारतीय और कुत्तों को अनुमति नहीं'। तब मसूरी में रहने के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री स्व जवाहर लाल नेहरू के पिता मोती लाल नेहरू द्वारा इस नियम को रोज तोड़ा जाता था।