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History of Mussoorie: जब दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में लोग जलाते थे लालटेन, तब मसूरी में जलता था बिजली का बल्ब

History of Mussoorie उत्तर भारत में सबसे पहले मसूरी बिजली पहुंची थी। जब दिल्ली मुंबई और कोलकाता में लोग लालटेन व मशालें जलाकर घरों को रोशन करते थे उस समय पहाड़ों की रानी मसूरी में बिजली के बल्ब जगमगाने लगे थे।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 20 Sep 2022 06:48 PM (IST)Updated: Tue, 20 Sep 2022 06:48 PM (IST)
अंग्रेजों ने जिन 4 पावर हाउस की परिकल्पना की थी उनमें मैसूर, दार्जिलिंग, चंबा और ग्लोगी (मसूरी) परियोजना शामिल थीं।

जागरण संवाददाता देहरादून। History of Mussoorie: वर्ष 1907 में उत्तर भारत की पहली और देश की दूसरी जल-विद्युत परियोजना (Hydro Electric Project) मसूरी (Mussoorie) के पास ग्लोगी में बनकर तैयार हो गई थी। जब दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के लोग लालटेन जलाते थे, तब मसूरी में बिजली के बल्‍ब जलते थे। इस पावर हाउस से आज भी मसूरी का बार्लोगंज और देहरादून का अनारवाला क्षेत्र रोशन होता है। आइए आपको ले चलते हैं गुजरे जमाने की ओर...।

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वर्ष 1890 में शुरू हुआ पावर हाउस पर काम

  • देश में अंग्रेजों ने जिन 4 पावर हाउस की परिकल्पना की थी उनमें मैसूर, दार्जिलिंग, चंबा (हिमाचल) और ग्लोगी (मसूरी) परियोजना शामिल थीं।
  • वर्ष 1890 में मसूरी क्यारकुली व भट्टा गांव के पास यह परियोजना शुरू हुई थी।
  • मसूरी नगर पालिका के तत्कालीन विद्युत इंजीनियर कर्नल बेल की देख-रेख में इस पर छह सौ से अधिक लोगों ने काम किया।
  • वर्ष 1907 में इस परियोजना से बिजली उत्‍पान शुरू हो गया।
  • उस समय इस परियोजना पर कुल 7 लाख 50 हजार रुपये लागत आई थी।

बैलगाड़ी से पहुंचाई थी टरबाइन और जनरेटर

  • तत्कालीन इंजीनियर पी.बिलिंग हर्ट ने परियोजना का खाका तैयार किया था।
  • परियोजन की टरबाइन लंदन (London) में खरीदी गई थी।
  • भारी मशीन और टरबाइन इंग्लैंड (England) से पानी के जहाजों के जरिये मुंबई पहुंची। फिर रेल के जरिये इसे देहरादून लाया गया।
  • देहरादून से टरबाइन व जनरेटर बैलगाड़ी से परियोजना स्थल तक पहुंचाई गई थी।

वर्ष 1907 में पूरा हुआ था परियोजना का कार्य

  • परियोजना का कार्य वर्ष 1907 में पूरा हुआ था।
  • 25 मई 1909 को इसका उद्घाटन किया गया।

बल्ब को देखकर डर गए थे मसूरी के लोग

  • जब मसूरी स्थित लाइब्रेरी में पहला बिजली का बल्‍ब जला तो लोग देखकर डर गए थे।
  • इसके बाद मसूरी और देहरादून में विद्युत आपूर्ति दी गई।

1933 में स्थापित हुई दो और इकाइयां

  • वर्ष 1933 में पावर हाउस की क्षमता को तीन हजार किलोवाट करने के लिए एक-एक हजार किलोवाट की दो और यूनिट लगाई गईं।
  • ये पावर हाउस आज भी मसूरी के बार्लोगंज और झड़ीपानी क्षेत्र को रोशन कर रही हैं।
  • उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड इसका संचालन कर रहा है।

विशेषज्ञ ने की थी इसकी सराहना

लंदन स्थित इंग्लैंड की सबसे बड़ी विद्युत संबंधी कंपनी के विशेषज्ञ डाजी मार्शल ने इस पावर हाउस की सराहना की थी।

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