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    उत्तराखंड में मौजूद है डायनासोर काल का 'जिंकोबाइलोवा', और भी बहुत कुछ खास

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Sat, 29 Feb 2020 08:12 PM (IST)

    डायनासोर काल की यादें एक पेड़ के रूप में उत्तराखंड के जंगलों में भी मौजूद है। जिंकोबाइलोवा जिसे धरती पर मौजूद जिंदा जीवाश्म कहा जाता है।

    उत्तराखंड में मौजूद है डायनासोर काल का 'जिंकोबाइलोवा', और भी बहुत कुछ खास

    देहरादून, केदार दत्त। जब भी डायनासोर काल का जिक्र होता है तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं, मगर उस काल की यादें एक पेड़ के रूप में उत्तराखंड के जंगलों में भी मौजूद है। यह है जिंकोबाइलोवा, जिसे धरती पर मौजूद जिंदा जीवाश्म कहा जाता है। कोसी कटारमल समेत उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में जिंकोबाइलोवा के पेड़ हैं, जो उत्सुकता जगाते हैं। यह जिंकोगेशिया परिवार की पृथ्वी पर जीवित एकमात्र वृक्ष प्रजाति है। 

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    डायनासोर काल से पाए जा रहे जिंकोबाइलोवा के संरक्षण को लेकर हुए प्रयासों के बाद उत्तराखंड में भी इसने जड़ें जमानी शुरू कर दी हैं। उत्तराखंड वानिकी शोध शाखा रानीखेत के वैज्ञानिकों ने जिंकोबाइलोवा की प्रजाति के क्लोन उगाने में कामयाबी हासिल की थी। देहरादून चिडिय़ाघर समेत कुछेक अन्य स्थानों पर भी वन महकमे ने इस दुर्लभ प्रजाति के पौधे लगाए हैं, जो अपनी जड़ें जमा चुके हैं। अब जिंकोबाइलोवा के पौधों का रोपण को विस्तार देने की योजना है। 

    नक्षत्र और नवग्रह वाटिका 

    ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक मानवजीवन में ग्रहों और नक्षत्रों का खासा महत्व है। उत्तराखंड का वन महकमा भी इसे स्वीकारता है। पेड़ों का धार्मिक महत्व होने के कारण नक्षत्र और नवग्रह वाटिकाओं के कांसेप्ट को प्रदेशभर में धरातल पर उतारा जा रहा है। वन विभाग द्वारा हल्द्वानी, देहरादून समेत अन्य कई स्थानों पर नक्षत्र और नवग्रह वाटिका के साथ ही राशि वृक्षों के प्रदर्शन स्थल विकसित किए जा रहे हैं। नवग्रह वाटिका में नवग्रह से जुड़े नौ पौधे और नक्षत्र वाटिका में 27 नक्षत्रों से संबंधित 27 पौधे लगाए गए हैं।

    राशि के आधार पर भी पौधों का रोपण किया जा रहा है। इस मुहिम से जहां जनसामान्य को पेड़ों के संरक्षण और संवर्धन से जोड़ा जाएगा, वहीं वे इन वाटिकाओं में आकर सुकून महसूस करेंगे। इनमें लगने वाले औषधीय महत्व के पौधे-वनस्पतियां, शीतल छाया, शुद्ध प्राणवायु प्रदान करने के साथ ही वातावरण शुद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। 

    बैंबूसेटम में 20 प्रजातियां 

    उत्तराखंड के जंगलों में पाई जाने वाली वृक्ष प्रजातियों में महत्वपूर्ण है बांस (बैंबू)। तराई और भाबर क्षेत्र में यह राष्ट्रीय विरासत पशु हाथी का सबसे प्रिय आहार है तो पर्यावरण के संरक्षण के साथ ही बांस का आर्थिक महत्व भी है। इसी के दृष्टिगत अलग-अलग वन प्रभागों को सेंटर आफ एक्सीलेंस (बांस) विकसित करने की मंशा है। बांस की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, पुनरुत्पादन, विकास एवं प्रदर्शन के लिए वन अनुसंधान परिसर हल्द्वानी में बैंबूसेटम स्थापित किया गया है।

    इसमें बांस की 20 से ज्यादा प्रजातियां रोपी गई हैं। इसके अलावा गोपेश्वर में बांस प्रजातियों के राईजोम बैंक स्थापना का प्रयोग सफल रहा है। ऐसे ही प्रयोग अन्य जगह भी हो रहे। निश्चित रूप से यह वन महकमे की अच्छी पहल है, बशर्ते, इसे धरातल पर उतारने को पूरी गंभीरता के साथ कदम उठाए जाएं। तब जाकर ही बांस के संरक्षण, संवद्र्धन की मुहिम तेजी से आगे बढ़ पाएगी। 

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    तेजपात और गेठी प्रक्षेत्र 

    राज्य के जंगलों में मसालों में प्रयुक्त होने वाले तेजपात आचर्ड स्थापना की दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं। दक्षिण भारत के साथ ही स्थानीय तेजपात के आचर्ड की स्थापना दोगड़ा वन पंचायत के अंतर्गत आने वाले भुजियाघाट पौधालय में की गई है। इससे अब तेजपात के बीज एकत्रीकरण और आपूर्ति की जा सकेगी। साथ ही तेजपात के उत्पादन से राज्य को आर्थिक फायदा भी होगा। इसके अलावा खुर्पाताल में गेठी (बोहिमेरिया रुग्लोसा) का बीज उत्पादन प्रक्षेत्र बनाया गया है।

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    गाजा रेंज में पड़ने वाले खुर्पाताल में चारा प्रजाति में आने वाली गेठी के पौधे लगाए गए हैं, जिसकी लकड़ी का उपयोग बर्तन बनाने में किया जाता है। जाहिर है कि तेजपात और गेठी को बढ़ावा देने से पर्यावरण संरक्षण के साथ ही आर्थिकी भी संवरेगी। अब जल्द ही वन पंचायतों के जरिये जनसामान्य को इस मुहिम से जोड़ने की योजना के मसौदे को अंतिम रूप दिया जा रहा है। 

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