यूरोलॉजी सर्जरी में लैप्रोस्कोपी तकनीक वरदान, जानिए कैसे
हिमालयन हॉस्पिटल के यूरोलॉजी विभाग की ओर से लेप्रोस्कॉपी सर्जरी पर दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया।
डोईवाला, जेएनएन। स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) में हिमालयन हॉस्पिटल के यूरोलॉजी विभाग की ओर से लेप्रोस्कॉपी सर्जरी पर दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इसमें देशभर से आए यूरोलॉजिस्ट विशेषज्ञों ने मरीज के उपचार में लेप्रोस्कॉपी सर्जरी की तकनीक व उसकी उपयोगिता पर मंथन किया।
विश्वविद्यालय के न्यू ऑडिटोरियम में आयोजित कॉन्फ्रेंस संस्थापक डॉ. स्वामी राम के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया। प्रथम सत्र में एम्स दिल्ली के डॉ. प्रभजोत सिंह ने कहा कि लेप्रोस्कॉपी सर्जरी (दूरबीन शल्य चिकित्सा पद्धति) मरीजों के उपचार में वरदान साबित हुई है। इस शल्य चिकित्सा पद्धति को की-होल सर्जरी या पिनहोल सर्जरी भी कहा जाता है। बीएचयू वाराणसी के डॉ. समीर त्रिवेदी ने कहा कि लेप्रोस्कॉपी सर्जरी एक यूरोलॉजिस्ट के अभ्यास का एक अभिन्न अंग बन गया है। अत्याधुनिक सर्जरी की विधा मरीजों को अधिक आराम और सहूलियतें पहुंचाने के उद्देश्य से विकसित की जा रही हैं।
आज अधिकांश मेजर सर्जरी दूरबीन पद्धति से की जा रही है। इस सर्जरी के बाद मरीजों को ठीक होने और काम पर लौटने में कम समय लगता है। आयोजन समिति के सचिव डॉ. मनोज विस्वास ने बताया कि कॉन्फ्रेंस में करीब 100 डेलीगेट्स ने शिरकत की। इसमें राष्ट्रीय स्तर की फैकल्टी कार्यशाला में उपस्थित प्रतिभागियों को लेप्रोस्कॉपी सर्जरी की विभिन्न विधाओं की जानकारी दी गई। डॉ. संजय गोयल, डॉ. अनिल एलहेंस, डॉ. योगेश कालरा, डॉ. सिद्धार्थ यादव, डॉ. अनिल मंधानी, डॉ. शिवम प्रियदर्शनी, डॉ. अनूप कुमार, डॉ. जमाल रिजवी, डॉ. एमएस सारी, डॉ. अमलेष सेठ, डॉ. राजेश अहलावत ने लेप्रोस्कॉपी सर्जरी के विभिन्न पहलुओं पर उपस्थित डेलीगेट्स का मार्गदर्शन किया।
यह होती है लैप्रोस्कोपी सर्जरी
आयोजन समिति के सचिव व हिमालयन हॉस्पिटल के यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज विश्वास ने बताया कि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में मुख्य रूप से एक टेलीस्कोप को वीडियो कैमरा के साथ जोड़ा जाता है। इस टेलीस्कोप को छोटे चीरे के द्वारा पेट में डाला जाता है एवं संपूर्ण पेट की सूक्ष्मता से जांच की जाती है। सर्जन तथा उसकी टीम पेट के अंदर के संपूर्ण चित्र टीवी मॉनीटर पर देखकर ऑपरेशन करते हैं जिससे गलती की संभावना काफी कम रहती है।
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